जानिए सूर्य उपासना का महत्व और इससे जुड़े महत्वपूर्ण नियम

वैदिक ज्योतिष में सूर्य देव को पिता का दर्जा प्राप्त है। वैदिक काल से ही भगवान सूर्य की उपासना की जाती रही है। त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने सूर्यवंशी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के रूप में जन्म लिया था तो वे भी अपने दिन की शुरुआत सूर्य देव को जल अर्पित करके ही किया करते थे। 

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पंचदेव उपासना जिसमें गणेश उपासना, शिव उपासना, विष्णु उपासना, देवी भगवती दुर्गा उपासना को महत्व दिया जाता है, उसमें सूर्य उपासना का भी महत्वपूर्ण स्थान है। मान्यता है कि सूर्य देव की उपासना से जातक रोग-दोष से मुक्ति प्राप्त करते हैं। सूर्य देव को अर्घ्य बेहद प्रिय है। ऐसे में सूर्य देवता को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है कि आप उन्हें प्रतिदिन जल अर्पित करें। सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है क्योंकि वह हमें नग्न आँखों से भी दिखते हैं।

कुंडली में सूर्य देवता के स्थान से जातकों का जीवन विशेष तौर से प्रभावित होता है। सूर्य देव नवग्रह के राजा हैं इसलिए यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य दृढ़ स्थिति में होता है तो सूर्य अन्य ग्रहों के दोष को भी हर लेते हैं। सूर्य की ऊर्जा से शरीर के अंग सुचारू रूप से कार्य करते हैं। प्रातः काल सूर्य की किरणों में रहने से शरीर में विटामिन डी की कमी नहीं होती है। सूर्य पूरी पृथ्वी के अंधकार को दूर करते है और सृष्टि में प्राण शक्ति का प्रवाह करते हैं। यही वजह है कि सूर्य को सम्पूर्ण जगत के प्राणियों के आत्मा का कारक कहा गया है।

सूर्य की कृपा दृष्टि से होने वाले लाभ

  • ऐसा माना जाता है कि यदि सूर्य देव आपसे प्रसन्न हैं, यदि उनकी कृपा दृष्टि आपके ऊपर है तो आपके सभी बिगड़े काम बन जाते हैं और रास्ते में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाएं दूर होती है। 
  • ऐसी स्थिति में धन प्राप्ति के योग बनते है।
  • कुंडली में मौजूद ग्रह-दोष के नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं।
  • घर में सुख, शांति और खुशहाली का माहौल बना रहता है।
  • नवग्रह देवताओं के दोष दूर होते है।
  • व्यक्ति के कार्य कौशल और कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। नेतृत्व की शक्ति बढ़ती है।
  • सूर्य किसी पुरुष जातक की कुंडली में पिता के कारक माने जाते हैं। यदि सूर्य की स्थिति किसी जातक की कुंडली में मजबूत हो तो उस जातक के अपने पिता के साथ अच्छे संबंध रहते हैं। वहीं महिलाओं की कुंडली में सूर्य पति के कारक माने गए हैं।
  • सूर्य हृदय के कारक भी माने जाते हैं। सूर्य यदि कमजोर हो तो जातक को हृदय संबंधी बीमारियां परेशान करती हैं।
  • सरकारी नौकरी के अवसर मिलते हैं तथा व्यापार में नए अवसर प्राप्त होते हुए लाभ होते हैं।

जिस जातक की कुंडली में सूर्य नकारात्मक फल देने की स्थिति में हों, उन्हें सूर्य देव की उपासना करते हुए उन्हें जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। वैसे तो नित्य दिन ही सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए परंतु किसी कारणवश यदि ऐसा न हो पाए तो आप मात्र रविवार और सप्तमी तिथि को भी सूर्य देव को अर्घ्य दे सकते हैं। इससे भी आपको समान रूप से ही शुभ फल प्राप्त होता है। जो महिलाएं सप्तमी तिथि को व्रत करते हुए सूर्य की पूजा करती हैं उन्हें पति, पुत्र, धन-धन्य का सुख प्राप्त होता है। वहीं जो पुरुष सप्तमी तिथि को सूर्य देव की उपासना करते हैं, उन्हें समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है। 

सूर्य उपासना के नियम 

  • नियम के अनुसार सूर्योदय के 1 घंटे के भीतर ही यानी कि जब भगवान सूर्य की रौशनी लाल किरणों से परिपूर्ण हो तभी उन्हें जल अर्पित कर देना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस समय जल अर्पित करने से जातकों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • यदि किसी कारणवश ऐसा करना संभव न हो तो भगवान सूर्य को सुबह 8 बजे तक जल अर्पित कर देना चाहिए।
  • सूर्य को स्नान के बाद ही जल अर्पित करें। सफ़ेद और लाल वस्त्र धारण करके अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना जाता है।
  • सूर्य को जल देते समय उसमें पुष्प या अक्षत (चावल) ज़रूर मिलाएं। इससे भगवान सूर्य अति प्रसन्न होते हैं।
  • सूर्य भगवान को हमेशा पूर्व दिशा यानी कि जहाँ से वे उदित होते है उस ओर मुख करके ही जल अर्पित करना चाहिए।
  • यदि किसी दिन बादलों की वजह से सूर्य देव नज़र न आएं तो भी पूर्वामुख होकर ही जल अर्पित करें।
  • सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए शीशे, प्लास्टिक और चांदी के पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। 
  • जल चढ़ाने के लिए सदैव तांबे, पीतल या कांसे के लोटे का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • वैसे तो सूर्य देव की उपासना हर रोज़ करनी चाहिए मगर ऐसा न होने पर कम से कम सूर्य के तीन नक्षत्र कृतिका, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा में सूर्य को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों का जाप और पुण्य दान जरूर करना चाहिए।
  • विद्यार्थियों के लिए सूर्य की उपासना अत्यंत फलदायी मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि पानी में इंक या नीला रंग डालकर सूर्य देवता को अर्घ्य देने से मन लगाकर पढ़ने में सहायता मिलती है।
  • सूर्य को जल देने वाले जातकों को पिता का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वैदिक ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक बताया गया है। वे जातक जो पिता का सम्मान नहीं करते, सूर्य देवता उनसे रुष्ट हो जाते हैं। महिला जातकों को सूर्य को मजबूत करने के लिए अपने पति का सम्मान करना चाहिए।
  • जब सूर्य देव को जल अर्पित करें तो दोनों हाथ सर के ऊपर होने चाहिए। इससे सूर्य की सातों किरणें पानी की धार से होती हुई शरीर पर पड़ती है जिससे जातक के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

सूर्य का मंगल कनेक्शन 

मान्यता है कि यदि सूर्य देव को मीठा अर्थात मिश्री मिलाकर जल अर्पित किया जाए तो इससे जातकों को मंगल दोष से मुक्ति प्राप्त होती है। जिन जातकों की कुंडली में मांगलिक दोष है वह मंगल के उपचार के लिए इस उपाय का प्रयोग कर सकते हैं। यदि मंगल पहले से ही शुभ स्थिति में हो तो ऐसी स्थिति में भी सूर्य को अर्पित किए गए मीठे जल से मंगल की शुभता को बढ़ाया जा सकता है।

सूर्य को जल चढ़ाते हुए रखें कुछ सावधानियों का ध्यान

  • सूर्य को जल चढ़ाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जल की बूंदें सीधे आपके पैरों पर न गिरे। ऐसा होने से आप दोष के भागीदार हो जाते हैं। हालांकि यदि जल पृथ्वी पर गिरने के बाद आपके पैरो पर गिरता है तो इससे किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है।
  • बिना स्नान किए सूर्य देव को जल न चढ़ाएं। हमेशा स्वच्छ वस्त्र धारण करके ही जल अर्पित करें।
  • इस बात का ध्यान रखें कि जल अर्पित करते हुए आपके पास चमड़े का कोई सामान न हो। चप्पल पहन कर कभी भी सूर्य को जल अर्पित न करेंI
  • जल अर्पित करते समय इस बात का भी ध्यान रखना जरुरी है कि वह नाली के पास न गिरे अथवा ऐसे किसी स्थान पर न गिरे जहां लोगों के पैर उसके ऊपर पड़ रहे हों।
  • सूर्य को अर्पित जल को पैरों पर गिरने से रोकने या नाली आदि में जाने से रोकने के लिए आप जल को किसी गमले अथवा किसी शुद्ध बर्तन में गिराते हुए अर्पित कर सकते हैं। बाद में इस जल को किसी पेड़ की जड़ में डाल दें।

कैसे अर्पित करना चाहिए सूर्य को जल

  • सूर्य को जल अर्पित करने के लिए सबसे उत्तम स्थान जलाशय या नदी को माना जाता है किन्तु ऐसा हर व्यक्ति के लिए कर पाना संभव नहीं है। इसलिए जातक किसी शुद्ध स्थान जैसे कि मंदिर में जाकर जल अर्पित कर सकते हैं। यदि मंदिर में भी जाना संभव न हो तो घर की छत पर या बालकनी से भी सूर्य को जल अर्पित किया सकता है। शास्त्रों के अनुसार यदि किसी कारणवश जातक उपरोक्त किसी भी प्रकार से सूर्य को अर्घ्य नहीं दे पा रहें है तो वह पूर्वामुख होकर सूर्य का ध्यान करते हुए किसी तांबे के पात्र या किसी शुद्ध बर्तन से भी सूर्य को जल अर्पित कर सकते हैं। 
  • सूर्य देव को एक ही पात्र से तीन बार जल अर्पित करना चाहिए। ऐसे में हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि सूर्य को जब भी जल अर्पित करें तो आपके पात्र में इतना जल हो कि उससे भगवान सूर्य को तीन बार जल अर्पित किया जा सके। हर बार जल चढ़ाने के बाद आपको अपने स्थान पर खड़े होकर एक परिक्रमा करते हुए मंत्रोच्चार करना चाहिए।

सूर्य उपासना के लिए मंत्र 

  1. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
  2. ॐ सूर्याय नम:। 
  3. ॐ भास्कराय नम:।
  4. ॐ रवये नम:। 
  5. ॐ मित्राय नम:।
  6. ॐ भानवे नम:।
  7. ॐ खगय नम:।
  8. ॐ मारिचाये नम:।
  9. ॐ आदित्याय नम:। 
  10. ॐ सावित्रे  नम: । 
  11. ॐ आर्काय नम: । 
  12. ॐ हिरण्यगर्भाय नम:। 
  13. ॐ पूष्णे नम:।

अगर कोई जातक किसी भी कारणवश मंत्र जाप नहीं कर सकता तो वह जल अर्पित करते हुए गायत्री मंत्र अथवा हनुमान चालीसा का भी पाठ कर सकता है।

क्या महिलाएं भी कर सकती हैं सूर्य उपासना?

सूर्य को कोई भी जातक जल अर्पित कर सकता है। बस जल अर्पित करते हुए महिलाओं को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए जैसे कि महिलाओं को हमेशा बाल बाँध कर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई स्त्री सुहागन है तो उन्हें सिन्दूर लगा कर सूर्य देवता को जल अर्पित करना चाहिए। काले रंग के या फिर गंदे वस्त्र धारण करके सूर्य देवता को कभी भी अर्घ्य नहीं देना चाहिए। मान्यता है कि महिलाओं के लिए सिंदूर सौभाग्य का, दूर्वा संतान की वृद्धि का, अक्षत या जौ अखंड सुख तथा लाल पुष्प लक्ष्मी प्राप्ति का प्रतीक है।

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