जानिए होली के दिन रंग लगाने के वैज्ञानिक लाभ और कैसे शुरू हुई रंग लगाने की परंपरा

होली का नाम सुनते ही सबसे पहला ख्याल जो मन में आता है वह है रंग और रंगों से पुते चेहरे। गलियों में कहीं हाथों में पिचकारी थामे बच्चों की हंसी सुनाई देती है तो कहीं कोई चाचा कुर्ते की जेब से रंग की थैली निकाल कर अपने से किसी छोटे के गाल पर मल रहे होते हैं। तो कहीं कोई बुजुर्ग चरणों में डाले गए अबीर के जवाब में किसी छोटे के सर पर स्नेहवश हाथ फेर रहे होते हैं। या फिर कहीं कुछ जोशीले लड़कों का हुजूम बाल्टी से किसी शख्स पर रंग उड़ेलते हुए जोर से चिल्लाता हुआ दीखता है,“बुरा न मानो, होली है!” 

ये रंग डाल कर बुरा न मानने की गुजारिश हाल-फिलहाल के कुछ सालों में ही शुरू हुई है। वरना आप ही सोचिये कि होली तो खुशियों का त्यौहार है तो ऐसे में भला कोई बुरा क्यों मान जाता है? इसकी एक बहुत ही साधारण वजह है। वजह यह कि होली के रंग अब शुद्ध नहीं रह गए। उनमें रसायन की मिलावट होने लगी है। लेकिन अगर ऐसे खराब रंगों को हटा कर किसी के ऊपर ऑर्गेनिक रंग डाला जाए और फिर भी वह नाराज हो रहा है तो इसका मतलब है कि उन्हें रंग से होने वाले वैज्ञानिक फायदों का पता नहीं है। आज हम इस लेख में उन्हीं वैज्ञानिक फायदों की बात करने वाले हैं।

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क्या है होली के रंग का वैज्ञानिक लाभ?

होली के रंगों के बहुत से वैज्ञानिक लाभ हैं। दरअसल होलिका दहन के अगले दिन से चैत्र का महीना शुरू हो जाता है। चैत्र के महीने को मौसम के बदलाव के रूप में देखा जाता है। यानी कि चैत्र के आते ही ठण्ड ख़त्म हो जाती है और गर्मियों की शुरुआत हो जाती है। इस दौरान कीटाणुओं का प्रकोप ज्यादा बढ़ जाता है। ऐसे में जब किसी को रंग लगाया जाता है तो इससे कीटाणुओं का प्रभाव कम होता है। साथ ही साथ रंग लगाने के बाद जो स्नान किया जाता है उससे शरीर की सफाई भी अच्छे से होती है जिसकी वजह से कीटाणुओं का प्रकोप कम होना स्वाभाविक है।

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आपको बता दें कि कई जगह पर होली के दिन बेसन का उबटन लगाने की भी परंपरा है। बाद में इस बेसन को हटा कर होलिका के आग में फेंक दिया जाता है। बेसन से कई तरह के चर्म रोगों में आराम मिलता है। इसके साथ साथ बेसन से चेहरे पर निखार भी आता है। माना जाता है कि बेसन लगाने से कई ग्रहों के समस्या से भी जातकों को छुटकारा मिलता है। 

ऐसे शुरू हुई थी होली में रंग लगाने की परंपरा

मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अक्सर अपनी माँ से खुद के काले और राधा के गोरे होने की शिकायत करते थे। ऐसे में उनकी माँ उनकी यह बात सुनतीं और फिर हंस कर टाल देतीं। लेकिन एक दिन उन्होंने हँसते हुए भगवान कृष्ण को सुझाव दिया कि वे चाहें तो राधा के चेहरे पर रंग लगा दें तब राधा भी उनकी जैसी दिखने लगेंगी। माँ के सुझाव पर भगवान कृष्ण ने राधा को रंग लगा दिया और तब से ही होली की परंपरा शुरू हो गयी। 

हम उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपके लिए काफी मददगार साबित हुआ होगा। अगर ऐसा है तो आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ साझा कर सकते हैं।

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