भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न हुईं थी देवी एकादशी, व्रत से मिलता है अक्षय पुण्य

उत्पन्ना एकादशी 2023: पुराणों में सभी व्रतों में एकादशी व्रत का बड़ा महत्व बताया गया है। साल में 24 एकादशी का पर्व मनाया जाता है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। पद्मपुराण व अन्य ग्रंथों के अनुसार , इसी दिन भगवान विष्णु के अंश से एकादशी देवी की उत्पत्ति हुई थी। इस देवी ने मुर जैसे भयंकर राक्षस से भगवान विष्णु के प्राण बचाए जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने इन्हें एकादशी नाम दिया और वरदान दिया कि इनका पूजन-व्रत करने वालों को सभी सुख के साथ-साथ अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी। इस व्रत को करने से धर्म एवं मोक्ष मिलता है।

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इस साल उत्पन्ना एकादशी के दिन विशेष योग का निर्माण हो रहा है और इस योग में भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी। तो बिना देरी किए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं उत्पन्ना एकादशी की तिथि, पूजा मुहूर्त, महत्व और पौराणिक कथा के बारे में। साथ ही ,शुभ योग में किए जाने वाले ज्योतिषीय उपायों के बारे में भी।

उत्पन्ना एकादशी 2023: तिथि व मुहूर्त

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि 8 दिसंबर दिन शुक्रवार को पड़ेगी। 

एकादशी आरंभ: 08 दिसंबर 2023 की सुबह 05 बजकर 08 मिनट से

एकादशी समाप्त: 09 दिसंबर 2023 की सुबह 06 बजकर 31 मिनट तक।

उत्पन्ना एकादशी व्रत मुहूर्त 

उत्पन्ना एकादशी पारण मुहूर्त : 09 दिसंबर की दोपहर 01 बजकर 15 मिनट से 03 बजकर 19 मिनट तक। 

अवधि : 2 घंटे 4 मिनट

हरि वासर समाप्त होने का समय : 09 दिसंबर की दोपहर 12 बजकर 44 मिनट पर।

उत्पन्ना एकादशी पर शुभ योग

उत्पन्ना एकादशी के दिन सौभाग्य योग बन रहा है। यह एक मंगलकारी व शुभ योग है। इस योग में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से सुख, सौभाग्य और आय में वृद्धि होती है। इस योग में किए गए कार्य का परिणाम भी शुभ होता है। इस योग में सभी प्रकार के शुभ काम किए जा सकते हैं। माना जाता है कि इस योग में भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना चाहिए।

सौभाग्य योग आरंभ : 07 नवंबर 2023 की रात्रि 11 बजकर 59 मिनट से

सौभाग्य योग समाप्त : 09 नवंबर 2023 की मध्यरात्रि 12 बजकर 03 मिनट तक।

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उत्पन्ना एकादशी का महत्व

उत्पन्ना एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त इस शुभ दिन पर व्रत रखते हैं। उन्हें सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है और उन्हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, वह व्यक्ति सांसारिक मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य एकादशी माहात्म्य का पाठ करता हैं, उसे सहस्त्र गोदानों के पुण्य का फल प्राप्त होता है। भारत देश के उत्तरी भाग में, उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष के महीने में मनाई जाती है जबकि वहीं भारत के विभिन्न हिस्सों में यह कार्तिक के महीने में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता एकादशी की भी पूजा करने का विधान है। माता एकादशी जो कि भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न हुई थीं। इस एकादशी को वैतरणी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

उत्पन्ना एकादशी पर इस विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा

  • उत्पन्ना एकादशी के दिन प्रातः स्नान व ध्यान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
  • इसके बाद भगवान विष्णु व माता एकादशी का पंचामृत, पुष्प, धूप, दीप, चंदन,अक्षत,फल,तुलसी आदि से पूजन करना चाहिए।
  •  फिर आरती करें एवं उत्पन्ना एकादशी की कथा जरूर सुनें क्योंकि बिना कथा सुने व्रत अधूरा माना जाता है।
  • कथा सुनने के बाद भगवान विष्णु के मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करना चाहिए। साथ ही, इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करना चाहिए। ऐसा करना अति फलदायी माना गया है।
  • रात में भजन-कीर्तन करें और जाने-अनजाने कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए भगवान श्री हरि विष्णु से क्षमा मांगे। 
  • द्वादशी तिथि की सुबह सबसे पहले ब्राह्मणों या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर मुहूर्त पर व्रत पारण करें।
  • इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु सहित देवी एकादशी की पूजा करने से इस जीवन में धन और सुख की प्राप्ति तो होती ही है। यहीं नहीं परलोक में भी इस एकादशी के पुण्य से सर्वश्रेष्ठ स्थान मिलता है।

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उत्पन्ना एकादशी के दिन इन बातों का करें पालन

यदि आप उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने जा रहे हैं तो कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि थोड़ी सी भी अनदेखी आपके व्रत को खराब कर सकती है। तो आइए एक नज़र डालते हैं इन बातों पर।

  • उत्पन्ना एकादशी के दिन किसी भी प्रकार के तामसिक आहार से दूर रहना चाहिए।
  • इस दिन क्रोध करने व गलत व्यवहार करने से बचें।
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन सूर्य को हल्दी मिले जल से अर्घ्य दें। रोली या दूध का प्रयोग न करें।
  • यदि आपकी सेहत ठीक नहीं है या किसी प्रकार के रोग की दवा आप खाते हैं तो इस उपवास को न रखें। बस प्रक्रियाओं का पालन कर सकते हैं।
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन मिठाई व घर पर बनी खीर का भोग लगाएं।
  • भगवान विष्णु को भोग लगाते समय तुलसी जरूर अर्पित करें।

उत्पन्ना एकादशी: पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में एक नाड़ीजंघ नाम का एक राक्षस था। राक्षस का एक पुत्र था जिसका नाम था मुर और वह महापराक्रमी और बलवान दैत्य था, जिसने इंद्र, वरुण, यम, अग्नि,  वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सभी के स्थान पर अपना आधिपत्या स्थापित कर लिया था। सभी देवता उससे हार चुके थे। राक्षस मुर से सभी देवता परेशान होकर भगवान शिव के पास पहुंचे और अपनी व्यथा बताई। महादेव ने देवताओं से इस परेशानी के निवारण के लिए जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु के पास जाने के लिए कहा।

मायावी मुर ने स्वर्गलोक पर अपना अधिकार जमा लिया था। सभी देवता उससे बचने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। भगवान शिव की बात मानते हुए देवतागण श्रीहरि विष्णु के पास पहुंचे और विस्तार से इंद्र से अपनी पीड़ा बताई। देवताओं को मुर से बचाने का वचन देते हुए भगवान विष्णु रणभूमि में पहुंचे, जहां मुर अपनी सेना के साथ देवताओं से युद्ध कर रहा था। श्री हरि विष्णु को देखते ही मुर ने उन पर भी हमला कर दिया। कथा के अनुसार, यह युद्ध पूरे 10 हजार सालों तक चलता रहा। भगवान विष्णु के बाण से मुर का शरीर छिन्न-भिन्न हो गया लेकिन फिर भी उसने हार नहीं मानी।

युद्ध करते हुए भगवान विष्णु थक गए और बद्रिकाश्रम गुफा में जाकर आराम करने लगें। दैत्य मुर भी भगवान विष्णु का पीछा करते करते हुए उसी गुफा में पहुंचा। उसने देखा कि भगवान विष्णु सो रहे हैं और इसी का फायदा उठाकर वो श्रीहरि पर वार करने ही वाला था तभी भगवान विष्णु के शरीर से कांतिमय रूप वाली देवी अवतरित हुई और उस देवी ने भगवान विष्णु की जान बचाते हुए राक्षस का वध कर दिया।

भगवान विष्णु ने देवी से कहा कि आपका जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हुआ है इसलिए आज से आपका नाम एकादशी होगा। इसी दिन देवी एकादशी उत्पन्न हुई थी इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।

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उत्पन्ना एकादशी पर करें ये आसान उपाय

नौकरी व व्यापार में वृद्धि के लिए

नौकरी व व्यापार में प्रगति पाने के लिए उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु के समक्ष घी का नौ दीपों वाला दीपक जलाएं। साथ ही, केसर वाले दूध से उनका अभिषेक करें। ऐसे करने से नौकरी व व्यापार में आने वाली समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।

माता लक्ष्मी की कृपा के लिए

यदि आप धन की समस्या से जूझ रहे हैं तो इस दिन केसर वाली खीर बनाकर सात या नौ छोटी कन्याओं को घर बुलाकर खिलाएं। बाद में कन्याओं का पैर छूकर और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें। ऐसा करने से आपको आर्थिक स्थिरता प्राप्त होगी।

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ग्रहों के दोषों से मुक्ति पाने के लिए

यदि आप शनि, राहु और केतु के बुरे प्रभाव से प्रभावित है तो इस दिन काले, नीले, भूरे, कत्थई या ऐसे ही गहरे रंगों के वस्त्र धारण न करें। संभव हो तो सफेद, क्रीम, हल्का पीला, गुलाबी जैसे रंगों के वस्त्र धारण करें। ऐसा करने से जीवन में आने वाले सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है।

नकारात्मकता दूर करने के लिए

घर से नकारात्मकता दूर करने के लिए एकादशी के दिन रात को सोते समय सभी कमरों में 100 ग्राम सेंधा नमक एक अखबार पर रखें और सुबह इसे घर से दूर किसी गंदे नाले में फेंक दें। ध्यान रहे इस दौरान पीछे मुड़कर भूलकर भी न देखें। ऐसा करने से घर का माहौल खुशनुमा होता है।

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