कारको भाव नाशाय: एस्ट्रोसेज का यह विशेष ब्लॉग आपको शुक्र का कर्क राशि में गोचर के बारे में जानकारी प्रदान करेगा जो कि 30 मई 2023 को होने जा रहा है। ऐसे में, शुक्र की कर्क राशि में मौजूदगी होने के कारण ज्योतिष शास्त्र के एक महत्वपूर्ण नियम कारको भाव नाशाय का निर्माण हो रहा है। सामान्य शब्दों में कहें तो, कारको भाव नाशाय का सीधा अर्थ है कुंडली में किसी भाव के स्वामी का अपने ही भाव को नुकसान पहुंचाना।
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अगर आप नहीं समझें, तो ज्योतिष शास्त्र के इस विशेष नियम को जानने और समझने के लिए आपको हमारा यह ख़ास ब्लॉग पढ़ना जारी रखना होगा जिसमें हम आपको “कारको भाव नाशाय” के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान करेंगे।
क्या है कारको भाव नाशाय?
जैसे कि हमें नाम से ही पता चल रहा है कि कारको यानी कारक, भाव का अर्थ कुंडली के भाव से हैं जबकि नाशाय का अर्थ नष्ट करने से हैं। जिन लोगों को ज्योतिष का थोड़ा बहुत ज्ञान हैं, संभव है वह लोग इसके बारे में जानते हो या फिर हो सकता है कि अधिकांश लोगों ने कारको भाव नाशाय के बारे में पहली बार सुना हो। ऐसे में, उनके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि आख़िर कारको भाव नाशाय क्या है? तो आपको बता दें कि यह ज्योतिष शास्त्र में वर्णित एक ऐसी अवधारणा या नियम है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है और इसका उपयोग भी कम ही किया जाता है। कुंडली के 12 भाव, 12 राशियों और 9 ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं, इस बात से हम अच्छी तरह वाकिफ़ हैं।
कुंडली में प्रत्येक ग्रह एक विशेष भाव और उसके सकारात्मक तथा नकारात्मक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है। साधारण शब्दों में कहें तो, प्रत्येक ग्रह विशेष भाव से संबंधित चीज़ों का कारक होता है। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए नीचे दिए गए चार्ट के माध्यम से हम जानेंगे कि कौन सा ग्रह कौन से भाव और किन कारकों का प्रतिनिधित्व करता है।
भाव | कारक | कारक ग्रह |
पहला | स्वयं | सूर्य |
दूसरा | परिवार, धन | बृहस्पति |
तीसरा | साहस, छोटे भाई-बहन | मंगल, बुध |
चौथा | माता, भावनाएं | चंद्रमा |
पांचवां | शिक्षा, संतान | बृहस्पति |
छठा | शत्रु, रोग, कर्ज़ | मंगल, शनि |
सातवां | जीवनसाथी, विवाह | शुक्र |
आठवां | दीर्घायु, अप्रत्याशित घटनाएं | शनि |
नौवां | भाग्य, पिता, धर्म | सूर्य |
दसवां | करियर,उपलब्धियां | सूर्य, बृहस्पति, शनि, बुध |
ग्यारहवां | लाभ, सामाजिक जीवन, बड़े भाई-बहन | बृहस्पति |
बारहवां | विदेश भूमि, हानि, अलगाव | शनि |
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कुंडली में कैसे बनता है कारको भाव नाशाय?
अब आपको कारको भाव नाशाय का अर्थ स्पष्ट हो गया होगा और कौन सा ग्रह, किस भाव और किसका कारक है, आप यह भी जान चुके हैं। ऐसे में, आगे बढ़ते हैं और नज़र डालते हैं कि किसी व्यक्ति की कुंडली में कारको भाव नाशाय कब और कैसे बनता है? कुंडली में जब कोई ग्रह किसी विशेष भाव का स्वामी है और उसी भाव पर दृष्टि डाल रहा होता है, तो उस समय कारको भाव नाशाय का निर्माण होता है। ऐसी स्थिति में उस भाव का स्वामी अपने ही भाव को नुकसान पहुंचाता है।
आपके मन में यह सवाल भी उठ रहा होगा कि किसी भाव का स्वामी अपने ही भाव को नष्ट (नुकसान) क्यों करता है, तो इसका जवाब होगा कि हर चीज़ की अति बुरी होती है। सरल शब्दों में कहें तो, यदि किसी भाव का स्वामी उसी भाव में मौजूद होता है या उसी भाव पर दृष्टि डाल रहा होता है तो इसके परिणामस्वरूप ये जातक को एक दिशा में ध्यान केंद्रित करने पर मज़बूर करता है और ऐसे में, जीवन के दूसरे पहलू नकारत्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
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कारको भाव नाशाय कब लागू होता है?
कारको भाव नाशाय के बारे में हम विस्तार पूर्वक चर्चा कर चुके हैं जैसे इसका अर्थ और ये कुंडली में कब और कैसे बनता है। लेकिन अब हम बात करेंगे कि किन स्थितियों में कुंडली में कारको भाव नाशाय लागू होता है। निश्चित रूप से आप इस बारे में सोच रहे होंगे कि जब भी कोई भाव का स्वामी अपने ही भाव में मौजूद होगा, तो क्या ये अपने ही भाव को हानि पहुँचाएगा?
आपको बता दें कि इसका जवाब होगा, नहीं। किसी भी व्यक्ति को इन नियमों का पालन करने से बचना चाहिए और उन स्थितियों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए जिन परिस्थितियों में यह नियम लागू होता है। आइये जानते हैं कि अब उन शर्तों के बारे में।
- ग्रहों की अवस्था या स्थिति बहुत ही महत्व रखती है और ऐसे में, यदि ग्रह की स्थिति अच्छी हो, तो यह नियम लागू नहीं होगा।
- कारको भाव नाशाय का नियम उस समय लागू होता है जब कोई ग्रह शत्रु राशि में स्थित हो या कोई ग्रह बिना किसी समर्थन के नीच राशि में मौजूद हो।
- दूसरा पक्ष यह है कि जब ग्रह को युति के माध्यम से किसी लाभकारी ग्रह का समर्थन मिल रहा हो या उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो, तो ऐसे में इस योग के नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं।
- यदि एक लाभकारी या कुपित ग्रह गलत स्थिति में या नीच भाव में बैठा होता है, तब कारको भाव नाशाय का नियम लागू होता है।
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कैसे अपने ही भावों को हानि पहुंचाते हैं कारक ग्रह?
सूर्य: यदि सूर्य ग्रह पहले भाव या नौवें भाव में शत्रु राशि में, नीच राशि में या कमज़ोर अवस्था में स्थित होता है, तो यह आपको स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं, गुस्सा आना या पिता से संबंधित समस्याएं देता है जैसे कि पिता के साथ रिश्ते ख़राब होना या फिर पिता की कम उम्र में मृत्यु हो सकती है।
बृहस्पति: बृहस्पति ग्रह यदि दूसरे भाव में स्थित होते हैं, तो यह घर-परिवार की सुख-समृद्धि में कमी कर सकते हैं। अगर यह पांचवें भाव में अशुभ स्थिति में होते हैं, तो जातकों को शिक्षा और संतान के क्षेत्र में नकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं। ग्यारहवें भाव में गुरु लाभ और संपत्ति में कमी लेकर आते हैं।
मंगल: कुंडली में मंगल तीसरे भाव में बैठा हो, तो कारको भाव नाशाय का नियम लागू हो जाता है या फिर मंगल छठे या दसवें भाव में होने पर जातकों को छोटे भाई-बहनों से जुड़ी समस्याएं, कभी न खत्म होने वाला कर्ज़ या रोग आदि दे सकता है।
चंद्रमा: अगर चंद्रमा चौथे भाव में अशुभ अवस्था में, शत्रु राशि या नीच स्थिति में उपस्थित होते हैं, तो चंद्रमा माता, माता के साथ संबंध और उनके स्वास्थ्य आदि से जुड़ी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। जैसे कि चंद्रमा भावनाओं के “कारक” ग्रह हैं और इसके परिणामस्वरूप जातक डिप्रेशन या मानसिक तनाव का शिकार हो सकता है और साथ ही, आत्माहत्या का विचार भी मन में आ सकता है। आपको यह बात हैरान कर सकती हैं कि 95% आत्महत्याओं के लिए चंद्रमा की अशुभ स्थिति जिम्मेदार होती हैं।
बुध: ग्रहों के राजकुमार बुध छोटे भाई-बहनों के कारक होने के साथ-साथ पेशे, करियर, बुद्धि और व्यापार के भी कारक हैं। कारको भाव नाशाय का नियम तब लागू होता है जब बुध तीसरे या दसवें भाव में मौजूद होते हैं और ऐसे में, बुध का बुरा प्रभाव उन सभी क्षेत्रों पर देखने को मिल सकता है जिनके ये कारक ग्रह हैं।
शुक्र: शुक्र प्रेम, सुंदरता और रोमांस के कारक ग्रह और विवाह के भाव यानी कि सातवें भाव के स्वामी भी हैं। पुरुषों की कुंडली में शुक्र ग्रह जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करता है और साथ ही, यह पत्नी, विलासिता और ऐश्वर्य के भी कारक ग्रह हैं। शुक्र यदि सातवें भाव में नीच अवस्था में या शत्रु राशि में कमज़ोर स्थिति में मौजूद होते हैं, तो इसका प्रभाव जातक के शादीशुदा जीवन पर नकारात्मक रूप से पड़ सकता है और आपको अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
शनि: शनि ग्रह को कर्मफल दाता और न्यायाधीश माना जाता है जो कि कर्म भाव के स्वामी भी हैं। ऐसे में, शनि जातकों को जोखिम वाले कार्य करने की क्षमता प्रदान करते हैं। शनिदेव न्यायकर्ता हैं जो कि कर्ज़, कोर्ट कचहरी के मामले आदि का प्रतिनिधत्व करते हैं। साथ ही, अन्य ग्रहों के साथ शनि करियर के भाव यानी कि दसवें भाव के स्वामी भी हैं। कठोर ग्रह होने के नाते यह अलगाव के भाव अर्थात बारहवें भाव के साथ-साथ आठवें भाव के भी स्वामी माने गए हैं। यहां अगर कारको भाव नाशाय लागू होता है, तो शनि किसी व्यक्ति को कर्ज़ या कोर्ट केस में फंसा सकते हैं। वहीं, आठवें भाव में शनि जातकों को अल्प आयु प्रदान कर सकते हैं और दसवें भाव में पेशेवर जीवन प्रभावित हो सकता है जबकि बारहवें भाव में व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो सकता है।
हम यह बात निश्चित रूप से कह सकते हैं कि “कारको भाव नाशाय” के बारे में आप अच्छी तरह से समझ गए होंगे। लेकिन अब हम जानेंगे कि शुक्र का कर्क राशि में गोचर किस तरह से इस अशुभ योग का निर्माण करेगा। जब 30 मई 2023 को शुक्र का कर्क राशि में गोचर होगा, उस समय शुक्र कर्क राशि के जातकों के प्रथम भाव में गोचर करेंगे और मकर राशि के सातवें भाव पर दृष्टि डालेंगे। शुक्र को विवाह और सातवें भाव का कारक ग्रह माना गया है और यह चंद्रमा से शत्रुता का भाव रखते हैं, तो ऐसे में, यहां “कारको भाव नाशाय” का नियम लागू होगा।
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कारको भाव नाशाय: इन 2 राशियों को करेगा सबसे ज्यादा प्रभावित
कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों के लिए शुक्र आपके चौथे और ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं जो अब आपके पहले भाव में गोचर करेंगे। ऐसे में, आपकी आर्थिक स्थिति मज़बूत होगी और सामाजिक जीवन में भी सुधार आएगा। हालांकि, शुक्र की दृष्टि आपके सातवें भाव पर होगी और इसके परिणामस्वरूप, आपके वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं।
शादीशुदा जातकों को वैवाहिक जीवन में नकारात्मकता का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए कर्क राशि के विवाहित जातकों को सावधान रहते हुए मुश्किल परिस्थितियों को धैर्य के साथ संभालना होगा। आपको पार्टनर के साथ किसी भी तरह के विवाद में पड़ने से बचना होगा और यदि आप दोनों के बीच समस्याएं उत्पन्न होती हैं तो आपको नकारात्मक परिणामों से बचने के लिए जल्द से जल्द उनका समाधान ढूंढ़ना होगा।
मकर राशि
मकर राशि के जातकों के लिए शुक्र आपके पांचवें और दसवें भाव के स्वामी हैं और अब यह आपके सातवें भाव में गोचर कर रहे हैं। हालांकि, पांचवें और दसवें भाव के स्वामी होने के नाते शुक्र जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आपको लाभ प्रदान करेंगे, लेकिन कर्क राशि के सातवें भाव में मौजूद होने के कारण यह आपके वैवाहिक जीवन में परेशानियां पैदा कर सकते हैं। ऐसे में, आपके और पार्टनर के बीच मतभेद होने की संभावना है।
यदि सातवें भाव के स्वामी चंद्रमा और अन्य ग्रह अशुभ प्रभाव में हैं, तो इस स्थिति में शुक्र तलाक या पति-पत्नी के बीच समस्याओं का कारण बन सकता है। ऐसे में, आपको सावधान रहते हुए विवादों को शांतिपूर्वक निपटाना होगा।
इन उपायों से मिलेगी कारको भाव नाशाय के अशुभ प्रभावों से मुक्ति
- संभव हो, तो ज्यादा से जायदा सफ़ेद रंग के कपड़े पहनें।
- नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा करें और प्रतिदिन रुद्राभिषेक करें।
- जीवनसाथी का सम्मान करें।
- छोटी कन्याओं या विधवा स्त्रियों को मिठाई खिलाएं।
- शुक्र ग्रह से शुभ परिणाम प्राप्त करने के लिए अपने चरित्र को उच्च बनाए रखें।
- शुक्र देव का आशीर्वाद पाने के लिए माता लक्ष्मी की पूजा करें।
- देवी लक्ष्मी को लाल रंग के फूल अर्पित करें।
- घर और कार्यस्थल पर कुबेर यंत्र की स्थापना करें।
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