इस वर्ष किस दिन मनाई जाएगी वल्लभाचार्य जयंती, जानें इस दिन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

वैशाख महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन वल्लभाचार्य जयंती मनाई जाएगी। इस वर्ष वल्लभाचार्य जयंती 7 मई शुक्रवार के दिन पड़ रही है। वल्लभाचार्य जयंती क्यों मनाई जाती है और इस दिन से जुड़ी अन्य जरूरी बातें क्या हैं? आइए इस विशेष आर्टिकल में इन सभी सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।

वल्लभाचार्य जयंती क्यों मनाई जाती है और क्या है इस वर्ष इसका शुभ मुहूर्त?

श्री वल्लभाचार्य की 542वाँ जन्म वर्षगांठ

वल्लभाचार्य जयन्ती शुक्रवार, मई 7, 2021 को

एकादशी तिथि प्रारम्भ – मई 06, 2021 को 02 बजकर 10 मिनट 

एकादशी तिथि समाप्त – मई 07, 2021 को 03 बजकर 32 मिनट 

कहा जाता है इस दिन वल्लभाचार्य जी का जन्म हुआ था। ऐसे में यह दिन उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। वल्लभाचार्य जी क्योंकि भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे इसलिए इस दिन भगवान कृष्ण की विशेष पूजा अर्चना किये जाने का विधान होता है। यहां तक कि वल्लभाचार्य जी को भगवान श्री नाथ का स्वरूप माना जाता है।

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वल्लभाचार्य जयंती और वल्लभाचार्य के जीवन से जुड़ी कुछ बेहद ही रोचक बातें

  • वल्लभाचार्य जी की जयंती के मौके पर जानते हैं इस दिन से और वल्लभाचार्य जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक और जानने वाली बातें। सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात वल्लभाचार्य जी के जन्म से जुड़ी हुई तो इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनकी मां का नाम इल्लमागारू और उनके पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट था।
  • जब वल्लभाचार्य जी का जन्म हुआ तो उन्हें मृत समझ कर उनके माता-पिता ने उन्हें छोड़ दिया था। हालांकि उसी रात वल्लभाचार्य की मां के सपने में श्रीनाथजी स्वयं आए और उन्होंने बताया कि जिस संतान को तुमने मृत समझ कर छोड़ दिया है असल में वह जीवित है। अगले दिन जब वल्लभाचार्य की माता और पिता उस स्थान पर पहुंचे जहां उन्होंने अपने मृत संतान को छोड़ा था तो उन्होंने देखा कि अग्नि कुंड के बीच में बैठकर उनकी संतान अंगूठा चूस रही है। इस दौरान उनके अचरज की कोई सीमा नहीं थी।
  • अपने पूरे जीवन काल में वल्लभाचार्य ने अनेकों ग्रंथों, स्त्रोतों आदि की रचना की थी। इसके बाद उन्होंने काशी के हनुमान घाट पर उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को अपने प्रमुख भक्त दामोदरदास हरसानी और अन्य वैष्णव समाज के लोगों की उपस्थिति में अंतिम शिक्षा दी थी। इसके बाद वो तकरीबन 40 दिनों तक निराहार रहे। उन्होंने इस दौरान मौन भी धारण कर लिया था और फिर आषाढ़ शुक्ल 3 संवत 1587 को उन्होंने जल समाधि ले ली थी।
  • वल्लभाचार्य जी के सम्मान में भारत सरकार ने सन 1977 में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था।
  • वल्लभाचार्य जी मानते थे कि, इस धरती पर हर एक व्यक्ति परमात्मा का अंश है। ऐसे में किसी भी व्यक्ति या जीवित वस्तु को कष्ट या प्रताड़ना देना पाप समान होता है। ऐसे में उन्होंने किसी को भी कष्ट देना बेहद ही अनुचित बताया था।
  • एक समय उन्होंने देखा कि, एक गाय पर्वत में एक निश्चित जगह पर रोज दूध बहाल करती थी। ऐसे में जिज्ञासा वश जब उन्होंने उस स्थान को खुदा तो उन्हें वहां श्रीनाथजी की मूर्ति मिली। जिसके बाद में स्थापना की गई। कहा जाता है कि, इस घटना के बाद भगवान कृष्ण ने वल्लभाचार्य को अपने गले लगा लिया और श्रीनाथजी के रूप में उन्हें दर्शन दिया था।
  • बहुत से लोग वल्लभाचार्य को भगवान अग्नि का अवतार मानते हैं और वल्लभाचार्य के बहुत से अनुयायी बालकृष्ण की पूजा करते हैं।

वल्लभाचार्य जयंती उत्सव

वल्लभाचार्य जी की जयंती के दिन श्री कृष्ण भगवान की पूजा की जाती है। इस दिन षोडश विधि से भगवान कृष्ण की पूजा का विधान बताया गया है। पूजा के बाद भगवान कृष्ण की आरती की जाती है। इसके अलावा बहुत सी जगहों पर इस दिन भगवान कृष्ण की भव्य झांकियां भी निकाली जाती है। इसके बाद भगवान कृष्ण का अभिषेक किया जाता है। मुख्य रूप से यह त्यौहार गुजरात, महाराष्ट्र, चेन्नई, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में मनाया जाता है। बहुत से लोग इस दिन व्रत भी करते हैं।

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