महाशिवरात्रि पर कैसे करें रुद्राभिषेक? जानें नियम, विधि और मंत्र!

महाशिवरात्रि का पर्व कुछ ही दिनों की दूरी पर है और पूरे भारत समेत कई अलग-अलग देशों में भगवान शिव के भक्त अपने आराध्य के इस व्रत के लिए काफी उत्साहित हैं। साल 2023 की महाशिवरात्रि बेहद ही ख़ास होने वाली है क्योंकि इस साल महाशिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि और प्रदोष व्रत एक साथ पड़ रहे हैं। इस खास ब्लॉग में हम महाशिवरात्रि से जुड़े हर अहम पहलू पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जैसे कि राशि अनुसार महादेव की पूजा-विधि, शिव पुराण में महाशिवरात्रि का महत्व, महाशिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष धारण करने के अनोखे फायदे। इन सभी बातों के साथ हम व्रत की तिथि, समय और मुहूर्त के बारे में भी जानेंगे।

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महाशिवरात्रि का मुहूर्त

महाशिवरात्रि का व्रत 18 फरवरी 2023, शनिवार के दिन रखा जाएगा। 18 फरवरी को ही मासिक शिवरात्रि और प्रदोष व्रत भी पड़ रहे हैं। महाशिवरात्रि व्रत पारण का मुहूर्त 19 फरवरी 2023 को सुबह 6 बजकर 57 मिनट से शाम 3 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। आइए अब यह जानते हैं कि शिव महापुराण में महाशिवरात्रि के बारे में क्या कुछ बताया गया है।

शिव पुराण में महाशिवरात्रि का महत्व 

शिव महापुराण में कोटिरुद्र संहिता के मुताबिक महाशिवरात्रि व्रत का बहुत महत्व होता है। इस व्रत को करने से भक्तों को भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। जब ब्रह्मा जी, विष्णु जी और पार्वती जी ने भोलेनाथ से इस व्रत का महत्व पूछा तब उन्होंने कहा था कि ‘इस व्रत को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को चार संकल्पों के साथ करना चाहिए’। यह संकल्प इस प्रकार हैं:

  • महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना।
  • रुद्र मंत्र का नियम अनुसार जाप।
  • शिव मंदिर में पूजा करें और इस दिन व्रत रखें।
  • काशी (बनारस) में देह त्याग करना।

इन चारों संकल्पों में सबसे अधिक महत्व महाशिवरात्रि पर व्रत (उपवास) करने का है। शिव महापुराण के अनुसार यह व्रत महिला, पुरुष, बच्चे और यहां तक कि देवी-देवताओं के लिए भी सबसे अधिक हितकारी माना गया है।

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व्रत के साथ रात में जागरण का विशेष फल

सनातन धर्म में ऋषि-मुनियों ने व्रत को सबसे अधिक फलदायी और लाभकारी माना है। श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक में कहा गया है, विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहः जिसका अर्थ है, उपवास निवृत्ति का सबसे अचूक साधन है और आध्यात्मिक साधना के लिए व्रत करना सबसे अहम है। वहीं व्रत की रात में जागरण के महत्व को समझने के लिए हम श्रीमद्भागवत गीता के इस श्लोक को देख सकते हैं, या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। इसका मतलब है कि उपासना से अपनी इंद्रियों और मन को नियंत्रित करने वाला मनुष्य ही रात में नींद त्याग कर अपने काम को करने की कोशिश करता है।

शिवरात्रि पर कैसे करें पूजा?

शिव पुराण के अनुसार इस दिन भक्तों को सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए। इसके बाद माथे पर भस्म का तिलक लगाना चाहिए (भस्म शिव जी को अधिक प्रिय है)। इसके बाद रुद्राक्ष की माला धारण करें और मंदिर जाएं। इसके बाद मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक करें, हालांकि अभिषेक करने के कई सारे नियम और अलग-अलग तरीके होते हैं, जिन पर हम आगे चर्चा करेंगे।

एस्ट्रोसेज की ज्योतिषाचार्य मीतु गर्ग कहती हैं कि भगवान शिव की पूजा अर्चना करना बहुत ही आसान है। भगवान शिव सिर्फ नाम से भोलेनाथ नहीं हैं बल्कि अगर कोई भी व्यक्ति उनकी सच्चे मन और श्रद्धा से पूजा-अर्चना करता है तो उसकी जल्दी ही मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान शिव को बहुत ही आसान उपायों से मनाया जा सकता है, जो कि इस प्रकार हैं:- 

उपाय

  • यदि आपकी कोई इच्छा पूरी नहीं हो पा रही है तो आप शिव जी को रोज सुबह जल अर्पित कीजिए। पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करने से आपकी मनोकामना पूरी होने लगेगी।
  • यदि आप जल के साथ शिव जी को बेलपत्र चढ़ाते हैं तो इससे मानसिक तनाव कम होता है तथा आपकी जॉब और व्यवसाय में तरक्की होने के रास्ते खुलने शुरू हो जाते हैं।
  • यदि आप किसी कोर्ट-कचहरी के मामले में फंस गए हैं तो शिव जी पर जल चढ़ाते समय एक शमी का पत्ता भी अर्पित कीजिए। इससे कोर्ट केस में विजय प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही कर्ज़ की समस्या भी धीरे-धीरे ठीक होने लगती है।

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कैसे करें शिवलिंग का रुद्राभिषेक?

  • शिवलिंग का अभिषेक करते समय, अपनी दिशा का ध्यान जरूर रखें, आपका मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए।
  • सबसे पहले गंगाजल लें और उसे शिवलिंग पर चढ़ा दें। अभिषेक करते समय भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना चाहिए। 
  • अभिषेक के दौरान आप महामृत्युंजय मंत्र, रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र, रुद्र मंत्र का जाप कर सकते हैं।
  • गंगाजल के बाद शिवलिंग पर गन्ने का रस, शहद, दूध, दही जैसी वस्तुएं चढ़ाई जा सकती हैं।
  • सभी गीली वस्तुओं के बाद आप शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाएं।
  • इसके बाद आप शिवलिंग पर बेलपत्र, भांग, धतूरा आदि चीजें चढ़ा सकते हैं।

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शिवलिंग की पूजा में रखें इन बातों का खास ख्याल

शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को 6 चीजें चढ़ाना पूरी तरह से वर्जित है। अगर आप भी इसके बारे में नहीं जानते हैं, तो आइए विस्तार से यह समझ लेते हैं।

  • तुलसी पत्र: भोलेनाथ ने जलंधर नाम के असुर का वध किया था, जो माता तुलसी का पति था। उन्होंने तब से ही भगवान शिव को अपने अलौकिक शक्तियों वाले पत्तों से वंचित कर दिया था। इसलिए कभी भी तुलसी के पत्ते शिवलिंग पर न चढ़ाएं।
  • हल्दी: हल्दी को स्त्रियों से संबंधित माना जाता है और शिवलिंग एक पुरुष तत्व को दर्शाता है। इसलिए कभी भी शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएं।
  • केतकी के फूल: एक पौराणिक कथा में एक घटना में यह बताया गया है कि एक बार केतकी के फूल ने ब्रह्मा जी का साथ एक झूठ में दिया था। जिससे भगवान शंकर नाराज़ हो गए और उन्होंने केतकी के फूल को श्राप दे दिया। 
  • नारियल का पानी: इसके पीछे भी एक बड़ी वजह है, पूजा में हमेशा ही नारियल का इस्तेमाल होता है। देवताओं की पूजा में जिन वस्तुओं का इस्तेमाल होता है, उन्हें ग्रहण करना भी आवश्यक होता है। मगर शिवलिंग पर जो भी वस्तु अर्पित की जाती है, उसे ग्रहण नहीं किया जाता है। इसलिए शिवलिंग पर नारियल अर्पित तो होता है, लेकिन इससे अभिषेक नहीं होता।
  • शंख से न डालें जल: मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के दैत्य का वध किया था, जिसके बाद उसका पूरा शरीर भस्म हो गया और उसी से शंख की उत्पत्ति भी हुई। यही वजह है कि कभी भी शंख से शिवलिंग पर जल नहीं डाला जाता है।
  • कुमकुम और सिंदूर: यह दोनों ही चीजें सुहाग की निशानी मानी जाती हैं। विवाहित स्त्रियां इन्हें अपनी पति की लंबी उम्र के लिए लगाती हैं। लेकिन हम जानते हैं कि त्रिमूर्तियों में भगवान शिव विनाशक हैं, इसलिए यह दोनों ही चीजें शिवलिंग पर चढ़ाना मना है।

भगवान शिव और रुद्राक्ष का संबंध

शिव महापुराण में 14 प्रकार के रुद्राक्षों का वर्णन, लाभ और धारण करने के विधान मौजूद हैं। वहीं ज्योतिष शास्त्र की बात करें तो, रुद्राक्ष को शुभ तिथि और समय पर राशि अनुसार धारण करना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष को धारण करना अधिक फलदायी बताया गया है। इसके प्रभाव मंगलकारी होते हैं। इस तिथि पर रुद्राक्ष धारण करने से भक्तों को महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही अकाल मृत्यु का भय भी खत्म होता है।

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राशि अनुसार कौन सा रुद्राक्ष पहनें?

मेष

मेष राशि पर मंगल देव का स्वामित्व है। इस राशि के जातकों को 11 मुखी या 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

वृषभ

वृषभ राशि पर शुक्र देव का शासन है। जातकों को 13 मुखी या 6 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

मिथुन

मिथुन राशि के ऊपर बुध महाराज का शासन है। इस राशि के जातकों 4 मुखी, 10 मुखी या फिर 15 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

कर्क

कर्क राशि पर चंद्र देव का शासन होता है। इस राशि के जातकों को 2 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

सिंह

सिंह राशि पर ग्रहों के राजा सूर्य का शासन है, इसलिए इस राशि के जातकों को 1 मुखी या 12 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

कन्या

कन्या राशि पर बुध महाराज का शासन होता है। इस राशि के जातकों को 4 मुखी, 10 मुखी, 15 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

तुला

तुला राशि पर शुक्र देव का शासन है। इस राशि के जातकों को 6 मुखी या 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

वृश्चिक

वृश्चिक राशि पर मंगल देव का स्वामित्व है। इस राशि के जातकों को 3 मुखी या फिर 11 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

धनु

धनु राशि पर देव गुरु बृहस्पति का शासन है। इस राशि के जातकों को 5 मुखी या 11 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

मकर

मकर राशि पर शनि देव का स्वामित्व है। इस राशि के जातकों को 7 मुखी या फिर 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

कुंभ

कुंभ राशि पर भी शनि महाराज का ही शासन है। इस राशि के जातकों को 7 मुखी या 14 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

मीन

मीन राशि पर देव गुरु बृहस्पति का शासन है। इस राशि के जातकों को 5 मुखी या फिर 11 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

इन मंत्रों से करें भगवान शिव की स्तुति

  • रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र: भोलेनाथ को सबसे अधिक प्रिय है शिव तांडव स्तोत्र। इसके रोज़ाना पाठ से भक्तों को कई लाभ होते हैं। इससे नकारात्मकता से छुटकारा मिलता है। शिव तांडव के पाठ से धन की कमी नहीं होती और कालसर्प दोष, पितृ दोष, सर्प दोष से भी छुटकारा मिलता है। इसके अलावा शनि देव के दुष्प्रभावों से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
  • शिव पंचाक्षर स्तोत्र: इस मंत्र में नमः: शिवाय का पूरा विवरण दिया गया है, जिसकी रचना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। शिव पंचाक्षर स्तोत्र के जाप से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही मनुष्यों को जीवन भर के पापों से मुक्ति मिलती है।
  • ॐ नमः शिवाय: यह मंत्र भगवान शिव की स्तुति में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला मंत्र है। इसके उच्चारण से भक्तों के अंदर साहस बढ़ता है। इसके अलावा क्रोध, मोह और घृणा जैसी चीजों का नाश होता है।
  • महामृत्युंजय मंत्र: शिव पुराण के अनुसार इस मंत्र के जाप से जीवन के कई सारे दोष खत्म हो जाते हैं। साथ ही अकाल मृत्यु का भय भी लोगों के अंदर से खत्म हो जाता है। 
  • श्री रुद्राष्टकम स्तोत्र: भगवान शिव का यह स्तोत्र श्रीरामचरितमानस में लिखा हुआ है। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करते समय इसका पाठ किया था। जिसके बाद भगवान राम ने रावण को पराजित किया था। मान्यताओं के अनुसार, इस मंत्र को पढ़ने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

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