Utpanna Ekadashi 2021: इस दिन पड़ेगी महीने की तीसरी एकादशी, नोट कर लें शुभ मुहूर्त

यूँ तो प्रत्येक महीने में केवल दो एकादशी तिथि पड़ती है लेकिन किन्ही महीनों में यह एकादशी तिथि 2 से बढ़कर 3 भी हो जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ है नवंबर के महीने में जहाँ तीन एकादशी तिथियों का शुभ संयोग बन रहा है। नवंबर महीने की तीसरी और आखिरी एकादशी है उत्पन्ना एकादशी, जिसे बहुत सी जगहों पर उत्पत्ति एकादशी भी कहा जाता है।

उत्पन्ना एकादशी या उत्पत्ति एकादशी कार्तिक माह में या हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष के ग्यारहवें दिन पड़ती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार उत्पन्ना एकादशी नवंबर या दिसंबर के महीने में पड़ती है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और उत्पन्ना एकादशी के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन का व्रत करने और सही विधि से पूजा आदि करने से व्यक्ति के पिछले और इस जन्म के सभी पाप दूर होते हैं और शुभ फल की प्राप्ति होती है।

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उत्पन्ना एकादशी तिथि और मुहूर्त

30 नवंबर, 2021 (मंगलवार)

उत्पन्ना एकादशी व्रत मुहूर्त 

उत्पन्ना एकादशी पारणा मुहूर्त :07:37:05 से 09:01:32 तक 1, दिसंबर को

अवधि :1 घंटे 24 मिनट

हरि वासर समाप्त होने का समय :07:37:05 पर 1, दिसंबर को

ऊपर दिया गया मुहूर्त दिल्ली के लिए मान्य है। अपने शहर के अनुसार शुभ मुहूर्त जानने के लिए यहाँ करें क्लिक।

उत्पन्ना एकादशी महत्व

कई हिंदू ग्रंथों जैसे भविष्य पुराण आदि में उत्पन्ना एकादशी के महत्व को बताया गया है। इस दिन का महत्व अन्य शुभ हिंदू त्योहारों और संक्रांति जैसे महत्वपूर्ण व्रत और त्यौहार के समान माना गया है। जहां लोग हिंदू तीर्थों के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि कोई भी व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी व्रत का पालन करता है उसे अपने पिछले जन्म और इस जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद उस व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।

ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद ऐसे व्यक्ति (जो उत्पन्ना एकादशी का व्रत करते हैं) वो सीधे भगवान विष्णु के अधिष्ठाता के पास जाता है, जिसे वैकुंठ कहा जाता है। इसके अलावा जो व्यक्ति 1000 गायों का दान करते हैं उन्हें ढेरों आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यदि कोई व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी का व्रत करता है तो उससे तीन महत्वपूर्ण हिंदू देवताओं अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश के व्रत के बराबर माना जाता है। इसीलिए उत्पन्ना एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है और लोग श्रद्धा पूर्वक और नियम के साथ इस व्रत का पालन भी करते हैं।

उत्पन्ना एकादशी क्यों है ख़ास? 

यूं तो हिंदू धर्म में हर एक एकादशी तिथि का महत्व बताया गया है हालांकि इन सभी में उत्पन्ना एकादशी को खास माना जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि, उत्पन्ना एकादशी खास क्यों है? इस सवाल का जवाब यह है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन ही एकादशी माता की उत्पत्ति हुई थी। ऐसे में भगवान विष्णु ने एकादशी देवी को वरदान देते हुए कहा था कि, ‘जो कोई भी लोग विधि पूर्वक उत्पन्ना एकादशी की पूजा-अर्चना करेंगे वह हमेशा सुख और समृद्धि जीवन यापन करेंगे। साथ ही उनके इस जन्म के साथ-साथ पूर्व जन्म के भी पाप नष्ट हो जायेंगे।’

इसके अलावा उत्पन्ना एकादशी का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि इस व्रत में जप,तप  और दान करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा कहा जाता है जो लोग एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें उत्पन्ना एकादशी से शुरुआत करनी चाहिए। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ विष्णु प्रिया मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद जीवन में प्राप्त होता है।

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क्यों मनाते हैं उत्पन्ना एकादशी?

उत्पन्ना एकादशी राक्षस मुरासुर पर भगवान विष्णु की विजय का प्रतीक माना जाता है। कुछ हिंदू किविदंतियों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इसी एकादशी तिथि पर एकादशी माता का जन्म हुआ था। उत्पन्ना एकादशी का यह शुभ दिन भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग महीनों के दौरान मनाया जाता है। उत्तर भारत में यह मार्गशीर्ष महीने में मनाया जाता है, जबकि गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में कार्तिक माह के दौरान उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है।

वहीं तमिल कैलेंडर के अनुसार उत्पन्ना एकादशी कार्तिगाई मासम’ या ‘अप्पासी’ में आती है, और मलयालम कैलेंडर के अनुसार यह वृश्चिक मासम में पड़ती है या थुलम के महीने में मनाई जाती है। हालांकि हर जगह पर उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु और महादेव जी की ही पूजा का विधान होता है।

उत्पन्ना एकादशी सही पूजन विधि

  • उत्पन्ना एकादशी का व्रत एकादशी तिथि से शुरू होकर द्वादशी के सूर्योदय तक चलता है। बहुत से लोग सूर्यास्त से पहले केवल एक समय सात्विक भोजन का सेवन करके दशमी तिथि से ही इसका पालन शुरू कर देते हैं। 
  • इसके अलावा उत्पन्ना एकादशी के दिन चावल और दाल और चने आदि खाना वर्जित माना जाता है। 
  • सूर्योदय से पहले उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने वाले जातक जल्दी उठ जाते हैं। 
  • इस दिन ब्रह्मा मुहूर्त के दौरान भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। 
  • सुबह की नियम और पूजन विधि के बाद भक्त भगवान विष्णु और माता एकादशी की पूजा अर्चना करते हैं और उन्हें विशेष भोग अर्पित करते हैं। 
  • इसके अलावा इस दिन की पूजा में वैदिक मंत्रों का जप भी करते हैं और भजन आदि भी करते हैं क्योंकि इसे बेहद शुभ माना गया है। 
  • माना जाता है कि इसमें ब्राह्मणों को दान देना, ज़रुरतमंदों और गरीबों को भोजन कराने से भी लोगों को शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। (यहां इस बात का विशेष ध्यान रखें कि, दान व्यक्ति की क्षमता पर के आधार पर ही किया जाना चाहिए। दान में कुछ छोटा या बड़ा नहीं होता है।)

उत्पन्ना एकादशी के दौरान विशेष विष्णु मंत्र का जाप

शांताकरम भुजाश्रम पद्मनाभम सुरसम

विश्वराम गगनसैद्रवाद मेघावरनम सुभगम

लक्ष्मीकांतम कमलानारायणम योगिधीरध्याण गमायम

वंदे विष्णुम भभियाराम सर्वलोकोकिका नाथम

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उत्पन्ना एकादशी उपाय 

उत्पन्ना एकादशी के बारे में कहा जाता है कि, जो कोई भी व्यक्ति पूरे विधि विधान से इस दिन का व्रत करता है और पूजा करता है उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यदि आप इस दिन बताए गए कुछ उपाय कर लें तो इसे सोने पर सुहागा माना जाता है इससे सोई हुई किस्मत तो जागती ही है साथ ही व्यक्ति को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। तो आइये जान लेते हैं उत्पन्ना एकादशी के कुछ बेहद सरल और फलदाई उपाय।

  • उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मंदिर जायें और उन्हें गेंदे के फूल की माला और बेसन के लड्डू का भोग अर्पित करें। यह उपाय आपको 11 या 21 दिनों तक लगातार करना है।
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसीदल डालकर केसर वाली खीर अर्पित करें। इसके बाद इसे प्रसाद रूप में ज्यादा से ज्यादा लोगों, ज़रुरतमंदों और निर्धन लोगों के बीच वितरित करें। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामना पूरी अवश्य होगी।
  • इस दिन पूजा करें और इसके बाद पीपल के पेड़ में कच्चा दूध अर्पित करें। शाम को शुद्ध घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से व्यक्ति का सोया भाग्य चमक उठता है।
  • उत्पन्ना एकादशी का व्रत करें। सुहागिन स्त्रियों को घर बुलाकर उन्हें खीर और पूड़ी का भोजन कराएं और सुहाग की सामग्री दें। ऐसा करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
  • एकादशी के दिन तुलसी पूजा अवश्य करें और शाम के समय तुलसी के पेड़ के समक्ष घी का दीपक अवश्य जलाएं।
  • सभी मनोकामना पूर्ति के लिए उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि पूर्वक पूजा करें। इस दिन की पूजा में पीले रंग के फूल, पीले रंग की भोग सामग्री शामिल करें और व्रत का पारण करने से पहले जरूरतमंदों को खाने की वस्तु और पीले रंग के वस्त्र का दान अवश्य करें।

उत्पन्ना एकादशी पर राशि अनुसार करें ये उपाय हर काम में मिलेगी सफलता

  1. मेष राशि: कोई भी नया और शुभ काम करने के लिए घर से निकलने से पहले बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद अवश्य लें और मुमकिन हो तो किसी जरूरतमंदों को घर बुलाकर भोजन कराएं। 
  2. वृषभ राशि: गोमती चक्र की पूजा करें। 
  3. मिथुन राशि: उत्पन्ना एकादशी के दिन मंदिर में चावल का दान करें। 
  4. कर्क राशि: भगवान विष्णु को केसर मिले दूध का भोग लगाएं और तुलसी माला धारण करें। 
  5. सिंह राशि: उत्पन्ना एकादशी के दिन शाम के समय विष्णु मंदिर में भगवान विष्णु के आगे घी का दीपक जलाएं। 
  6. कन्या राशि: उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा करें और भगवान को केसर की मिठाई का भोग लगाएं। 
  7. तुला राशि: भगवान विष्णु की पूजा के बाद किसी ब्राह्मण का आशीर्वाद लें और उन्हें दक्षिणा अवश्य दें। 
  8. वृश्चिक राशि: उत्पन्ना एकादशी के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ तुलसी की विशेष पूजा करें। 
  9. धनु राशि: विष्णु भगवान की पूजा के बाद उनके मंत्र का 108 बार स्पष्ट रूप से जाप करें। 
  10. मकर राशि: विष्णु भगवान की पूजा के बाद 10 मुखी रुद्राक्ष की पूजा करें और पूजा के बाद माला को अपने गले में धारण करें। (हालांकि यह उपाय रत्न (रुद्राक्ष) से संबंधित है। ऐसे में हमारा सुझाव यही है कि इस रुद्राक्ष को धारण करने से पहले एक बार किसी विद्वान ज्योतिषी से परामर्श अवश्य कर लें। 
  11. कुंभ राशि: भगवान विष्णु के साथ-साथ इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें। 
  12. मीन राशि: भगवान विष्णु की पूजा में रोली, धूप, दीप, अवश्य शामिल करें और दीपक अवश्य जलाएं।

उत्पन्ना एकादशी में इन बातों का रखें विशेष ध्यान 

  • उत्पन्ना एकादशी से एक दिन पहले केवल सात्विक भोजन करें। 
  • इस एकादशी से एक दिन पहले ही शाम के समय बाद दातुन से अपना मुंह साफ करें ताकि मुंह में कोई भी झूठा ना रह जाए। 
  • उत्पन्ना एकादशी से एक दिन पूर्व दशमी तिथि के दिन रात्रि भोजन ना करें। 
  • रात में सोते समय भगवान श्री हरि का स्मरण करें। 
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन खुद शुद्ध और साथ ही अपने घर को भी शुद्ध और साफ रखें। 
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन क्रोध भूल से भी ना करें, मन में किसी भी तरह का बुरा विचार ना लाएं, और किसी का बुरा न सोचें। 
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन रात को दीपदान अवश्य करें। 
  • उत्पन्ना एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान अवश्य करें।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

उत्पन्ना एकादशी से संबंधित व्रत कथा के अनुसार बताया जाता है कि, प्राचीन समय में एक असुर हुआ करता था जिसका नाम था मुर। मुर राक्षस ने पूरे जगत में तांडव मचा दिया था। मुर राक्षसों का राजा था उसके उत्पात से सभी देवता थक गए थे। ऐसी स्थिति में देवताओं ने राक्षस से छुटकारा पाने के लिए भगवान विष्णु को याद किया, उनका स्मरण किया। देवताओं की गुहार सुनकर भगवान विष्णु ने सैकड़ों वर्षो तक मुर राक्षस से संघर्ष किया। 

युद्ध के दौरान एक समय ऐसा आया जब भगवान विष्णु थककर कुछ समय के लिए विश्राम करने चले गए और उन्होंने एक गुफा में प्रवेश किया और यहीं पर उनकी आंख लग गई। इस गुफा का नाम हिमावती रखा गया। जब दानव मुर को इस बात की भनक लगी कि भगवान विष्णु गुफा के अंदर सो रहे हैं तो वह भगवान को मारने के लिए गुफा में आ गया। 

उसी दौरान एक सुंदर कन्या राक्षस के सामने प्रकट हुई और लंबी लड़ाई के बाद राक्षस को मार डाला। भगवान विष्णु जब निद्रा से जागकर राक्षस को मरा हुआ देखा तो उन्हें बड़ा अचरज हुआ। असुर मुर को मारने वाली यह सुन्दर स्त्री कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु का ही एक अंश थी और उनका नाम एकादशी रखा गया। बताया जाता है कि तभी से इस जीत के उपलक्ष में एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के रूप में मनाया जाने लगा।

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