रविवार के दिन ऐसे करें सूर्य देव को प्रसन्न! जानें नियम और पूजा विधि

रविवार का दिन सूर्य भगवान के लिए समर्पित है। इसलिए रविवार व्रत उनके लिए ही रखा जाता है। शास्त्रों में सूर्य को सृष्टि की आत्मा कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य ग्रह सभी ग्रहों के राजा हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ग्रह कमज़ोर होता है तो वह व्यक्ति रविवार का व्रत कर अपने सूर्य ग्रह को मजबूत बना सकता है। यह धरती पर ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत है। पेड़-पौधों, मनुष्यों और अन्य जीव-जंतुओं को सूर्य से ही ऊर्जा मिलती है।  

रविवार व्रत का महत्व

हिन्दू धार्मिक ग्रंथो में देवी/देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए भक्तों को पूजा-अर्चना, व्रत का पालन तथा दान करने के लिए कहा गया है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्रत या उपवास करना ईश्वर की भक्ति करने का मार्ग है। धार्मिक दृष्टि से ऐसा कहा जाता है कि सूर्य की कृपा जिस व्यक्ति के ऊपर हो जाए तो उस व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान और नौकरी में उच्च पद की प्राप्ति होती है। सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति के अंदर राजसी गुण पैदा होते हैं। व्यक्ति समाज का नेतृत्व करता है। इसलिए सूर्य की कृपा दृष्टि पाने के लिए भक्तजन रविवार को उनका व्रत रखते हैं। लेकिन इस व्रत को विधि अनुसार ही किया जाना चाहिए।  

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रविवार व्रत की विधि

  • रविवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें,
  • स्नान कर स्वच्छ कपड़े धारण करें,
  • सूर्य देव का स्मरण करें,
  • सूर्योदय के समय जल में रोली, लाल पुष्प, अक्षत तथा दुर्वा मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें,
  • अर्घ्य देने से पूर्व सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें,
  • व्रत के दौरान रविवार व्रत कथा का पाठ करें,
  • सूर्यास्त के समय पूजा अर्चना के बाद सात्विक भोजन करें

सूर्य का वैदिक मंत्र

ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। 

हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।।

सूर्य का तांत्रिक मंत्र 

ॐ घृणि सूर्याय नमः

सूर्य का बीज मंत्र 

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः

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व्रत हेतु पूजा सामग्री

  • धूप
  • अगरबत्ती
  • जल पात्र
  • रोली
  • लाल चंदन
  • लाल पुष्प
  • अक्षत
  • दुर्वा
  • कपूर
  • पंचामृत

रविवार व्रत का उद्यापन

व्रत का उद्यापन रविवार के दिन ही करना चाहिए। उद्यापन के लिए व्रत सामग्री आवश्यक है। व्रत का उद्यापन विधि अनुसार करने के पश्चात ही व्यक्ति को उसका वास्तविक फल मिलता है। इसलिए इस पवित्र कार्य को आपको किसी अच्छे और योग्य पंडित के द्वारा ही करना चाहिए। उद्यापन में दान-दक्षिणा का भी विधान है।

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उद्यापन विधि

  • उद्यापन वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।  
  • पूजा हेतु ब्राह्मण द्वारा चार द्वारों का मंडप तैयार करें।
  • लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कोरा वस्त्र बिछाएं। 
  • कमल के फूल को स्थापित करें। 
  • कमल में जल से भरा कलश स्थापित करें। 
  • भगवान की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराकर चांदी के रथ के साथ स्थापित करें। 
  • इसके बाद वेदी बनाकर देवताओं का आह्नान करें।   
  • गंध, पुष्प, धूप, नैवेद्य, फल, दक्षिणा, फूल, आदि देवताओं को अर्पित करें। 
  • मंत्र सहित हवन आरम्भ करें। 
  • हवन की समाप्ति पर यथाशक्ति दक्षिणा अथवा शनि से संबंधित वस्तुएँ दान करें। 
  • तत्पश्चात ब्राह्मण को भोजन करा कर विदा करें और स्वयं भोजन करें। 

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