भगवान शनि को तीनों लोक का स्वामी माना जाता है। भगवान शनि सूर्य देवता के पुत्र हैं। मान्यता है कि भगवान सूर्य ने भगवान शनि का उनके काले रंग की वजह से त्याग कर दिया था। यही वजह है कि भगवान शनि अपने पिता से बैर रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र में यूँ तो शनि को पापी ग्रह माना जाता है लेकिन देश के कई हिस्सों में उनकी पूजा भी होती है जिसमें से तीन जगह प्रमुख हैं। ये तीन जगह हैं शनि शिंगणापुर जो कि महाराष्ट्र में स्थित है, कोकिला वन जो कि वृन्दावन में मौजूद है और तीसरा गोमती नदी के तट पर ग्वालियर में मौजूद है।
इन तीनों जगहों में से शनि शिंगणापुर को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ के लोगों में भगवान शनि को लेकर इतनी आस्था है कि इस इलाके के लोग आज भी दुकानों और घरों में ताले नहीं लगाते हैं क्योंकि उनका मानना है कि जो कोई भी चोरी की मंशा रख कर इलाके के किसी दुकान या घर में दाखिल होता है, उसे भगवान शनि दंड देते हैं। रोचक बात यह है कि इस इलाके में आज भी चोरी की घटना ना के बराबर ही होती है। इलाके के लोग इसे भगवान शनि का चमत्कार ही मानते हैं। शनि शिंगणापुर की स्थापना को लेकर एक बेहद रोचक कथा है जिसे हम आज आपको इस लेख के जरिये बताने वाले हैं।
क्या है शनि शिंगणापुर की कथा?
जहाँ शनि शिंगणापुर मंदिर है वहां से थोड़ी ही दूर पर पानस नाम का नाला बहता है जिसके किनारे गांव के लोग पहले अपने मवेशियों को चराने के लिए ले जाया करते थे। कहा जाता है कि लगभग 200 साल पहले इस इलाके में एक दिन बहुत तेज बारिश हुई जिसकी वजह से इलाके में बाढ़ जैसे हालात हो गए। पानस नाले का जलस्तर भी इतना बढ़ गया कि लोगों ने उधर जाना बंद कर दिया।
बाद में जब पानी कम हुआ तो गांव के लोग मवेशी चराने के लिए वापस पानस के किनारे गए। तब कुछ चरवाहों की नजर वहां एक बेर के पेड़ पर पड़ी जिसके सहारे एक बहुत बड़ी काले रंग की शिला अटकी हुई थी। उन्हें इस शिला को देख कर उत्सुकता हुई तो उन्होंने इस शिला को एक लकड़ी से हिलाने की कोशिश की। उनकी इस कोशिश से शिला में एक बहुत बड़ा छेद हो गया और उससे लहू टपकने लगा। शिला से लहू बहता देख गांव वाले घबरा गए और शिला को वहीं छोड़ कर वापस गांव आ गए।
उस रात में गांव के लोगों को एक स्वप्न आता है जिसमें स्वयं शनि देव प्रकट होकर उन्हें बताते हैं कि उनके गांव में बह कर आयी शिला भगवान शनि का ही रूप है ऐसे में गांव के लोग जाकर उस शिला को ले आएं और अपने गांव में स्थापित करें। स्वप्न में भगवान का आदेश पाकर गांव के लोग अगले दिन बैलगाड़ी लेकर वहां पहुँचते हैं ताकि शिला को लाया जा सके लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी शिला उनसे हिल तक नहीं पायी। ऐसे में निराश होकर गांव वाले घर वापस आ गए।
उस रात फिर से शनि देवता गांव वालों के स्वप्न में आते हैं और उन्हें कहते हैं कि उस शिला को वही ला सकता है जो रिश्ते में सगा मामा-भांजा हो और शिला को लाने के लिए बेर की डाली का उपयोग किया जाए। स्वप्न के बाद गांव वाले पुनः उसी स्थान पर गए और गांव के एक मामा-भांजे ने शिला को उठाने की कोशिश की। आश्चर्यजनक रूप से शिला आसानी से उठ गयी और फिर उसे बेर की डाली में रख कर गांव लाया गया और स्थापित कर दिया गया।
तब से ही वह शिला वहीं स्थापित है और लोग उसे बेहद ही श्रद्धा भाव से पूजते हैं। उस शिला पर आज भी जख्म के निशान मौजूद हैं।
शनि शिंगणापुर में जब आप भगवान शनि के दर्शन करने जाएंगे तो पाएंगे कि शनि देवता की उस शिला के ऊपर किसी भी प्रकार की कोई छत नहीं है। दरअसल इसके पीछे एक मान्यता है कि भगवान शनि को किसी का भी आधिपत्य मंजूर नहीं है इस वजह से ही उनके सर पर कोई छत नहीं रखी गयी है। इसको लेकर वहां एक दिलचस्प वाकया भी देखने को मिलता है। जहाँ शिला स्थापित है उसकी उत्तर दिशा में एक विशालकाय नीम का पेड़ है। कहा जाता है कि उस नीम के पेड़ की डाली भी भगवान शनि की शिला के ऊपर अगर कभी आ जाती है तो वह खुद ब खुद टूट कर गिर जाती है।
मंदिर परिसर में ही एक विशेष कुआँ मौजूद है। इस कुँए के पानी से ही भगवान शनि को स्नान कराया जाता है। बाकी दूसरी जगहों पर इस कुँए के पानी का इस्तेमाल नहीं होता है। भक्त यहां भगवान शनि को काला तिल, तेल और काली उड़द चढ़ाते हैं। ये तीनों चीजें भगवान शनि को बेहद प्रिय हैं। तो अगली बार कभी आप महाराष्ट्र की ओर जाएं या फिलहाल वहां मौजूद हों तो कोविड के नियमों का पालन करते हुए भगवान शनि के इस पवित्र स्थान पर जाकर उनके दर्शन जरूर करें।
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