इस चमत्कारी मंदिर में ज़ोर लगाने से नहीं बस ऊँगली लगाने से हिल जाता है स्तम्भ

भागीरथी नगरी के किनारे उत्तरकाशी में  एक बेहद प्राचीन शक्ति मंदिर है। यूँ तो किसी अन्य मंदिर की ही तरह इस मंदिर के कपाट भी पूरे साल-भर खुले रहते हैं लेकिन नवरात्रों और दशहरे पर यहां श्रद्धालुओं की जो भीड़ उमड़ती है वो देखने लायक होती है। भक्तों के बीच इस मंदिर की काफी मान्यता है। यात्रा काल में गंगोत्री यमुनोत्री के दर्शन करने वाले यात्री यहां दर्शन के लिए अवश्य आते हैं। उत्तरकाशी में स्थित शक्ति मंदिर के दर्शन का विशेष महत्व बताया जाता है।

यहाँ एक प्रचलित मान्यता है जिसके तहत माना जाता है कि जिस भी भक्त को अपनी मनोकामना पूरी करवानी हो उसे नवरात्रि और दशहरे के दिन यहाँ रात में जागरण करना होता है, इस मान्यता के तहत लोग ऐसा करते भी हैं। इस मंदिर का सबसे आकर्षित चीज़ हैं यहाँ का शक्ति स्तम्भ।  आपको जानकर बेहद ही अचरज होगा कि यह शक्ति स्तम्भ ऐसा है कि अगर आप इसपर ज़ोर लगाएंगे तो ये टस-से-मस नहीं होगा लेकिन इसे अगर आप अपनी ऊँगली से छूते हैं तो ये हिल जाता है। गंगोत्री और यमुनोत्री आने वाले यात्रियों के लिए यह शक्ति स्तम्भ हमेशा से ही आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र रहा है।

इस मंदिर का इतिहास

स्कंद पुराण के केदारखंड में इस मंदिर,  का वर्णन किया गया है। यह मंदिर सिद्धिपीठ पुराणों में राजराजेश्वरी माता शक्ति के नाम से जानी गई है। बताया जाता है कि जब अनादि काल में देवासुर संग्राम हुआ था तो उस युद्ध में एक समय ऐसा आया जब देवता असुरों से हारने लगे। तब ऐसा अनर्थ ना हो इसलिए सभी देवताओं ने मां दुर्गा की उपासना की। जिसका परिणाम यह हुआ कि माँ दुर्गा ने शक्ति का रूप धारण किया और असुरों से युद्ध कर के उनका वध कर दिया। इसके बाद से ही यह दिव्य शक्ति के रूप में विश्वनाथ मंदिर के पास ही विराजमान हो गई और अनंत पाताल लोक में भगवान शेष नाग के मस्तिष्क में शक्ति स्तम्भ के रूप में विराजमान हो गई।

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शक्ति स्तम्भ से जुड़े हैरान करने वाले तथ्य

सबसे पहले तो शक्ति स्तम्भ के बारे में जो बात सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली होती है वो यह है कि आज तक इस बात का पता नहीं चल पाया है कि आखिर में ये शक्ति स्तम्भ किस धातु का बना है।

इस शक्ति स्तम्भ के गर्भ गृह में गोल आकार का एक कलश है जो अष्टधातु का बताया जाता है।

इस स्तम्भ पर अंकित लिपि के अनुसार यह कलश 13वीं शताब्दी में राजा गणेश ने गंगोत्री के पास सुमेरू पर्वत पर तपस्या करने से पूर्व स्थापित किया था।

यह शक्ति स्तंभ कुल 6 मीटर ऊंचा और तकरीबन 90 सेंटीमीटर परिधि वाला है।

मंदिर तक पहुँचने का रास्ता

ऋषीकेश से सड़क मार्ग के माध्यम से 160 किलोमीटर चलकर उत्तरकाशी पहुंचा जा सकता है। उसके बाद उत्तरकाशी बस स्टैंड से तकरीबन तीन सौ मीटर दूर शक्ति मंदिर स्थिति है। बता दें कि शक्ति मंदिर के सामने ही विश्वनाथ मंदिर भी स्थित है।

शक्ति मंदिर के पुरोहित लोग बताते हैं कि शक्ति मंदिर में पुराने समय से लोगों की बड़ी आस्था जुड़ीं है। नवरात्रि और दशहरे में इस मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि किसी भी प्रमुख पर्व के दौरान मां शक्ति के दर्शन मात्र से ही मानव का कल्याण संभव हो जाता है।

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