जिस व्यक्ति को यमराज से डर लगता है, उन्हें वरुथिनी एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए।
हिन्दू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। हर मास में दो एकादशियां मनाई जाती हैं और दोनों ही बेहद ख़ास होती हैं। ऐसे ही वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। वरुथिनी एकादशी को वरुथिनी ग्यारस भी कहते हैं।
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वरुथिनी एकादशी के व्रत से इंसान के सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं, साथ ही इस एकादशी के व्रत से मिलने वाले फल और सौभाग्य की तुलना भी नहीं की जा सकती है। इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने वाला इंसान धरती पर तो सभी सुखों को भोगता ही है, साथ ही साथ वो परलोक में भी सभी तरह के सुख का भागी होता है।
ये व्रत कितना महत्वपूर्ण है इस बात का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा लीजिये कि इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मिलने वाले पुण्य का हिसाब-किताब तो खुद चित्रगुप्त भी नहीं रख सकते हैं।
देशभर में चल रहे लॉकडाउन के मद्देनजर वरुथिनी एकादशी के दिन किए जाने वाले कुछ आसान संस्कारों और अनुष्ठानों का बारे में जानने के लिए पढ़ें पूरी पोस्ट।
जानें कब है वरुथिनी एकादशी?
इस वर्ष वरुथिनी एकादशी 18 अप्रैल, 2020, शनिवार के दिन मनाई जाएगी। वरुथिनी एकादशी से जुड़े अन्य शुभ मुहूर्त जानने के लिए नीचे गए चार्ट को देखें।
वरुथिनी एकादशी | 18 अप्रैल 2020, शनिवार |
पारण का समय | सुबह 05:51 से 08:26 बजे तक (19 अप्रैल 2020) |
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त | 00:42 (20 अप्रैल) |
एकादशी तिथि प्रारंभ | 20:03 बजे (17 अप्रैल 2020) |
एकादशी तिथि समाप्त | 22:17 बजे (18 अप्रैल 2020) |
नोट: पारण करने का ये समय दिल्ली के लिए है, अपने शहर के हिसाब से पारण का मुहूर्त जानने के लिए यहाँ क्लिक करें
वरुथिनी एकादशी पूजन विधि
- वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान मधुसूदन की पूजा का विधान बताया गया है।
- इनके अलावा इस दिन भगवान श्री हरी यानि की विष्णु जी के वराह अवतार की भी पूजा की जाती है।
- एकादशी के दिन व्रत रहने वालों को दशमी के ही दिन से व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। इसके लिए व्रत रखने वाले इंसान को दशमी के दिन केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए और वो भी सात्विक भोजन।
- इस दिन आपको उड़द, मसूर,चना, मधु इत्यादि चीज़ों का सेवन करने से बचना चाहिए।
- इस दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने की भी सलाह दी जाती है।
- एकादशी का व्रत रखने वालों को इस दिन खासकर, पान खाने से, दातून करने से, किसी की बुराई करने से, किसी से जलन की भावना रखने से, झूठ बोलने से, गुस्सा करने से खुद को बचाना चाहिए।
- इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि करना चाहिए और मन में भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा-व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- इस दिन की पूजा में धूप, दीपक जलाकर बर्फी, खरबूजा और आम का भोग अवश्य लगाना चाहिए।
- पूजा में ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें।
- सच्चे मन से पूजा करनी और कथा सुननी चाहिए।
- रात में भगवान के नाम का जागरण करना चाहिए और द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को दान-दक्षिणा देकर व्रत पारण करना चाहिए। हालाँकि इस वक़्त लॉकडाउन के चलते अगर आप किसी को घर ना ही बुलाएं तो बेहतर होगा। मन में दान-दक्षिणा का प्राण लें ,और पारण कर लें ,और एक बार सब सामान्य हो जाने के बाद किसी ब्राह्मण या ज़रुरतमंद को दान दें।
वरुथिनी एकादशी व्रत महत्व
- शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से इंसान के जीवन में सुख आता है और स्वर्ग जाने का मार्ग भी अवश्य ही खुलता है।
- इस व्रत को करने से वो फल प्राप्त किया जा सकता है जो सूर्यग्रहण के दौरान दान करने से प्राप्त होता है।
- इस व्रत के प्रभाव से इंसान इस लोक और परलोक दोनों में सुख पाता है और अंत समय में उसे स्वर्ग नसीब होता है।
- इस व्रत को करने से इंसान हाथी-दान और भूमि-दान से मिलने वाले फल भी प्राप्त कर लेता है।
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वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
काफी समय पहले नर्मदा के किनारे एक राज्य हुआ करता था जहाँ मांधाता नामक राजा राज्य किया करता था। मांधाता बहुत ही नेकदिल थे और अपनी दानशीलता के लिए वो दूर-दूर तक मशहूर भी थे। राजा मांधाता बहुत बड़े तपस्वी और भगवान विष्णु के उपासक हुआ करते थे। एक बार की बात है कि राजा तपस्या करने के लिए जंगल में चलते गए। एक विशाल वृक्ष के नीचे उन्होंने आसन लगाया और अपनी तपस्या शुरू कर दी। जैसे ही राजा तपस्या में एकदम लीन हुए एक जंगली भालू ने उनपर हमला कर दिया।
राजा तपस्या में लीन थे ऐसे में उन्होंने कोई उत्तर या खुद को बचाने का प्रयास भी नहीं किया। भालू अब राजा के पैर चबाने लग गया। तब भी राजा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अब भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा लेकिन तब भी राजा ने अपनी तपस्या भंग नहीं की लेकिन घबराहट में उन्होंने भगवान विष्णु से खुद को बचाने की गुहार लगायी।
अपने भक्त को ऐसी परेशानी में देखकर भगवान विष्णु तुरंत वहां प्रकट हुए और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से भालू को मार गिराया। जबतक भगवान आये तबतक भालू राजा का पैर लगभग चबा ही चुका था जिससे राजा बेहद दर्द में थे। तब भगवान ने राजा से कहा कि, “वत्स ! तुम्हें परेशान होने की ज़रा भी ज़रूरत नहीं है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी वरुथिनी एकादशी कहलाती है। तुम इस दिन नियम पूर्वक मेरी पूजा करना। व्रत और पूजा के प्रभाव से तुम पहले की ही तरह हष्ट-पुष्ट हो जाओगे।”
भगवान विष्णु ने आगे बोलते हुए ये भी बताया कि राजा के सतह जो भी भालू ने किया वो राजा के पिछले जनम के पाप का फल है। वरुथिनी एकादशी पर व्रत और पूजा करने से राजा के सभी पाप अवश्य धुल जायेंगे। भगवान की बात मानकर राजा ने वरुथिनी एकादशी का व्रत-पूजा सब किया। जिसके परिणामस्वरूप उसे पहले की यही तरह अपने अंग सही हालत में वापिस मिल गए।
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