स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर जानें, क्या कहती है उनकी कुंडली

स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को पूरे भारत वर्ष में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश के स्कूल, कॉलेजों में प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है और स्वामी विवेकानंद जी द्वारा दी गई शिक्षाओं को याद किया जाता है। भारत का नाम पूरे विश्व में विख्यात करने वाले स्वामी जी की जयंती पर आज हम उनकी कुंडली के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करेंगे। कुंडली अध्ययन के जरिये हम आपको बताएंगे कि ग्रहों की वह कौन सी स्थितियां थी जिन्होंने स्वामी जी को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाई। 

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स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली

लग्न कुंडली
नवमांश कुंडली

स्वामी जी की कुंडली की कुछ खास बातें

विवेकानंद जी की कुंडली धनु लग्न की है जिसका स्वामी ग्रह बृहस्पति है। खास बात यह है कि नवमांश कुंडली में भी उनका लग्न धनु राशि का ही है और लग्न और नवमांश दोनों ही कुंडलियों में सूर्य प्रथम भाव में धनु राशि में विराजमान है। सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है जो स्वामी जी की कुंडली में वर्गोत्तम है। यह इंगित करता है कि स्वामी जी का आत्मविश्वास बहुत प्रबल था। इसके साथ ही उनकी आत्मा भी पवित्र थी। सूर्य के वर्गोत्तम होने से यह भी पता चलता है कि वह किसी भी स्थिति में निडर बने रहते थे। निर्भिकता उनके व्यक्तित्व का विशेष गुण था। लग्न बृहस्पति की राशि का है जिसे देवताओं का गुरु भी कहा जाता है इसलिए स्वामी जी ने अपने ज्ञान से कई लोगों के जीवन को सुधारा। दुनिया को सत्य मार्ग को अपनाने का संदेश दिया। 

कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति

स्वामी जी की कुंडली के दशम भाव में शनि ग्रह विराजमान है, इस भाव में शनि को मजबूत माना जाता है और यह व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलवाता है। इसके साथ ही चंद्रमा के साथ भी यह युति बना रहा है, यह युति दर्शाती है कि व्यक्ति प्रतिभावान और कई विद्याओं को जानने वाला होगा। ऐसे लोगों में जिज्ञासा भी कूटकूटकर भरी होती है। ऐसे लोग हर विषय की तह तक जाना पसंद करते हैं और आसानी से किसी पर विश्वास ऐसे लोगों को नहीं होता। स्वामी जी में भी यह गुण विद्यमान था। 

बृहस्पति की एकादश भाव में स्थिति

बृहस्पति ग्रह स्वामी जी की कुंडली के एकादश भाव में विराजमान है। बृहस्पति को आध्यात्मिकता का कारक भी कहा जाता है और एकादश भाव लाभ का होता है। यह इंगित करता है कि व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र से लाभ मिलेगा। वहीं मंगल ग्रह उनके पंचम भाव में अपनी स्वराशि मेष में विराजमान है यह संयोग शिक्षा के क्षेत्र के लिए उत्तम माना जाता है। 

शुक्र, बुध और राहु-केतु की उपस्थिति

स्वामी जी की कुंडली में राहु-केतु ग्रह षष्ठम और द्वादश भाव में विराजमान है। द्वादश भाव में राहु का होना भी आध्यात्मिकता में वृद्धि कारक माना गया है क्योंकि इस घर से व्यक्ति के अचेतन मन का पता चलता है। स्वामी जी की कुंडली के द्वितीय भाव जिसे वाणी का भाव भी कहा जाता है में बुध और शुक्र की यति हो रही है। बुध संचार और वाणी का कारक ग्रह है वहीं शुक्र कला का। इन दोनों की द्वादश भाव में युति ने स्वामी जी को स्पष्ट वाणी प्रदान की जिसके जरिये उन्होंने पूरे विश्व में भारत का नाम रौशन किया। 

विवेकानंद जयंती पर इन शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारें

जीवन को सफल बनाने के लिए स्वामी विवेकानंद जी ने कुछ महत्वपूर्ण बातें बतायी थीं। उनकी इन शिक्षाओं को यदि हम अपने जीवन में उतारें तो कई परेशानियों से बच सकते हैं। आइए जानते हैं स्वामी जी द्वारा दी गई कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं।  

खुद को जानें- स्वामी जी ने लोगों को यह बताया कि स्वयं को जानने से हम जीवन की कई समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं। जितना हम खुद को जानेंगे उतने विकास के पथ पर आगे बढ़ पाएंगे। 

सफलता पाने के लिए दृढ़ निश्चय बनें– विचारों की दृढ़ता पर विवेकानंद जी ने बहुत जोर दिया। वह मानते थे कि जब तक किसी चीज को पाने का दृढ़ निश्चय हम में नहीं होता तब तक उसकी प्राप्ति नहीं हो सकती। 

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत– अर्थात उठो, जागो, और ध्येय की प्राप्ति तक मत रूको। विवेकानंद जी ने आजीवन कई शिक्षाएं लोगों को दीं यदि हम उनमें से कुछ को भी अपने जीवन में उतार लें तो जीवन में हर सफलता पा सकते हैं।

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