भगवान श्री हरि विष्णु को संसार का पालकरता कहा जाता है। जिस इंसान पर भगवान विष्णु की एक बार कृपा हो जाए उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता। धरती पर अब तक नौ अवतार ले चुके भगवान नारायण की गिनती त्रिदेवों में होती है जो इस सृष्टि के संचालक माने जाते हैं। यही वजह है कि श्री हरि विष्णु का स्थान सनातन धर्म में काफी ऊंचा है और भगवान विष्णु के असंख्य भक्त हैं।
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ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी कथा बताने जा रहे हैं जब दिन रात भगवान नारायण का जाप करने वाले नारद मुनि भगवान विष्णु पर कुपित हो उन्हें श्राप देने वाले थे।
जब नारद मुनि भगवान विष्णु को श्राप देने वाले थे।
कहा जाता है कि एक बार नारद मुनि जब बैकुंठ धाम को पधारे तब उन्होंने देखा कि भगवान विष्णु हाथ में कूची उठाए कुछ बनाने में बेहद तल्लीन हैं। नारद मुनि देखते हैं कि भगवान विष्णु इतने ज्यादा तल्लीन हैं कि उन्हें यह तक ध्यान नहीं कि उनके आसपास कई देवता और नारद मुनि खड़े हैं। भगवान विष्णु के व्यवहार से नारद मुनि नाराज हो जाते हैं और माता लक्ष्मी से पूछते हैं कि भगवान नारायण कहां व्यस्त हैं जो इन्हें इस बात का भी भान नहीं कि उनके आस-पास इतने सारे देवतागण खड़े हैं।
तब माता लक्ष्मी उन्हें बताती हैं कि श्री हरि विष्णु अपने सबसे प्रिय भक्त का चित्र बना रहे हैं। यह सुनकर नारद मुनि झांक कर देखते हैं तो पाते हैं कि भगवान विष्णु एक गंदगी से भरे अर्धनग्न व्यक्ति की तस्वीर बना रहे थे। नारद मुनि को इस बात से बहुत दुख पहुंचता है और वे पृथ्वी लोक पर उस व्यक्ति को ढूँढने लगते हैं जिसे भगवान विष्णु अपना सबसे प्रिय भक्त मानते हैं।
काफी भ्रमण करने के बाद उन्हें वह व्यक्ति दिखता है। पेशे से चर्मकार वह व्यक्ति अर्धनग्न था और उसके आसपास इतनी गंदगी थी कि उसके शरीर से दुर्गंध आती थी। नारद मुनि उसे पहचान लेते हैं और अदृश्य होकर यह जानने की कोशिश में जुट जाते हैं कि आखिर यह व्यक्ति ऐसा क्या करता है कि श्री हरि विष्णु इसे अपना सबसे प्रिय भक्त मानते हैं।
नारद मुनि पाते हैं कि वह अर्धनग्न चर्मकार दिन-रात जानवरों का चमड़ा उतारता और उसी काम में तल्लीन रहता। ना तो वो कभी मंदिर जाता और ना ही कभी भगवान विष्णु को एक पुष्प भी अर्पित करता। नारद मुनि इस बात से भगवान विष्णु पर बेहद कुपित हो गए। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप देने के लिए अपने दोनों हाथ ऊपर उठा लिए लेकिन तभी माता लक्ष्मी उन्हें रोक लेती हैं और उनसे उस भक्त का उपसंहार देखने को कहती हैं।
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नारद मुनि गौर से देखते हैं तो पाते हैं कि वह चर्मकार सभी चमड़े को इकट्ठा करने के बाद उसकी गठरी बांध देता है। उसके बाद वह अपना सिर, हाथ और पैर एक कपड़े से पोछ कर उस गठरी के सामने हाथ जोड़ कर बैठ जाता है। वह चर्मकार कहता है,
हे प्रभु! मुझे गलतियों के लिए क्षमा करना और कल भी मुझे ऐसी ही बुद्धि देना ताकि मैं आज की तरह ही पसीने को बहाकर आपके दिए हुए कामों को अच्छे से कर के अपना गुजारा कर सकूँ।
चर्मकार की यह बात सुनकर नारद मुनि का सारा गुस्सा गायब हो जाता है और वह समझ जाते हैं कि यह व्यक्ति भगवान श्री हरि विष्णु का सबसे प्रिय भक्त क्यों है। दरअसल वह व्यक्ति अपने कर्म से प्राप्त आजीविका को भगवान का वरदान मानता था और भक्ति के साथ अपने कार्य को करता था, ऐसे व्यक्ति भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं।
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