सावन सोमवार व्रत विशेष : जानें इस पावन अवसर पर कैसे होंगे महादेव प्रसन्न

हिन्दू पंचांग का पांचवा महीना सावन, बस एक महीना भर नहीं है। ये उन लाखों-करोड़ों सनातन धर्म के अनुयायियों के श्रद्धा और विश्वास के उत्सव की अवधि है जो उनका देवों के देव महादेव पर है। मान्यताओं के अनुसार सावन का पवित्र महीना भगवान महादेव को अति प्रिय है। साथ ही इस महीने में भगवान शिव की पूजा का विशेष प्रावधान है। सावन के शुभ अवसर पर शुरू हो चुका है “सावन महा सेल”। पाएं एस्ट्रोसेज के सभी ज्योतिषीय उत्पादों, सेवाओं पर धमाकेदार ऑफर, बड़ी छूट और आकर्षक डील। साथ ही हमारे विद्वान ज्योतिषियों से पाएं आकर्षक रेट पर अपनी समस्याओं का समाधान। अभी क्लिक करें नीचे दिये बैनर पर।

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श्रावण महीने के सोमवार व्रत विशेष इस लेख में हम आपको सावन सोमवार व्रत से जुड़ी सारी जानकारी देंगे। साथ ही हम आपको यह भी बताएँगे कि आखिर इस दिन क्या कर के आप भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं।  ऐसे में आइये सबसे पहले आपको सावन में पड़ने वाले सभी सोमवार व्रतों की तिथि की जानकारी दे देते हैं।

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सावन महीने में पड़ने वाले सोमवार व्रत की तिथि

साल 2021 में सावन का महीना 25 जुलाई से शुरू होगा और 22 अगस्त को इसका समापन हो जाएगा। इस बार सावन में चार सोमवार पड़ेंगे।

पहला सोमवार व्रत  : 26 जुलाई, 2021

दूसरा सोमवार व्रत : 02 अगस्त, 2021

तीसरा सोमवार व्रत : 09 अगस्त, 2021

चौथा सोमवार व्रत : 16 अगस्त, 2021

आइये अब आपको सावन महीने का महत्व बता देते हैं।

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सावन महीने का महत्व

सनातन धर्म में सावन को एक बेहद ही पवित्र महीना माना जाता है। यह महीना विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है। आपको बता दें कि सावन चातुर्मास का पहला महीना होता है, ऐसे में इस समय सृष्टि के संचालन की ज़िम्मेदारी भी भगवान शिव के ही हाथों में होती है। यही वजह है कि सावन के महीने में किए जाने वाले धर्र्म-कर्म और दान-पुण्य का फल कई गुना ज्यादा और जल्दी मिलता है क्योंकि भगवान शिव स्वभाव से बहुत ही भोले हैं और अपने भक्तों पर बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने इसी महीने में निराहार रहकर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। यही वजह है कि यह महीना भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है।

भगवान शिव का यह प्रिय महीना उनके भक्तों के लिए कई मायनों में ख़ास होता है। इस महीने में सावन सोमवार के व्रत से लेकर कांवड़ यात्रा जैसे आयोजनों से भोले के भक्त लगातार उन्हें प्रसन्न करने में जुटे रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी भक्त सावन में पड़ने वाले सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना पूरे मन से करता है और उनका अभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान शिव अवश्य ही पूरी करते हैं। महिलाएं खास तौर से सोमवार के दिन व्रत रखते हुए माता पार्वती को सोलह शृंगार का सामान अर्पित करती हैं ताकि उनके पति की आयु लंबी हो सके। 

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आइये अब हम आपको सावन सोमवार व्रत की पूजा विधि बता देते हैं।

सावन में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा विधि

कहा जाता है हिन्दू धर्म के सभी देवी-देवताओं में सबसे आसान है भगवान शिव को प्रसन्न करना। सावन में भगवान शिव की प्रसन्नता हासिल करने के लिए इस विधि से करें पूजा। 

  • सावन सोमवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें।
  • इसके बाद शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने का विधान बताया गया है। हालाँकि कोरोना महामारी की वजह से इस महीने कई लोगों के लिए मंदिर जाकर रुद्राभिषेक करना मुमकिन नहीं हो सकेगा, ऐसे में आप घर पर ही उचित विधि से भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर सकते हैं। बहुत ज़रूरी लगे तो आप फोन या वीडियो कॉल पर किसी जानकार पंडित या पुजारी से विधि जान सकते हैं।   
  • इस दिन की पूजा में भगवान को बेलपत्र, धतूरा, गंगाजल और दूध अवश्य शामिल करें।
  • शिवलिंग पर पंचामृत और बेलपत्र आदि चढ़ाएं।
  • इसके अलावा शिवलिंग पर धतूरा, भांग, आलू, चन्दन, चावल इत्यादि समर्पित करें और पूजा में शामिल सभी को तिलक लगायें।
  • भगवान शिव को घी-शक्कर का भोग लगायें।
  • इसके बाद भगवान से अपनी मनोकामना मांगे और उनकी आरती करें।
  • पूजा पूरी करने के बाद सभी को प्रसाद दें।

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सावन सोमवार के व्रत और पूजा में ज़रुर रखें इन बातों का ध्यान

  • बहुत से लोग भगवान शिव की पूजा में केतकी के फूलों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन बता दें कि ऐसा कहा जाता है कि, केतकी के फूल चढ़ाने से भगवान शिवजी नाराज होते हैं। इसलिए अगर आप भी अनजाने में ऐसा कर रहे हैं तो आगे से इस बात का ख्याल रखें। 
  • इसके अलावा एक और गलती जो लोग भगवान शिव की पूजा में कर बैठते हैं वो है उन्हें तुलसी चढ़ाने की, लेकिन भगवान शिव को तुलसी भी नहीं चढ़ानी चाहिए। 
  • इसके अलावा अगर आप भगवान शिव पर नारियल का पानी चढ़ाते हैं तो वो भी गलत माना गया है। ऐसा आगे से ना करें। 
  • भगवान शिव को जब भी जल चढ़ाएं किसी कांस्य या पीतल के बर्तन से ही जल चढ़ाएं।

श्रावण सोमवार की पूजा में अवश्य करें इस मंत्र का जप 

सावन के दौरान की जाने वाली पूजा में “ओम् नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

आइये अब आपको सावन में होने वाले भगवान शिव के विभिन्न अभिषेक और उन अभिषेकों से मिलने वाले फल की जानकारी दे देते हैं।

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सावन में अभिषेक और उससे मिलने वाले फायदे

भगवान शिव को अभिषेक बहुत ही प्रिय है। सनातन धर्म में भगवान शिव का अभिषेक अलग-अलग वस्तुओं से किया जाता है। ऐसे में आइये अब हम आपको उन वस्तुओं और उनसे भगवान शिव का अभिषेक करने से मिलने वाले फल की जानकारी दे देते हैं।

दूध : वैसे जातक जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उन्हें सावन महीने में सोमवार के दिन भगवान शिव का अभिषेक गाय के दूध से करना चाहिए।

दही : भगवान शिव का अभिषेक यदि दही से किया जाये तो कार्य में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। इसके अलावा दही के अभिषेक से जातकों के जीवन में परिपक्वता की कमी भी दूर होती है।

शहद : भगवान शिव का अभिषेक यदि कोई जातक शहद से करता है तो ऐसे जातकों का समाज में मान-सम्मान बढ़ता है। साथ ही वाणी दोष खत्म होता है और स्वभाव में विनम्रता आती है। ऐसे जातक बुरे कर्म छोड़ कर सत्कर्म करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

इत्र : ऐसे जातक जो मानसिक तनाव से परेशान रहते हैं, नींद की समस्या रहती है और जीवन में शांति चाहते हैं, उन्हें भगवान शिव का अभिषेक इत्र से करना चाहिए।

घी : भगवान शिव का अभिषेक यदि घी से किया जाये तो भगवान शिव की कृपा से ऐसे जातकों का स्वास्थ्य अच्छा होता है। यदि कोई जातक लंबे समय से किसी रोग से पीड़ित है तो उसे भगवान शिव का अभिषेक घी से जरूर करना चाहिए। 

गंगाजल : यदि कोई जातक भगवान शिव का अभिषेक गंगाजल से करता है तो ऐसा जातक मृत्यु के बाद जीवन और मरण के चक्र से छोटा जाता है। ऐसे जातक का घर सुख और समृद्धि से भर जाता है।

पंचामृत : यदि कोई जातक भगवान शिव का अभिषेक पंचामृत से करता है तो ऐसे जातक की सारी मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं।

गन्ने का रस : यदि कोई जातक भगवान शिव का अभिषेक गन्ने के रस से करता है तो उस जातक को आर्थिक समस्या से छुटकारा मिलता है। 

शुद्ध जल : यदि कोई जातक शुद्ध जल से भगवान शिव का अभिषेक करता है तो उसे पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही उसे ज्वार संबंधी समस्याओं से भी निजात मिलता है। 

सरसों का तेल : किसी भी जातक को भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक हमेशा स्वयं की कुंडली किसी विद्वान ज्योतिषी से जंचवाने के बाद ही करना चाहिए अन्यथा नकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। भगवान शिव का सरसों तेल से अभिषेक करने से दुश्मनों का नाश होता है और पराक्रम में वृद्धि होती है।

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चलिये अब आपको सावन के सोमवार व्रत की महिमा से जुड़ी एक पौराणिक कथा बता देते हैं।

सावन सोमवार से जुड़ी यह कथा बताती है इस दिन का महत्व 

 इस कथा का ज़िक्र स्कन्द पुराण में मिलता है जिसके अनुसार एक बार सनत कुमार भगवान शिव से पूछते हैं कि, “हे प्रभु यह बताइए कि आपको सभी महीनों में सावन का महीना ही अति प्रिय क्यों हैं?” तब भगवान शिव ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि, “मुझसे विवाह करने के लिए देवी सती ने अपने पिता के विरुद्ध जाने तक का कठोर निर्णय ले लिया था। उन्हें विवाह किया भी, लेकिन जब उन्होंने अपने पिता के घर पर मेरा, अर्थात अपने पति का अपमान होते हुए देखा तब उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद, पर्वत राज हिमालय और नैना की पुत्री के रूप में उन्होंने देवी पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। इस जन्म में भी उन्होंने मुझसे विवाह करने के लिए इसी माह यानि, श्रावण माह में निराहार रहकर कठोर तप किया जिसके फलस्वरूप उनका विवाह मुझसे हुआ।”

बता दें कि इसीलिए आज भी कई लोग इस परंपरा का पालन करते हैं, और कुंवारी कन्याएं भगवान शिव जैसा पति पाने के लिए सोलह सोमवार का व्रत भी रखती हैं। 

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सावन कथा 

प्राचीन समय की बात है। एक धनि व्यक्ति हुआ करता था। उनके जीवन में धन-दौलत और शौहरत की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान सुख ना होने की वजह से वो और उनकी पत्नी काफ़ी दुखी थे। दोनों ही पति-पत्नी भगवान शिव के परम भक्त थे और दोनों पूरी निष्ठा से सोमवार का व्रत-पूजन किया करते थे। उन दोनों की सच्ची भक्ति देखकर भगवान शिव ने अपने आशीर्वाद से उनकी सूनी गोद तो भर दी लेकिन, बच्चे के जन्म के साथ ही एक आकाशवाणी हुई कि, 12 साल की आयु में इस बालक की मृत्यु हो जाएगी। ऐसा सुनकर दोनों दुखी तो हुए लेकिन उन्होंने अपने बालक का नाम अमर रखा।

जैसे ही अमर थोड़ा बड़ा हुआ उसके माता-पिता ने शिक्षा के लिए उसे काशी भेजने का निर्णय कर लिया। अमर अपने मामा के साथ काशी के लिए निकल गए। इस दौरान रास्ते में उन्हें जहाँ-जहाँ भी विश्राम किया वहां से निकलने से पूर्व उन्होंने ब्राह्मणों को दान आदि दिया।

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आगे चलकर वो एक नगर में पहुंचे जहाँ एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था। हालाँकि राजकुमारी का दूल्हा अँधा था और दुल्हे के परिवार ने इस बात को राजा से छुपाया था। ऐसे में उन्होंने अमर से झूठमूठ का दूल्हा बनने का आग्रह किया तो अमर ने भी उनकी बात मान ली। हालाँकि राजकुमारी को धोखे में रखना अमर को सही नहीं लगा इसलिए उन्होंने अपनी सारी सच्चाई राजकुमारी की चुनरी पर लिख दी।

जब राजकुमारी को सच का पता लगा तो उन्होंने अमर को ही अपना पति स्वीकार कर लिया। इसके बाद अमर अपने मामा के साथ काशी की ओर पुनः चल दिए। ऐसे ही समय बीतता गया। लेकिन जैसे ही अमर ठीक 12 साल का हुआ, तब एक दिन जिस समय वह शिव मंदिर में भोले बाबा को बेल पत्तियाँ चढ़ा रहा था, उसी समय वहाँ यमराज उसके प्राण लेने आ गए। 

हालाँकि, इससे पहले कि यमराज अमर को अपने साथ ले जाते भगवान शिव ने अमर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दीर्घायु का वरदान दे दिया था। परिणाम स्वरूप यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा। बाद में अमर काशी से शिक्षा प्राप्त करके अपनी पत्नी (राजकुमारी) के साथ घर लौटा। 

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