हमारे देश में अनेकों शिव मंदिर हैं। हर मंदिर से जुड़ी कोई न कोई कथा प्रचलित है, जिसकी वजह से उस मंदिर का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। ऐसा ही एक शिव मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल में भी स्थित है। इस प्राचीन शिवमदिर को लोग “ताड़केश्वर महादेव मंदिर” के नाम से जानते हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थ रामायण में भी ताड़केश्वर धाम का वर्णन किया गया है, जिसमें इसे एक दिव्य और पावन आश्रम बताया गया है। साल भर मंदिर में देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं। लेकिन श्रावण मास के समय तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। समुद्र तल से करीब छह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर को भगवान शिव का विश्राम स्थल कहा जाता है। इस मंदिर का इतिहास श्रद्धालुओं की आस्था को और भी अधिक प्रबल बनाता है। तो चलिए आज इस लेख में आपको ताड़केश्वर महादेव मंदिर के इतिहास के विषय में बताते हैं –
क्या है इस मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय में ताड़कासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। भगवान शिव से अमरता का वरदान पाने के बाद वह बेहद अत्याचारी हो गया। ताड़कासुर के अत्याचारों को देखते हुए भगवान शिव ने उसका वध कर दिया। वध करने के बाद भगवान शिव ने इसी स्थान पर आकर विश्राम किया। विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणे पड़ रही थी। सूर्य की किरणों की गर्मी से बचाने के लिए माता पार्वती ने शिव के चारों ओर देवदार के सात वृक्ष लगाए थे। आज भी ये सात वृक्ष ताड़केश्वर मंदिर के अहाते में मौजूद हैं और इस मंदिर की शोभा को बढ़ा रही हैं।
इन वजहों से भी ये मंदिर है खास
देवदार के ऊंचे वृक्षों से घिरा ताड़केश्वर मंदिर उत्तराखंड के जनपद पौड़ी में पर्यटन नगरी लैंड्सडाउन के करीब स्थित है। स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में विष गंगा और मधु गंगा नामक दो पावन गंगाओं का वर्णन किया गया है। इन दोनों महत्वपूर्ण नदियों का उदगम स्थल ताड़केश्वर धाम ही है। माना जाता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी कर देते हैं। ताड़केश्वर मंदिर को महादेव के सिद्ध पीठों में से एक कहा जाता है। हर साल महाशिवरात्रि के समय इस मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस मंदिर परिसर में एक कुंड भी है, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि इसे माता लक्ष्मी ने खोदा था।
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