गणेश चतुर्थी विशेष: तो इसलिए कहा जाता है गणेश जी को मंगलमूर्ति !

आने वाले 2 सितंबर को देश भर में हर्षोंउल्लास के साथ गणपति बप्पा मोरया के जयकारों के साथ गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाएगा। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में गणेश जी को विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता है। गणपति, गजानन, विनायक, लम्बोदर, मंगलमूर्ति आदि। आज हम आपको विशेष रूप से बताने जा रहे हैं कि आखिर गणेश जी को मंगलमूर्ति क्यों कहा जाता है। आइये जानते हैं गणेश जी के इस नाम के पीछे छिपे मुख्य तथ्यों को।

इसलिए कहा जाता है गणेश जी को मंगलमूर्ति

आपको बता दें कि हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी को मंगलमूर्ति इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनका संपूर्ण परिवार मंगल कार्यों में संलिप्त है। स्वयं देवों के देव महादेव संसार की गाड़ी चलाने में सहायक हैं। माता पार्वती जगत जननी है, अपने भक्तों पर उनकी विशेष कृपा रहती है। गणेश जी के बड़े भाई कार्तिकेय देव देवसेना के प्रमुख माने जाते हैं। उनकी पत्नियां ऋध्दि और सिद्धि सुख समृद्धि की देवी मानी जाती है। गणेश जी स्वयं सभी विघ्नों को हरने वाले विघ्नहर्ता कहलाते हैं। कुलमिलाकर देखा जाए तो गणेश जी सहित उनका संपूर्ण परिवार मंगल कार्यों में लीन रहता है इसलिए उन्हें मंगलमूर्ति के नाम से भी लोग संबोधित करते हैं। इसके आलावा ऐसा माना जाता हैं कि उनके माता पिता श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक हैं। गौरतलब है कि हर काम को करने के लिए इन दोनों चीज़ों की आवश्यकता जरूर होती है। चूँकि गणेश जी का जन्म श्रद्धा और विश्वास से हुआ है और वो आनंद के दाता माने जाते हैं। इसलिए भी उन्हें मंगलमूर्ति कहकर पुकारा जाता है।

हिन्दू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूज्य माना जाता है 

श्रीरामचरित मानस के सौवें दोहे में कहा गया है कि “मुनि अनुसासन गणपतिहि पूजेउ संभु भवानि, कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।”, इस दोहे का अर्थ है कि ऋषि मुनियों की आज्ञा से शिव जी और माता पार्वती ने अपने विवाह से पूर्व गणेश जी की पूजा अर्चना की थी। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि क्योंकि जब गणेश जी शिव जी के पुत्र हैं तो फिर वो उनके विवाह में कैसे उपस्थित थे। इस सन्दर्भ में कहा जाता है कि उनका प्रतीक हमेशा से ही निहित है। देवमंडल में 49 ऐसी मरूत गण देवता हैं जो समूह में पूजे जाते हैं। उन्हीं समूहों में गणेश जी पहले ऐसे देवता है जिनकी पूजा सबसे पहले की जाती है। इसलिए पौराणिक धार्मिक आधारों पर ऐसा कहा जाता है कि जब शिव और पार्वती का विवाह हुआ था उस समय भी किसी ना किसी रूप में गणेश जी वहां मौजूद रहे होंगें।

स्वयं शिव जी ने दिया प्रथम पूज्य होने का वरदान

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब गणेश जी और उनके भाई कार्तिकेय में पृथ्वी की परिक्रमा करने के प्रतिस्पर्धा की शुरुआत हुई तो महान विद्वान और बुद्धिमान गणेश जी ने एक बार में ही माता पार्वती और पिता महादेव का परिक्रमा कर उसे संपूर्ण जगत के परिक्रमा करने के बराबर बताया, जबकि कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा पर निकल पड़ें। गणेश जी की बुद्धिमत्ता से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें संसार में सबसे पहले पूजे जानें का वरदान दिया। इसलिए हर शुभ अवसर पर किसी भी अन्य देवता की पूजा अर्चना से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है।

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