जानें शुक्र प्रदोष व्रत की कथा और शुभ मुहूर्त

प्रदोष व्रत हर महीने किया जाने वाला एक बेहद ही सरल और फलदाई व्रत होता है। इस दिन की पूजा में भगवान शिव की पूजा की जाती है। अप्रैल महीने का पहला प्रदोष व्रत 9 अप्रैल शुक्रवार के दिन किया जायेगा। शुक्रवार के दिन पड़ने की वजह से इस व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाएगा। प्रदोष व्रत दिन के हिसाब से अलग-अलग महत्व रखते हैं और उनसे मिलने वाला फल भी अलग अलग होता है। 

प्रदोष व्रत का एक बेहद ही सरल नियम है कि, इस दिन की पूजा प्रदोष काल में ही करनी चाहिए। सवाल उठता है प्रदोष काल क्या होता है? तो जानकारी के लिए बता दें कि, सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद का समय प्रदोष काल माना जाता है। ऐसे में यदि आप शुक्र प्रदोष व्रत करने जा रहे हैं या इस दिन की पूजा कर रहे हैं तो आपको प्रदोष काल के दौरान व्रत और पूजा करने की सलाह दी जाती है। 

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9 अप्रैल शुक्रवार को चैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि का आरंभ प्रात: 3 बजकर 15 मिनट से होगा और 10 अप्रैल शनिवार प्रात: 4 बजकर 27 मिनट पर त्रयोदशी की तिथि का समापन होगा।

शुक्र प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल 

शुक्रवार के दिन किए जाने वाले प्रदोष व्रत से व्यक्ति को जीवन में सुख, सौभाग्य, संपत्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा लंबी आयु रोग रहित जीवन और संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत बहुत ही भाग्यशाली माना जाता है। यदि आप क़र्ज़ की समस्या या ईएमआई की समस्या से जूझ रहे हैं और आपको लाख चाहने के बाद भी इससे छुटकारा नहीं मिल रहा है तो आपको शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी जाती है क्योंकि, क़र्ज़ से मुक्ति पाने के लिए भी यह व्रत बेहद ही उत्तम माना गया है। 

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शुक्र प्रदोष व्रत कथा 

एक नगर में 3 दोस्त रहते थे। एक राजकुमार था, दूसरा ब्राह्मण और तीसरा धनिक पुत्र रहता था। राजकुमार और ब्राह्मण विवाहित थे। यूँ तो धनिक भी विवाहित था लेकिन उनकी पत्नी का गौना नहीं हुआ था। ऐसे में 1 दिन तीनों बैठ कर बात कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने बात-बात में कहा कि, जिन व्यक्तियों की पत्नी उनके साथ नहीं होती उन्हें भूत पिशाच का डर बना रहता है। 

यह बात सुनकर धनिक पुत्र तुरंत अपनी पत्नी को घर लाने की जिद में अड़ गया। हालांकि उस वक्त शुक्र देवता अस्त अवस्था में थे। यह समय बहू बेटियों को घर से विदा करने के लिए शुभ नहीं माना जाता है। ऐसे में धनिक पुत्र के घर वालों ने और साथ ही ससुराल पक्ष के लोगों ने भी उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की कि इस समय विदाई ना करें लेकिन धनक पुत्र ने एक भी बात नहीं मानी और वो अपनी पत्नी को बैलगाड़ी से अपने घर ले जाने लगा। 

कुछ ही दूर जाने के बाद दोनों के साथ तरह तरह की अनहोनी होने लगी। कभी उनके बैलगाड़ी का पहिया निकल गया, तो कभी चोर डाकू ने उन्हें रास्ते में लूट लिया, अंत में सांप ने भी धनिक पुत्र को डस लिया। कैसे भी जब यह दोनों घर पहुंचे तो किसी जानकार ने उन्हें समझाया कि, क्योंकि धनिक पुत्र ने शुक्र की अस्त अवस्था में अपनी पत्नी की विदाई करा ली थी इसकी वजह से उनके जीवन में इतनी घटनाएं हुई। 

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आगे उस जानकार ने उन्हें सलाह दी कि, वापस अपनी पत्नी को उसके मायके छोड़ आओ और शुक्र प्रदोष व्रत की कथा सुनो। इस दिन का व्रत करो और पूजा करो। जीवन में सब सही हो जाएगा। सलाह मानकर धनिक पुत्र और उसकी पत्नी दोनों ने शुक्र प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन किया जिससे उनके जीवन में सब सही हो गया। इसके बाद सही समय आने पर धनिक पुत्र ने अपनी पत्नी को विदा करा कर अपने घर भी ले आया।

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