कर्क में गोचर कर सूर्य बनाएंगे अपने शत्रु शनि के साथ “समसप्तक योग”!

ज्योतिष विज्ञान में समस्त ग्रहों में से सूर्य को ग्रहों के राजा की उपाधि प्राप्त है। ज्योतिष दृष्टि के साथ-साथ धार्मिक दृष्टि से भी सूर्य का विशेष महत्व होता है। यही कारण है कि सूर्य का हर एक स्थान परिवर्तन व गोचर समस्त मनुष्य जाति व प्रकृति के लिए महत्वपूर्ण होता है। सूर्य ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करना संक्रांति कहलाता है। 

दरअसल संक्रांति सूर्य ग्रह की सौर घटना है, जो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में कुल 12 बार पड़ती हैं। हर एक संक्रांति की अपनी अलग विशेषता और महत्वता होती है। स्वयं कई वैदिक शास्त्रों में भी संक्रांति की तिथि और अवधि को विशेष स्थान दिया गया है। 

सूर्य के कर्क राशि में गोचर की अवधि 

अब 16 जुलाई, 2022 की रात 10 बजकर 50 मिनट पर सूर्य ग्रह कर्क राशि में प्रवेश करेंगे, जिसके चलते इस दिन को देशभर में कर्क संक्रांति के रूप में मनाया जाएगा। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कर्क संक्रांति से ही सूर्यदेव अपनी दक्षिण यात्रा शुरू करते हैं यानी कि सूर्य देव उत्तरायण से दक्षिणायन हो जाते हैं। ये संक्रांति श्रावण मास में आने के कारण इसे कई राज्यों में श्रावण संक्रांति भी कहा जाता है। 

एस्ट्रोसेज के विशेषज्ञों के अनुसार कर्क संक्रांति ऋतु परिवर्तन का भी संकेत देती है। सूर्य के दक्षिणायन होने से दिन सामान्य से छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं। जहाँ ज्योतिषी इसे सूर्य देव के राशिपरिवर्तन के रूप में तो वहीं वैज्ञानिक इसे एक खगोलीय घटना के रूप में देखते हैं। अब सूर्य 16 जुलाई को उत्तरायण से दक्षिणयाण होते हुए सभी 12 राशियों पर अपना प्रभाव दिखाएंगे। ऐसे में आइये जानें कर्क संक्रांति से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। 

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सूर्य के दक्षिणायन का महत्व 

  • कर्क संक्रांति से सूर्य के दक्षिणायन का आरंभ होता है, जिसकी समाप्ति मकर संक्रांति के साथ होती है।
  • दक्षिणायन में सूर्य एक-एक महीने की अवधि के दौरान कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में अपना गोचर करते हुए, कई राशियों पर अपना अनुकूल व कुछ में प्रतिकूल प्रभाव दिखाएंगे। 
  • सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन होना मौसम में कई बड़े बदलाव लेकर आता है। दक्षिणायन की बात करें तो कर्क संक्रांति से इसकी शुरुआत होना मानसून के आगाज का संकेत देती हैं। 
  • सूर्य के दक्षिणायन का हिन्दू धर्म में भी विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि ये छह महीने की अवधि देवताओं की रात्रि का प्रतीक है। 
  • इस दौरान देवता शयन करते हैं, जिससे उनकी शुभ शक्तियां क्षीण हो जाती हैं और पृथ्वी पर नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है। यही कारण है कि इस समय पूजा-पाठ, दान, तप, यज्ञ आदि का महत्व भी अधिक होता है। 

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दक्षिणायन में शुभ व मांगलिक कार्य होते हैं वर्जित 

  • दक्षिणायन में भगवान विष्णु और महादेव की पूजा किये जाने का विधान है। इस दौरान पितरों की शांति के लिए पूजा, दान-पुण्य व पिंडदान करना फलदायी होता है। 
  • सनातन धर्म में  दक्षिणायन में ही चातुर्मास आता है, जो चार महीनों की अवधि होती है। इसमें भगवान विष्णु चार महीने तक क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं इसलिए देवशयनी एकादशी के बाद से ही हर प्रकार के मांगलिक व शुभ कार्य करना निषेध माना जाता है। 
  • दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक भी माना जाता है इसलिए जब सूर्य दक्षिणायन होते है तब शुभ कार्य फलीभूत नहीं होते हैं। 
  • चूंकि दक्षिणायन देवताओं की रात्रि का प्रतीक भी है, इसलिए इस दौरान विवाह, मुंडन, उपनयन, गृह प्रवेश आदि जैसे कार्य वर्जित होते हैं। 

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सूर्य के कर्क में गोचर से आएंगे ये बड़े बदलाव

वैदिक ज्योतिषियों की मानें तो कर्क में सूर्य के गोचर के दौरान सूर्य पर मंगल की चतुर्थ दृष्टि व गुरु बृहस्पति की पंचम उच्च शुभ दृष्टि भी होगी। इसके कारण देशभर में शेयर मार्किट के अलावा सभी बाज़ारों में बड़े स्तर पर उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे। 

सूर्य के कर्क में गोचर करने के अगले ही दिन यानी 17 जुलाई को देर रात 12 बजकर 01 मिनट पर बुध देव भी कर्क में अपना गोचर करते हुए, सूर्य देव के साथ युति करेंगे। सुर्य-बुध की इस युति से कर्क राशि में “बुधादित्य योग” बनेगा, जिससे कर्क जातकों की वाणी में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे।    

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शनि के साथ सूर्य का बनेगा “समसप्तक योग” 

16  जुलाई को सूर्य कर्क में अपना गोचर करते हुए अपने शत्रु ग्रह शनि के साथ समसप्तक योग का निर्माण करेंगे। यूँ तो शनि देव सूर्य देव के पुत्र होते हैं। परंतु ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों के बीच शत्रुता का भाव होता है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो जब भी कोई दो ग्रह एक-दूसरे से सप्तम स्थान या भाव में होते हैं, तो उस स्थिति में उन ग्रहों के बीच समसप्तक योग का निर्माण होता है। 

सरल शब्दों में कहें तो जब कोई दो ग्रह अपनी सातवीं पूर्ण दृष्टि से एक-दूसरे को देखते हैं, तब समसप्तक योग बनता है। वर्तमान में शनि 12 जुलाई, 2022 की सुबह अपनी स्वराशि मकर में वक्री हुए हैं और सूर्य का अब 16 जुलाई को कर्क में प्रवेश करना, शनि-सूर्य की एक-दूसरे से सातवें स्थान की दूरी को दर्शाएगा। 

इस समसप्तक योग के कारण देशभर में तनाव, अशांति और डर का माहौल बनने की आशंका रहेगी। इसके अलावा इस दौरान शनि अपनी वक्री अवस्था में होंगे और अब जो उनके सूर्य शत्रु ग्रह हैं वो कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में वक्री शनि और सूर्य के बीच इस योग का बनना, देश-दुनिया में अनचाहे बदलाव और दुर्घटनाएं उत्पन्न करेगा। साथ ही कई राशि के जातकों को इस योग के कारण शारीरिक व मानसिक कष्ट भी संभव होगा। 

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विभिन्न राशियों पर सूर्य के कर्क में गोचर का प्रभाव 

  • कर्क राशि में सूर्य के गोचर के दौरान खासतौर से धनु, मकर और मीन राशि के जातकों को थोड़ा सावधान रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि सूर्य देव इन राशि के जातकों को इस अवधि में कुछ समस्या दे सकते हैं। 
  • जबकि मेष, वृषभ, कर्क, कन्या  और वृश्चिक राशि के जातकों को इस दौरान सामान्य से बेहतर फल मिलने की संभावना रहेगी। 

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सूर्य के कर्क राशि में गोचर के दौरान किये जाने वाले उपाय   

  • सूर्य के कर्क राशि में गोचर के दौरान यानी कर्क संक्रांति के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर किसी नदी, कुएँ, कुण्ड या अन्य किसी पवित्र तालाब में स्नान करना चाहिए।
  • स्नान के बाद सूर्य देव के मंत्र “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः” का जप करते हुए, उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। 
  • इस दिन सूर्य देव की पूजा-आराधना के साथ-साथ भगवान विष्णु और भगवान शिव का भी पूजन किया जाता है।  
  • मान्यता है कि स्नान आदि के बाद इनका पूजन करने से व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति अपने जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य प्राप्त करता है।
  • किसी भी मंदिर में जाकर सूर्य ग्रह से संबंधित वस्तुओं जैसे: गुड़, गेहूं, तांबा, माणिक्य रत्न, लाल पुष्प, खस, मैनसिल आदि का दान करें। 
  • जरूरतमंदों व गरीबों में गुड़ और अन्न बाटें। 
  • इस दौरान पितरों की शांति व पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए भी दान-पुण्य किये जाने का विधान है। 
  • सूर्य के कर्क में गोचर के दौरान आदित्य स्तोत्र का पाठ करना भी अनुकूल माना जाता है।

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