जानिए कब है शीतला सप्तमी? इस व्रत के प्रभाव से दूर होते हैं सभी रोग

शीतला सप्तमी हिन्दू धर्म का एकलौता ऐसा व्रत है, जिसमें बासी भोजन किया जाता है। होली के त्यौहार के सातवें और आठवें दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। इसके अलावा कुछ समुदायों में होली के बाद आने वाले सोमवार को ये पूजा किये जाने का प्रावधान है। मान्यता है कि माता शीतला के इस व्रत-उपवास से रोग और चेचक, फोड़े, फुंसियों, ज्वर इत्यादि रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और ये प्रसन्न होने पर अपने भक्तों की सेहत की रक्षा कर के उन्हें सभी दुखों से दूर रखती हैं।

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इस वर्ष कब है शीतला सप्तमी?

इस वर्ष शीतला सप्तमी का पर्व 15 मार्च 2020, रविवार को मनाया जायेगा। इस दिन श्वेत पाषाण रूपी माता शीतला की पूजा की जाने की परंपरा है। शीतला सप्तमी खासकर के उत्तर भारत में मनाई जाती है। इस दिन शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए कुछ ख़ास काम बताये गए हैं जैसे,

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  • इस दिन प्रात:काल उठकर स्नान कर स्वच्छ हो जाना चाहिये। 
  • इसके बाद व्यक्ति को व्रत का संकल्प लेकर पूरे विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करनी चाहिये। 
  • स्नान और पूजा के वक्त ‘हृं श्रीं शीतलायै नमः’ का उच्चारण करते रहें तो अच्छा रहता है। 
  • इस दिन सबसे ख़ास बात ये होती है कि शीतला माता को पहले से बने हुए यानि बासी भोजन का भोग लगाना चाहिये। 
  • इसके बाद शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत की कथा सुननी चाहिए
  • इसके अलावा मुमकिन हो तो रात में माता का जागरण भी किया जाना चाहिए, इसे बहुत ही शुभ माना गया है।

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इस दिन चढ़ता है चावल का प्रसाद

शीतला सप्तमी के दिन शीतला माता को खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है। ये मीठे चावल गुड़ या गन्ने के रस को चावल में मिलाकर बनाए जाते हैं। शीतला सप्तमी से एक रात पहले ही इन्हें घर में बनाकर रख लिया जाता है और पूजा के बाद इसे ही घर में सभी सदस्यों को खिलाया जाता है। इसके अलावा इस दिन से जुड़ी एक ख़ास मान्यता यह भी है कि इस दिन घर में सुबह के समय कुछ और नहीं बनाया जाता है। जो लोग इस दिन व्रत रहते हैं वो इसी मीठे चावल को खाकर ही रहते हैं। 

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जानिए शीतला सप्तमी का महत्व

जैसा कि हिन्दू धर्म में सभी त्योहारों और व्रत-उपवासों का अपना महत्व बताया गया है वैसा ही शीतला सप्तमी का महत्व बताते हुए कहा गया है कि इस व्रत को रखने से संतानों की सेहत हमेशा अच्छी बनी रहती है। इसके अलावा व्रत के प्रभाव से उन्हें किसी भी तरह का कोई बुखार, आँखों से जुड़ी कोई भी समस्या, ठंडों में होने वाली कोई भी परेशानी नहीं होती है।  

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पढ़िए शीतला सप्तमी की व्रत कथा

शीतला सप्तमी की व्रत कथा के अनुसार, एक बूढ़ी औरत थी। एक बार उसने और उनकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा था। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन बासी चावल ही चढ़ाए और खाये जाते हैं लेकिन दोनों बहुओं ने इस दिन ताज़ा खाना बना लिया। दरअसल दोनों ही बहुओं को हाल ही में संतान हुई थी तो दोनों को डर था कि कहीं बासी खाना उन्हें कोई नुक्सान ना पहुँचा दे। दोनों ने ताज़ा खाना खा भी लिया लकिन जब ये बात उनकी सास को पता चली तो उनको दोनों पर बहुत गुस्सा आया। अभी खाना खाये हुए उन्हें कुछ ही समय बीता था कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई। जब सास को इस बात की भनक लगी तो उन्होंने अपनी दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया।

अपने मृत बच्चों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गयी। रास्ते में उन्हें दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी, बहुओं को ये बात पता चली तो उन्होंने उन बहनों के सिर को साफ कर दिया। जैसे ही बहनों को आराम मिला, आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए। बहनों की ये बात सुनकर दोनों बहुएं रोने लग गयीं और अपने बच्चों के साथ हुई घटना के बारे में बताने लग गयीं। बहुओं की कहानी सुनकर शीतला ने कहा कि तुम दोनों को तुम्हारे कर्मों का फल मिला है। ये बात सुनकर उन दोनों को एहसास हो गया कि शीतला सप्तमी के दिन ताज़ा खाना बनाने की वजह से उनके बच्चों की मृत्यु हुई है। 

अपनी गलती मानकर दोनों ने शीतला माता से माफ़ी मांगी और भविष्य में ऐसा नहीं करने की प्रतिज्ञा भी ली। तब शीतला माता ने दोनों बच्चों को दोबारा जीवित कर दिया। इसी के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई।  

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