सनातन धर्म में वरुथिनी एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत रखने से जातक के समस्त दुख दूर हो जाते हैं। इस व्रत से प्राप्त फलों का सुख मनुष्य न सिर्फ पृथ्वी पर भोगता है बल्कि मृत्यु उपरांत परलोक में भी इस व्रत के फलों का सुख उसे मिलता रहता है। मान्यता है कि इस व्रत से सूर्य ग्रहण के दिन स्वर्ण दान करने इतना पुण्य प्राप्त होता है।
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इस दिन भगवान मधुसूदन की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को करोड़ों साल ध्यान करने इतना फल प्राप्त होता है। इस व्रत से मनुष्य को कन्यादान जैसे शुभ कार्य से भी ज्यादा फल प्राप्त होते हैं। यही वजह है कि वरुथिनी एकादशी का सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच बहुत ज्यादा महत्व है। ऐसे में हम आपको इस लेख में वरुथिनी एकादशी व्रत की पूजन विधि बताएंगे लेकिन उससे पहले वरुथिनी एकादशी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी आपके साथ साझा कर देते हैं।
वरुथिनी एकादशी तिथि, मुहूर्त और अवधि
वरुथिनी एकादशी तिथि : 07 मई 2021
दिन : शुक्रवार
वरुथिनी एकादशी पारण मुहूर्त : 08 मई को 05:35:17 से 08:16:17 तक
अवधि : 02 घंटे 41 मिनट
वरुथिनी एकादशी व्रत : क्या न करें?
वरुथिनी एकादशी व्रत के दौरान जातकों को कुछ चीजों का ध्यान रखना होता है जैसे कि इस दिन व्रत करने वाले जातक को पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इस दिन किसी भी मनुष्य की बुराई से बचना चाहिए। बुरे लोगों की संगत से खुद को दूर रखना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले जातक को तेल में तला हुआ कोई भी भोजन ग्रहण करने पर मनाही होती है। साथ ही शहद, चना और मसूर की दाल का भी सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन कांसे के बर्तन में भोजन करना निषेध माना गया है। साथ ही इस दिन किसी दूसरे के द्वारा दिया गया भोजन भी नहीं करना चाहिए।
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वरुथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि
- वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत करने वाले जातकों को इस दिन से एक रोज पहले यानी कि दशमी के दिन सिर्फ एक ही समय भोजन करना होता है।
- अगले दिन यानी कि वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
- व्रत का संकल्प लेकर भगवान मधुसूदन की पूजा-अर्चना करें।
- वरुथिनी एकादशी की रात्रि में जातकों को जागरण करते हुए पूरी रात भगवान का स्मरण करना चाहिए।
- फिर अगले दिन पारण करें।
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