आज है शबरी जयंती जानिए शुभ मुहूर्त,महत्व, पूजा विधि और कथा

इस आर्टिकल में हम बात करेंगे शबरी जयंती के महत्व और इस दिन के सही पूजन विधि और इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।

शबरी जयंती के दिन भगवान श्री राम की पूजा करने का विधान बताया गया है और इस दिन माता शबरी को याद किया जाता है। इस दिन सबरीमाला में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। माता शबरी भगवान श्री राम की बहुत बड़ी भक्त थीं। इनकी भक्ति और अपने प्रति आस्था देखकर भगवान माता शबरी से बेहद प्रसन्न हुए थे और उन्होंने शबरी के जूठे बेर भी खाए थे। 

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शबरी जयंती का यह पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सबरीमाला में माता शबरी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जो कोई भी इंसान इस दिन सच्ची आस्था से माता शबरी की पूजा करता है उससे भगवान श्री राम की कृपा ठीक उसी प्रकार से प्राप्त होती है जैसे माता शबरी को हुई थी। 

शबरी जयंती कब है 

इस वर्ष शबरी जयंती का यह पर्व 5 मार्च 2021 को शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। 

सप्तमी तिथि प्रारम्भ – मार्च 04, 2021 को 09:58 पी एम बजे

सप्तमी तिथि समाप्त – मार्च 05, 2021 को 07:54 पी एम बजे

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शबरी जयंती की पूजन विधि 

इस दिन माता शबरी के साथ भगवान श्री राम की पूजा भी की जाती है। 

  • इस दिन साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। 
  • इसके बाद एक साफ़ चौकी पर गंगा जल छिड़क कर उस पर भगवान श्री राम की प्रतिमा या मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। 
  • प्रतिमा स्थापित करने के बाद भगवान श्री राम को फल, फूल, नैवेद्य और विशेष रूप से बेर अर्पित करने चाहिए। 
  • इसके बाद भगवान श्री राम के आगे धूप, दीप, नैवेद्य आदि जलाएं। 
  • धूप दीप जलाने के बाद भगवान श्री राम की विधिवत पूजा करें। 
  • इसके बाद भगवान श्री राम की कथा पढ़ें या सुने और दूसरों को सुनाए। 
  • कथा पढ़ने के बाद धूप-दीप से भगवान की आरती उतारें। 
  • इसके बाद भगवान श्रीराम को बेर का भोग अवश्य लगाएं और भोग लगाते समय माता शबरी को अवश्य याद करें। 
  • अंत में पूजा में अनजाने में ही सही लेकिन किसी भी गलती के लिए भगवान श्रीराम से क्षमा याचना माँगे। 
  • मुमकिन हो तो इस दिन अपनी सामर्थ्य अनुसार निर्धन और ज़रूरतमंद लोगों को बेर बांटे। 

शबरी जयंती का महत्व 

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती का पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि, शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त थीं। ऐसे में भगवान श्रीराम ने उनके जूठे बेर खा कर उनकी भक्ति को पूरा किया था। राम भक्त शबरी का वर्णन रामायण, भागवत गीता, रामचरित मानस, सुरसागर आदि ग्रंथों में मिलता है। ऐसे में शबरी जयंती के मौके पर शबरी स्मृति यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में भगवान श्री राम के भक्त शामिल होते हैं। शबरी जयंती के दिन रामायण और अन्य ग्रंथों का पाठ किया जाता है और अलग-अलग तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। 

शबरी जिनका असली नाम श्रमणा था उनका जन्म शबरी जाति के परिवार में हुआ था। बचपन से ही श्रमणा भगवान श्री राम की परम भक्त हुआ करती थी। उन्हें अपने दिन में जैसे ही समय मिलता था वह भगवान श्री राम की पूजा अर्चना करने में जुट जाया करती थी। श्रमणा का जब विवाह हुआ उसके साथ ही उनके जीवन में दुर्भाग्य और भी बढ़ गया क्योंकि श्रमणा का पति राक्षसी प्रवृत्ति का था। वह लोगों को परेशान किया करता था। ऐसे में श्रमणा से भी लोग दूरी बना कर रखने लगे थे। हालांकि फिर श्रमणा ने अपनी राम भक्ति नहीं छोड़ी। अपने पति के राक्षसी प्रवृत्ति से डरकर श्रमणा ने अपने घर को त्यागने का फैसला कर लिया और मतंग ऋषि के आश्रम में जाकर रहने लग गयी। एक दिन श्रमणा का पति उन्हें ढूंढते हुए मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचा और ऋषियों से अभद्रता करने लगा। क्रोधित होकर मतंग ऋषि ने उसे बांध दिया। तब श्रमणा का पति क्षमा याचना मांगने लगा और उसने कभी भी दोबारा यहां ना आना आने की कसम खा ली। इसके बाद श्रमणा राम भगवान श्री राम की भक्ति में लीन हो गई। 

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एक बार प्रभु श्री राम माता जानकी को खोजते हुए श्रमणा के पास पहुंचे। इसी दौरान भगवान श्रीराम को बेर खिलाने लगी और इसी दौरान उन्होंने भक्ति में लीन होकर कब उन्हें अपने झूठे बेर खिला दे इस बात का पता ही नहीं चला। 

शबरी जयंती क्यों है खास? 

बताया जाता है कि, शबरी जयंती के दिन ही शबरी हो उसके भक्ति के परिणाम स्वरूप मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। ऐसे में यह पर्व मोक्ष और भक्ति का प्रतीक भी माना जाता है। जो कोई भी इंसान इस दिन सच्ची भक्ति से पूजा-अर्चना इत्यादि करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। 

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कौन थी शबरी? 

मां शबरी का बचपन में नाम श्रमणा था।  वह भील समुदाय की थी और उनके पिता भील लोगों के राजा हुआ करते थे।  शबरी का पालन उनके पिता ने बहुत ही लाड-प्यार से किया था।  जब शबरी विवाह के योग्य हुई तो उनके पिता ने उनकी एक सुयोग्य खोजा।  उस समय विवाह के दौरान जानवरों की बलि देने की प्रथा हुआ करती थी।  इसी प्रथा के चलते शबरी के पिता ने विवाह से 1 दिन पहले सौ भेड़-बकरियां लेकर के आए और उनकी बलि की तैयारी करने लगे।  इस बात की भनक जब शबरी को लगी तो वो उन भेड़-बकरियों को बचाने के लिए उन्होंने लाखों कोशिशें की।  

भेड़ बकरियों को बचाने के लिए शबरी ने सुबह ही सभी जानवरों को खुला छोड़ दिया और खुद भी वन में चली गई।  इस दिन के बाद से वह कभी अपने घर वापस नहीं आई।  शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त हुआ करती थी।  बताया जाता है कि, उनकी ऐसी निष्ठा भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान श्रीराम ने ना ही केवल उनके झूठे बेर खाए थे बल्कि उन्हें भी मोक्ष का आशीर्वाद दिया था। 

शबरी को प्राप्त था मतंग ऋषि का आशीर्वाद 

बलि से बचाने के लिए जब शबरी ने जानवरों को घर से भगाया था तो वह खुद भी कभी घर वापस लौट के नहीं गई।  वह काफी समय तक जंगलों में भटकती रही लेकिन कोई भी उन्हें आश्रम में शिक्षा देने के लिए तैयार नहीं हुआ।  उन्हें हर जगह से हटा ही दिया जाता था।  इसके बाद अंत में उन्हें मतंग ऋषि के आश्रम में जगह मिली जहां से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की।  मतंग ऋषि शबरी की सेवा भाव और गुरु भक्ति से बेहद प्रसन्न हुए थे।  ऐसे में अपने शरीर को छोड़ने से पहले उन्होंने शबरी को आशीर्वाद दिया था कि, भगवान श्री राम उनसे मिलने अवश्य आएँगे और तभी उनको मोक्ष प्राप्त होगा। 

शबरी जयंती पर निकाले जाते हैं जुलूस और होती है पूजा 

शबरी जयंती के दिन सबरीमाला मंदिर में मां शबरी की पूजा-अर्चना का विधान बताया गया है। इस दिन श्रद्धालुओं के लिए विशेष तरह का मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन मां शबरी की याद में जुलूस निकाले जाते हैं और तस्वीरों, चित्रों के माध्यम से भगवान राम द्वारा खाए गए शबरी के जूठे बेर खिलाए जाने की कथा का वर्णन प्रस्तुत किया जाता है। इस दिन शबरी मां की देवी के रूप में पूजा की जाती है। शबरी जयंती के दिन भगवान राम और उनके परिवार को बेर चढ़ाए जाते हैं और उनका सफेद चंदन से तिलक किया जाता है।

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