पढ़ें नवरात्रि में सातवें दिन की पूजा का महत्व और मॉं कालरात्रि की महिमा।
वर्ष 2019 में आज यानी 5 अक्टूबर, शनिवार को नवरात्रि की सप्तमी तिथि का आयोजन देशभर में बेहद हर्षोल्लास के साथ किया जाना हैं। इस अवसर पर देशभर के सभी मंदिरों और शक्ति पीठों में मां के भक्तों और श्रद्धालुओं का तांता अभी से लगना शुरू हो गया है। शरद नवरात्रि का सातवाँ दिन बेहद विशेष महत्व रखना है। मुख्य तौर से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और असम में इसी दिन को महासप्तमी दुर्गा पूजा उत्सव का पहला दिन माना जाता है। ऐसे में इस तिथि का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर होती है मां कालरात्रि की पूजा
जैसा सभी जानते हैं कि हर वर्ष आने वाली शरद नवरात्रि में देवी दुर्गा के विभिन्न नौ रूपों की उपासना और पूजन किये जाने का विधान है। इन्ही नौ रूपों में से सप्तमी तिथि यानि नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के मॉं कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। मां के कालरात्रि रूप को शुभंकरी देवी भी कहा जाता है। अपने नाम ‘काल’ की ही तरह मां दुर्गा का यह रूप बेहद आक्रामक और भयभीत करने वाला होता है, इसी कारण मॉं कालरात्रि को पापियों का नाश करने वाली देवी भी कहा जाता हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त इस दिन मां की कृपा प्राप्त कर लेता हैं तो मां की कृपा मात्र से ही उससे सारी बुरी व नकारात्मक शक्तियाँ दूर हो जाती हैं।
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मां कालरात्रि का स्वरूप
- अगर इसके स्वरूप की बात करें तो मां कालरात्रि गर्दभ (गदहा) की सवारी करती हैं।
- मां का वर्ण घने अंधकार की तरह ही बेहद काला होता है और मां के केश यानी सिर पर बिखरे बाल होते हैं।
- मां की तीन आँखें होती हैं, जिनका अग्नि की तरह लाल रंग बेहद डरावना होता है।
- मां के इस रूप में उनकी स्वाँस से अग्नि उत्पन्न हो रही होती है, जिससे वो पापियों का संहार करती हैं।
- मां कालरात्रि की चार भुजाएँ हैं, जिनमें से अपने दोनों दाहिने हाथ में मां क्रमशः अभय और वर मुद्रा में होती हैं।
- जबिक दोनों बाएँ भुजाओं में क्रमशः तलवार और खड़ग सुशोभित होते हैं और इन्ही से माना जाता है कि मां असुरों का संहार कर अपने भक्तों की सदैव रक्षा करती हैं।
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नवरात्रि के सातवे दिन की पूजा विधि
हिन्दू मान्यताओं अनुसार देवी दुर्गा के मां कालरात्रि स्वरूप की सच्चे भाव से आराधना करने से हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का तो नाश होता है, साथ ही जातक को जीवन में सफलता की प्राप्ति भी होती है। नवरात्रि के सातवें दिन की पूजा का विधान भी बेहद सामान्य ही है, लेकिन तंत्र पूजा विद्वान पंडितों के लिए ये पूजा दिशा-निर्देश में ही की जानी चाहिए:-
- सर्वप्रथम मां कालरात्रि की पूजा से पहले कलश देवता अर्थात भगवान गणेश का विधिवत तरीके से पूजन करें।
- भगवान गणेश को फूल, अक्षत, रोली, चंदन, अर्पित कर उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान कराए व देवी को अर्पित किये जाने वाले प्रसाद को पहले भगवान गणेश को भी भोग लगाएँ।
- प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट करें।
- फिर कलेश देवता का पूजन करने के बाद नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा भी करें।
- इन सबकी पूजा-अर्चना किये जाने के पश्चात ही मां कालरात्रि का पूजन शुरू करें।
- इसके लिए अपने हाथ में एक पुष्प लेकर मॉं कालरात्रि का ध्यान करें।
- इसके बाद मॉं कालरात्रि का पंचोपचार पूजन करें और लाल फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें।
- घी अथवा कपूर जलाकर मॉं कालरात्रि की आरती करें।
- अब अंत में मां के मन्त्रों का उच्चारण करते हुए उनसे अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
- ध्यान रखे कि मॉं कालरात्रि की उपासना के लिए सबसे उपयुक्त समय मध्य रात्रि में ही होता है।
- इस पूजा-विधि के दौरान विशेष रूप से लाल और काली वस्तुओं का प्रयोग करने का महत्व है।
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नवरात्रि में सातवें दिन का महत्व
नवरात्रि का सातवाँ दिन देवी दुर्गा के माँ कालरात्रि रूप को प्रसन्न करने का सबसे शुभ व सरल अवसर होता है। मां के भक्तों के अलावा योगी और साधकों द्वारा सिद्धियाँ प्राप्ति के लिए भी इस दिन को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता अनुसार यही वो दिन होता है जब कोई भी व्यक्ति अपने पापों का प्रायश्चित कर कलयुग में सहस्रार चक्र को प्राप्त कर सकता है। इसलिए इस दिन की जाने वाली हर पूजा निश्चित रूप से ही सिद्ध होती है। माँ कालरात्रि अपने इतने भयावह काल रूप होने के बावजूद भी वह अपने भक्तों के प्रति बेहद दयालु और कोमल होती हैं। अपने काल रूप से मां अपने भक्तों को हर बुराई और पापियों से बचाती है। ऐसे में जो भी भक्त सच्चे भाव से माँ की आराधना करता है तो मां उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं।
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एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को नवरात्रि उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं!