तुला संक्रांति विशेष: सूर्य देव का आशीर्वाद चाहते हैं, तो आज ज़रूर करें यह काम!

सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उस स्थिति को ही संक्रांति कहते हैं। वैसे तो सूर्य की 12 संक्रांति होती हैं, लेकिन इनमें से 4 संक्रांति- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति ही खास हैं। सूर्य का कन्या राशि से तुला राशि में प्रवेश करना ही तुला संक्रांति है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार तुला संक्रांति कार्तिक महीने में आती है, इस साल तुला संक्रांति 17 अक्टूबर, शनिवार को आ रही है। राशि परिवर्तन के दौरान सूर्य की पूजा की जाती है। लोग इस दिन सुबह जल्दी उठकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं और बेहतर स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। तो चलिए जानते हैं इस दिन से जुड़ी खास बातें –

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साल 2020 में तुला संक्रांति का समय

17 अक्टूबर, शनिवार को प्रातः 6:50 बजे सूर्य देव तुला राशि में गोचर करेंगे और 16 नवंबर, सोमवार को प्रातः 6:39 बजे तक इसी राशि में स्थित रहेंगे। सूर्य लगभग एक महीने तक तुला में ही विराजमान रहेंगे। ज्योतिषशास्त्र में तुला सूर्य की नीच राशि मानी जाती है। यानि इस गोचर काल के दौरान सूर्य  अपनी नीच अवस्था में रहेगा। 

क्या है तुला संक्रांति?

सूर्य का राशि चक्र की सातवीं राशि तुला में प्रवेश करना ही तुला संक्रांति कहलाता है। तुला राशि का यह प्रवेश अक्टूबर माह के मध्य में होता है। वहीँ हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार कार्तिक महीने में पड़ता है। देश के कुछ राज्यों, जैसे कि उड़ीसा और कर्नाटक आदि में इस पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। यहां के किसान लोग तुला संक्रांति का दिन अपनी चावल की फसल के आने की खुशी के रूप में धूमधाम से मनाते हैं। इन राज्यों में इस पर्व को बहुत खास और अच्छे ढंग से मनाया जाता है। तुला संक्रांति का उड़िसा और कर्नाटक में खास महत्व है। वहां इस दिन को लोग ‘तुला संक्रमण’ भी कहते हैं। इस दिन कावेरी नदी  के तट पर ‘तीर्थोद्भव’ या ‘तीर्थधव’ के नाम से मेला लगता है। स्थानीय लोग यहाँ स्नान और दान-पुण्‍य करते हैं। तुला माह में ही गणेश चतुर्थी और कार्तिक स्नान की भी शुरुआत होती है। 

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एक साल में होती हैं 12 संक्रांति

सूर्य का एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करना ही संक्रांति हैं। यह एक सौर घटना है, जिसका हिन्दू धर्म में बहुत महत्व होता है। ज्योतिष और हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक एक साल में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। जिस भी राशि में सूर्य प्रवेश करता है, तब उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। साल में आने वाली हर संक्रांति का अलग महत्व होता है। संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि जैसे कार्यों का काफी महत्व है।

तुला संक्रांति पर ज़रूर करें ये काम

सूर्य के तुला राशि में प्रवेश से सभी राशियों के जातकों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ते हैं। किसी राशि के जातकों के लिए सू्र्य की चाल अच्छी रहती है, तो किसी राशि के जातकों के लिए यह बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसी स्थिति में शुभ फल पाने और अशुभ प्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को कुछ उपाए अवश्य करने चाहिए। 

जैसे, तुला संक्रांति के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है, इसीलिए इस दिन सभी राशि के जातकों को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद ब्राह्मण को दान देना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से जातक की राशि पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभाव कम होता है। यदि आप किसी वजह से नदी में स्नान करने नहीं जा पा रहे हैं पाएं, तो घर में ही स्नान के पानी में गंगाजल मिला लें और नहाने के बाद सूर्यदेव को जल में अछत और कुछ मीठा डालकर अर्पित करें। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देना बेहद पुण्यकारी होता है।

साथ ही तुला संक्रांति के दिन अपने खाने का एक हिस्सा ज़रूरतमंद लोगों के लिए जरूर निकालें। हो सके तो इस दिन पहली रोटी गाय को ही दें। ऐसा करने से भगवान सूर्य की कृपा हमेशा बनी रहती है।

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इस दिन चढ़ाए जाते हैं ताजे धान

तुला संक्रांति यानि पूरे 1 महीने तक जब सूर्य तुला राशि में रहता है, उस समय पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। तुला संक्रांति के समय धान के पौधों में दाने आना शुरू हो जाते हैं। लोग इसी खुशी में मां लक्ष्मी को धन्यवाद करने के लिए ताजे धान चढ़ाते हैं। कई जगहों पर गेहूं व कारा पौधे की टहनियां भी देवी पर चढ़ाई जाती हैं। लोग मां लक्ष्मी से यह प्रार्थना करते हैं कि वो उनकी फसल को बाढ़, सूखा, कीट आदि से बचाकर रखें और हर साल उन्हें लहलहाती हुई फसल दें। इसीलिए इस दिन माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा का भी विधान है। मान्यता है इस दिन देवी लक्ष्मी की परिवार सहित पूजा करने और उन्हें चावल अर्पित करने से कभी भी अनाज की कमी नहीं होती। 

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