भगवान शिव के 10 चमत्कारी रहस्य

भगवान शिव का नाम इस संसार में शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो जिसे ना पता हो। सनातन धर्म के प्रमुख देवी देवताओं में भगवान शिव का नाम अग्रणी है और सावन का महीना भगवान शिव को परम प्रिय है। इसी महीने में प्रकृति अपनी अद्भुत छटा बिखेरती है और चारों ओर हरियाली फैल जाती है।

भगवान शिव, जो कि पशुपतिनाथ हैं, समस्त प्राणियों पर दया करते हैं और उनकी उपासना से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव की उपासना से ग्रह जनित दोषों से भी मुक्ति मिलती है। हालाँकि मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनज़र अगर आपके दिमाग में अपने भविष्य से जुड़ा कोई भी सवाल है, जिसके चलते आप परेशान रहने लगे हैं, तो उसका जवाब जानने के लिए अभी हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषियों से प्रश्न पूछें

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शीघ्र प्रसन्न होते हैं भोले बाबा 

ॐ नमः शिवाय

भगवान शिव का यह पंचाक्षरी मंत्र अत्यंत शक्तिशाली है और इसके जाप करने से भगवान शिव अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं।

ओंकार प्रणव में अकार, उकार और मकार में भगवान शिव मकार का प्रतीक हैं। जब यह सृष्टि नहीं थी, तब भी भगवान शिव थे और जब यह सृष्टि नहीं होगी, तब भी भगवान शिव होंगे क्योंकि वह आदि देव हैं। वास्तव में भगवान शिव आप की साधारण सी प्रार्थना से ही शीघ्र अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और आपको मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं।

इसी वजह से उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। अब जबकि भगवान शिव का प्रिय सावन का महीना चल रहा है तो हम आपको बताएँगे भगवान शिव के वो 10 चमत्कारी रहस्य जिन्हें जानकर आपकी श्रद्धा भगवान शिव पर और अधिक बढ़ जाएगी और आप उनके बारे में और भी अधिक जान पाएंगे।

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जितने बड़े सन्यासी उतने बड़े गृहस्थ

भगवान भोलेनाथ सदैव ध्यान मग्न रहते हैं और इसलिए सबसे बड़े सन्यासी माने जाते हैं और सभी बड़े-बड़े सन्यासी उनकी आराधना में संलग्न रहते हैं। यही भोलेनाथ एक गृहस्थ के रूप में भी जीवन बिताते हैं और सबसे बड़े परिवारों में से एक परिवार इनका ही है। भगवान भोलेनाथ की पत्नी माता पार्वती हैं और उनके पुत्रों में गणेश और कार्तिकेय आते हैं।

इन पुत्रों के अलावा सुकेश, अय्यप्पा स्वामी, जालंधर, अंधक, भूमा और खुजा भी इनके पुत्र माने गए हैं। भूमा को ही भूमि पुत्र भौम अर्थात मंगल कहा जाता है। इनकी एक पुत्री भी हैं, जिन्हें अशोक सुंदरी के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार भगवान शिव का एक भरा पूरा परिवार है।

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आयुध निर्माता भगवान शिव

भगवान शिव ने एक से बढ़कर एक अस्त्रों की रचना की जो सम्पूर्ण जगत के सबसे भयंकर अस्त्रों में से माने जाते हैं। बहुत ही कम ऐसे लोग हैं जो यह जानते हैं कि भगवान विष्णु के हाथ में सुशोभित रहने वाला सुदर्शन चक्र स्वयं भगवान शिव ने निर्मित करके भगवान विष्णु को सौंपा था।

इसके अलावा भगवान शिव का त्रिशूल के नाथ है, जिसके तीनों सिरे सत, रज और तम का प्रतीक हैं। भवरेंदु चक्र और पाशुपतास्त्र का निर्माण में भगवान शंकर ने किया है। भगवान शिव का ही वह धनुष था जिस पर प्रत्यंचा चढ़कर भगवान श्री राम जी ने माँ सीता के स्वयंवर में विजयश्री प्राप्त की।

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प्रकृति ने किया है शिव का श्रृंगार

भगवान शिव ने जिन महान विभूतियों को धारण किया है अर्थात जो उनका का श्रृंगार हैं, वास्तव में वही पूर्ण रूप से प्राकृतिक हैं। उनके गले में वासुकी नाग लिपटे रहते हैं। यही वासुकी नाग रस्सी के रूप में समुद्र मंथन के समय काम आये थे। इन वासुकी नाग के बड़े भाई ही शेषनाग हैं, जिनकी शैय्या पर स्वयं भगवान विष्णु विराजमान रहते हैं। भगवान शिव के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा विराजमान रहता है, जिससे हलाहल विष की अग्नि शांत रहती है। इसी कारण भगवान् शिव का एक नाम चंद्रशेखर भी है। भगवान शिव की जटाओं में मां गंगा बहती रहती हैं। 

भगवान शिव के वाहन नंदी हैं, जो एक बैल हैं। इन्हें धर्म का प्रतीक माना जाता है। यही वजह है कि शिवजी की ध्वजा पर नन्दी का चित्र विराजमान होता है। भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती का वाहन सिंह है। उनके पुत्रों में कार्तिकेय का वाहन मयूर और श्री गणेश का वाहन मूषक है। यदि हम गौर से देखें तो यह सभी एक दूसरे के शत्रु माने जाते हैं लेकिन भगवान शिव के दरबार में यह सभी एक दूसरे के साथ मित्रवत रहते हैं। यही भगवान शिव की सबसे बड़ी खूबी है कि वे प्रकृति में संतुलन स्थापित करते हैं और सभी पर दया भाव रखते हैं।

भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप शिव और शक्ति अर्थात पुरुष और प्रकृति के मिलन का अद्भुत संयोग है यही वजह है कि जब मानव स्वार्थी बनकर प्रकृति को नष्ट करने पर आमादा हो जाता है तो भगवान शंकर क्रोधित होकर उसे दंड देते हैं। वर्तमान समय में कोरोना की बीमारी भी मानवों की स्वार्थपरता की निशानी है और यही वजह है कि भगवान शिव प्रकृति में संतुलन बनाए रखने पर जोर देते हैं। वर्तमान कोरोनावायरस के समय में हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाने का जो अवसर प्राप्त हुआ है, उसे हमें हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।

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अनेक धर्मों में ही शिव पूजनीय हैं 

आपने हिंदू धर्म में तो भगवान शिव की महिमा सुनी ही होगी लेकिन अन्य धर्मों में भी भगवान शिव को प्रतीक रूप में देखा जा सकता है। शैव, नाथ, दिगंबर, सूफी, सिद्ध संप्रदाय भगवान शिव को ही मानते हैं। बौद्ध धर्म में भी भगवान शिव को काफी महत्व दिया गया है और भगवान बुध के प्राचीन नामों में शणंकर, मेघंकर और तणंकर नाम आते हैं।

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने सप्तर्षि को ज्ञान प्रदान किया था और उन्होंने ही आगे चलकर उस ज्ञान को आगे बढ़ाया। भगवान शिव ने ही तंत्र की रचना की और यंत्र और मंत्र भी भगवान शिव से ही आए। रुद्रयामल भगवान शिव का वह ज्ञान है, जिसमें सबकुछ समाहित है। 

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देव और दानव दोनों के प्रिय शिव

भगवान शिव की पूजा देवों के साथ दानव भी करते हैं। केवल इतना ही नहीं, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, पिशाच, राक्षस, असुर, मानव, सभी भगवान शिव को अपना आराध्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। यही वजह है, जो भगवान शिव को महादेव बनाती है। विभिन्न आदिवासी कबीलों और वनवासियों आदि में भी भगवान शिव को प्रमुखता से स्थान दिया गया है।

समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, जो कि समस्त संसार के लिए प्रलयंकारी था और जिससे देव और दानव किसी का भी बच पाना असंभव था, उसे भगवान शिव ने समस्त संसार के कल्याण के लिए अपने कंठ में धारण कर लिया और वह नीलकंठ कहलाए। यही वह खास बात है, जो उन्हें सबसे ज्यादा महान बनाती है।

योग से लेकर नाटक के रचयिता

भगवान शिव को अष्टांगिक योग का प्रणेता माना जाता है क्योंकि उन्होंने ही इसके बारे में सर्वप्रथम जानकारी दी और उन्हीं के कारण समस्त संसार इस महान योग के बारे में जान पाया। भगवान शिव नाटक कला को भी समस्त संसार के समक्ष लेकर आए। इन्हीं शिव को भगवान नटराज के नाम से जाना जाता है जो नाटक कला के भी माहिर हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के डमरू से निकली ध्वनि से ही शब्दों की रचना हुई। 

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भगवान शिव के प्रतीक चिन्ह

भगवान शिव के प्रतीक चिन्हों में सबसे पहले जिसका नाम आता है, वह है शिवलिंग। इसके अतिरिक्त रुद्राक्ष जिसे शिव के अश्रुओं से उत्पन्न माना जाता है, शिव का प्रमुख चिन्ह है। इसके अतिरिक्त त्रिशूल को भी भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के भक्त मस्तक पर त्रिपुंड धारण करते हैं क्योंकि यह भी भगवान शिव का प्रिय चिन्ह है।

इसके अतिरिक्त भस्म को भी भगवान शिव का प्रिय प्रतीक माना गया है। भगवान शिव को बिल्वपत्र अत्यंत प्रिय हैं। त्रिशूल से लेकर त्रिपुंड और तीन पत्तों वाला बिल्वपत्र सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शिव के प्रमुख भक्त

भगवान शिव को आदि काल से ही पूजनीय माना जाता है। इसलिए भगवान शिव के भक्तों की संख्या असंख्य है लेकिन भगवान के कुछ प्रमुख भक्तों में एक नाम दशानन रावण का आता है, जिन्होंने भगवान शिव को कठोर तपस्या से प्रसन्न किया और अपना आराध्य बनाया। भगवान शिव ने ही उन्हें चंद्रहास नमक खड़ख दिया तथा अपनी समस्याओं को दूर करने और अपनी पीड़ा के हरण के लिए दशानन रावण ने भगवान शिव को समर्पित करके श्री शिव तांडव स्तोत्र की रचना की जो आज भी भगवान शिव के भक्तों में अत्यंत लोकप्रिय है।

भगवान शिव के भक्तों में श्री राम का नाम भी आता है, जिन्होंने दशानन रावण पर विजय से पूर्व रामेश्वरम में स्वयं शिवलिंग की स्थापना की थी। भगवान श्री कृष्ण ने भी कैलाश पर्वत पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी।

भगवान शिव के परम शिष्य में शनि देव का नाम ही सर्वोपरि है क्योंकि भगवान शिव ने ही उन्हें कर्म फल दाता और दंडाधिकारी बनाया। भगवान परशुराम भी भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं। भगवान शिव के रूद्र अवतारों में से एकादश रूद्र अवतार श्री हनुमान हैं, जो सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं। भगवान शिव ने ही तीन पुरों का अंत किया था जिस कारण से उन्हें त्रिपुरारी कहा जाता है।

शिवलोक है कैलाश

कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है, जहां वह माता पार्वती के साथ विराजते हैं। यही वजह है कि हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत की खासी मान्यता है और लोग कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर प्रतिवर्ष जाकर भगवान शिव के उस महान कैलाश पर्वत की परिक्रमा लगाते हैं। वर्तमान समय में यह चीन में स्थित है।

अमरनाथ बर्फानी के नाम से जाने जाने वाले भगवान शिव के दर्शन करने प्रत्येक वर्ष उनके भक्त हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमर कथा सुनाई थी, जिसे दो कबूतरों ने सुन लिया था और वे अमर हो गए थे। इसलिए आज भी भक्तों को भगवान अमरनाथ के दर्शन के समय ऐसे कबूतर के जोड़े के दर्शन करना शुभ माना जाता है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग बताते हैं शिव की महिमा

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम्॥१॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम्।

सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥२॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे।

हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये॥३॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।

सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥४॥

उपरोक्त द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में भगवान शिव के समस्त द्वादश ज्योतिर्लिंग के बारे में बताया गया है। इनके दर्शन करके व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

भगवान शिव ने मृत संजीवनी विद्या दैत्य गुरु शुक्राचार्य को दी जिसके कारण उन्होंने राक्षसों का संहार रोक लिया। ऐसे अनगिनत रहस्य भगवान शिव से संबंधित हैं जिनमें से काफी हमें पता है लेकिन अनेक पर से पर्दा उठना अभी बाकी है।

वास्तविकता यह है कि भगवान शिव के बारे में जितना जानना जाना जाए, वह काफी कम निकलता है और उन्हें जानने की तीव्र इच्छा प्रकट होती है। यही शिव तत्व की महत्ता है और हम सभी को अपनी सभी समस्याओं को भगवान शिव को समर्पित करते हुए उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमारे जीवन की सभी समस्याओं का अंत करें और हम पर प्रसन्न रहें।

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