संतान सप्तमी व्रत आज: जानें पूजा विधि और इस दिन का महत्व !

हिन्दू धर्म में संतान सप्तमी का व्रत विशेष रूप से भादो माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। 5 सितंबर बृहस्पति वार के दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के उद्देश्य से इस व्रत को रखेंगी। इस व्रत को विधि पूर्वक रखने से ना केवल संतान की प्राप्ति होती है बल्कि संतान के दीर्घयु जीवन और और उनकी उन्नति के लिए भी रखा जाता है। आज हम आपको संतान सप्तमी के महत्व और पूजा विधि के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है इस दिन व्रत रखना।

संतान सप्तमी व्रत का महत्व 

हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संतान सप्तमी का व्रत विशेष रूप से शिव जी और माता पार्वती को समर्पित माना जाता है। इस व्रत के बारे में महाभारत काल में श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से चर्चा की थी। उन्होनें बताया जा था की एक बार लोमेश नाम के मशहूर ऋषि मथुरा आये थे और उन्होनें देवकी और वासुदेव को अपने मृत संतानों के गम से उभरने के लिए संतान सप्तमी का व्रत रखने की राय दी थी। उनकी बात मानकर दोनों ने संतान सप्तमी का व्रत रखा और अपने मृत संतानों के शोक से खुद को उभारने का भरसक प्रयास किया। इसलिए इस दिन व्रत रखना विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। 

इस प्रकार से रखें संतान सप्तमी का व्रत 

बता दें कि इस व्रत को करने वाली महिला को संतान सप्तमी के दिन विशेष रूप से सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होकर साफ़ सुथरे वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद विधि पूर्वक भगवान् शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें और उनसे अपने संतान की रक्षा की कामना करें। शिव पार्वती पूजन के बाद व्रत की शुरुआत करें, इस दिन किया जाने वाला व्रत पूरी तरह से निराधार रखा जाता है। इसके बाद दोपहर के समय पुनः धूप  दीप, अक्षत, सुपारी, नारियल और नैवेध के साथ शिव जी और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें। इस दिन प्रसाद के रूप में विशेष रूप से खीर-पूरी, गुड़ और मालपुएं चढ़ाना आवश्यक माना जाता है। इस पूजा के बाद शिव जी को रक्षा धागा चढ़ाया जाता है जिसे निःसंतान स्त्री बाद में स्वयं बांधती हैं और जिनकी संतान है वो अपने संतानों को उनकी रक्षा के लिए बांधती हैं। 

संतान सप्तमी व्रत पौराणिक कथा

माना जाता है कि प्राचीन काल में दो पक्की सहेलियां हुआ करती थीं एक का नाम चंद्रमुखी और दूसरी का नाम रूपवती था। दोनों काफी समय से संतान प्राप्ति के लिए प्रयास कर रही थीं लेकिन उनकी कामना पूर्ण नहीं हो पा रही थी। एक दिन दोनों एक तालाब में नहाने पहुंची वहां उन्होनें कुछ महिलाओं को शिव पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा करते देखा। दोनों ने उत्सुकता पूर्वकं उनसे पूछा की आखिर वो क्या रही हैं। उन महिलाओं ने दोनों को जवाब दिया की वो संतान प्राप्ति के लिए शिव पार्वती की पूजा कर रही हैं। चंद्रमुखी और रूपवती ने भी उनसे पूजन की विधि और व्रत रखने के सारे नियम पूछे और अपने-अपने घर वापिस लौट गयी। हालाँकि जब दोनों ने इस व्रत को रखकर पूजा विधि की शुरुआत की तो संपूर्ण पूजा विधि भूल गयी। इसके फलस्वरूप दोनों उस जन्म में निःसंतान रहीं। इसलिए संतान सप्तमी व्रत को विधि पूर्वक करना बेहद आवश्यक माना जाता है।

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