मां दुर्गा के अनेक रूप है, और उन्हीं में से एक रूप है देवी शीतला माता का| माता शीतला आरोग्य और शीतलता प्रदान करने वाली देवी है| शीतलाष्टमी के दिन मां शीतला की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सुख की प्राप्ति होती है, और वह सदैव निरोग रहता है| जिस तरह मां काली ने राक्षसों का नाश किया था, ठीक उसी तरह से मां शीतला देवी व्यक्ति के अंदर छिपे रोग रूपी असुर का नाश करती हैं|
मां शीतला का व्रत और पूजा-पाठ करने से व्यक्ति सदैव प्रसन्न रहता है, और उस पर मां की कृपा बनी रहती है| शीतलाष्टमी देशभर में अलग-अलग जगह पर शुक्ल और कृष्ण पक्ष की तिथियों पर मनाया जाता है लेकिन इस व्रत का मूल भाव एक ही है| इस साल 2021 में शीतलाष्टमी रविवार के दिन 4 मई को मनाया जाएगा
शीतला अष्टमी पूजा- 4 मई, 2021
पूजा मुहूर्त- 4 मई को सुबह 6 बजकर 08 मिनट से शाम 06 बजकर 41 मिनट तक
कुल अवधि- 12 घंटे 33 मिनट
शीतला अष्टमी का आरंभ- 4 मई 2021 को सुबह 04 बजकर 12 मिनट से
शीतला अष्टमी समापन – 5 मई 2021 को सुबह 02 बजकर 59 पर होगा.
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शीतला अष्टमी पूजा का महत्व
मां शीतला के स्वरूप को शीतलता प्रदान करने वाला माना गया है| ऐसी मान्यता है कि, जो भी भक्त सच्चे मन से और पूरे विधि-विधान से शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला का व्रत करता है, उसके सभी कष्ट माता हर लेती है, और उसे निरोग बना देती है| ऐसी भी मान्यता है कि, शीतला अष्टमी के दिन व्रत करने से चिकन पॉक्स, दुर्गंध युक्त फोड़े, नेत्र विकार, खसरा और चेचक जैसे अनेक रोगों से छुटकारा मिलता है|
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माता शीतला को क्यों चढ़ता है बासी भोग ?
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है| एक दिन पहले सारा भोजन बनाकर तैयार कर लिया जाता है, और फिर दूसरे दिन प्रात काल उठकर घर की महिलाएं शीतला माता की पूजा करने के बाद मां को बासी भोजन का भोग लगाती है, और घर के सभी सदस्य भी बासी भोजन ही करते हैं| हिन्दू मान्यता के अनुसार शीतला माता की पूजा के दिन ताजा खाना खाना और गर्म पानी से स्नान करना वर्जित है|
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कैसा है मां शीतला का स्वरूप ?
शक्ति का स्वरूप देवी दुर्गा और माता पार्वती का अवतार कही जाने वाली माता शीतला का स्वरूप बेहद आकर्षित है| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता शीतला गधे की सवारी करती हैं, और उन्होंने एक हाथ में झाड़ू और एक हाथ में ठंडे जल का कलश धारण किया है| माता शीतला ने नीम के पत्तों से बने आभूषणों को भी धारण किया है और उनके मुख पर एक विशेष प्रकार का तेज है| देवी पार्वती और देवी दुर्गा का यह स्वरूप व्यक्ति को सभी तरह के शारीरिक कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाला है |
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कैसे करें माता शीतला की पूजा
- प्रात काल उठकर पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें|
- साफ- सुथरे नारंगी रंग के वस्त्र धारण करें|
- पूजा करने के लिए दो थाली सज़ाएँ |
- एक थाली में दही, रोटी, पुआ, बाजरा, नमक पारे, मठरी और सतमी के दिन बने मीठे चावल रखें|
- दूसरी थाली में आटे का दीपक बनाकर रखें, रोली, वस्त्र अक्षत, सिक्का और मेंहदी रखें, और ठंडे पानी से भरा लोटा रखें|
- घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करके बिना दीपक जलाए रख दें, और थाली में रखा भोग चढ़ाए|
- नीम के पेड़ पर जल चढ़ाएं |
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- दोपहर के वक्त शीतला माता के मंदिर में जाकर फिर से पूजा अर्चना करें| माता को जल चढ़ाएं| रोली, हल्दी का टीका करें| मां को मेंहदी लगाए, और नए वस्त्र अर्पित करें| उसके बाद बासी खाने का भोग लगाकर, कपूर जलाकर आरती करें|
- संभव हो तो होलिका दहन वाली जगह पर जाकर भी पूजा करें|
- पूजा सामग्री बचने पर किसी गाय या ब्राह्मण को दान दें|
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