ज्येष्ठ माह की संकष्टी चतुर्थी को बन रहा है साघ्य योग, जानें इसकी विशेषता

हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह त्योहार भगवान गणेश को समर्पित होता है। जैसा कि आप जानते हैं कि भगवान गणेश सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले पूजे जाते हैं और साथ ही किसी भी शुभ या मंगल कार्य की शुरुआत करने से पहले इनकी पूजा होती है।

माना जाता है कि गणेश जी की भक्ति करने से जीवन में उपस्थित सभी परेशानियां व विघ्न समाप्त हो जाते हैं और बल, बुध्दि और विवेक का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही कारण है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन लोग व्रत करते हैं तथा सच्ची निष्ठा से भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं।

संकष्टी चतुर्थी का अर्थ

संकष्टी चतुर्थी का शाब्दिक अर्थ है कि संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है ‘मुश्किल समय से मुक्ति पाना’।

इसी वजह से इस दिन लोग अपने दुःखों से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की विधिवत पूजा-आराधना करते हैं। वहीं पुराणों में भी चतुर्थी के दिन गणेश जी पूजा करना बहुत फलदायी माना गया है। इस दिन सूर्योदय के समय से लेकर सूर्यास्त के समय तक व्रत किया जाता है।  

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संकष्टी चतुर्थी की तिथि व समय

संकष्टी चतुर्थी हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के चौथे दिन मनाई जाती है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक, माघ महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी बहुत ही शुभ होती है। आपको बता दें कि संकष्टी चतुर्थी को संकट हारा, सकट चौथ आदि नामों से भी जाना जाता है। यदि किसी महीने में यह तिथि मंगलवार को पड़ती है तो इसे अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है। वैसे अंगारकी चतुर्थी 6 महीने में एक बार ही आती है और इसे दक्षिण भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

चलिए अब आपको बताते हैं कि हिंदी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि कब पड़ रही है और इसकी क्या विशेषताएं हैं।

दिनांक: 19 मई, 2022

दिन: गुरुवार

हिंदी महीना: ज्येष्ठ

तिथि: चतुर्थी

पक्ष: कृष्ण पक्ष

चतुर्थी तिथि आरंभ: 18 मई, 2022 की रात 11 बजकर 38 मिनट से

चतुर्थी तिथि समाप्त: 19 मई, 2022 की शाम 08 बजकर 25 मिनट तक

आपको बता दें कि भले ही यह तिथि 18 मई, 2022 की रात से शुरू होगी, लेकिन चूंकि यह पर्व सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के समय तक मनाया जाता है, इसलिए संकष्टी चतुर्थी 19 मई, 2022 को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक मनाई जाएगी।

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संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि

  • इस दिन सूर्योदय से पहले सोकर उठें।
  • जो लोग इस दिन व्रत करते हैं, वे सुबह उठकर सबसे पहले पवित्र स्नान करें, फिर साफ़-स्वच्छ कपड़े पहनें। बता दें कि इस दिन लाल रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है और कहा जाता है कि ऐसा करने से व्रत सफल होता है।
  • स्नान आदि करने के बाद भगवान गणेश का पूजन शुरू करें। ध्यान रहे कि पूजा के समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
  • पूजा के लिए सबसे पहले आप भगवान गणेश की प्रतिमा को फूलों से अच्छी तरह सजाएं।
  • फिर पूजन सामग्री जैसे कि तिल, गुड़, फूल, धूप, चंदन, तांबे के कलश में शुद्ध जल और प्रसाद के रूप में केले या नारियल रखें।
  • पूजा के समय माँ दुर्गा की प्रतिमा या फोटो अवश्य रखें क्योंकि ऐसा करना बहुत शुभ माना जाता है।
  • इसके बाद भगवान को रोली लगाएं, फिर फूल तथा जल अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।
  • फिर भगवान के सामने धूप या दीपक जलाकर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें।

गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।

  • पूजा समाप्त करने के बाद आप मूंगफली, खीर, दूध या साबूदाना खा सकते हैं। इन चीज़ों के अलावा किसी अन्य चीज़ का सेवन न करें। बहुत से लोग व्रत वाले दिन सेंधा नमक का सेवन करते हैं, लेकिन आपको सुझाव दिया जाता है कि सेंधा नमक का प्रयोग न करें।
  • फिर शाम के समय चाँद निकले से पहले भगवान गणेश की पूजा करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें।
  • पूजा ख़त्म करने के बाद प्रसाद वितरण करें।
  • फिर रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद अपना व्रत खोलें।

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संकष्टी चतुर्थी का महत्व

मान्यताओं के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा-आराधना करने से घर की नकारात्मकता ख़त्म होती है और सुख-शांति का आगमन होता है। कहा जाता है कि गणपति बप्पा घर में आ रही सभी समस्याओं को दूर करते हैं और हमारी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। आपको बता दें कि पूरे साल में संकष्टी चतुर्थी के कुल 13 व्रत किए जाते हैं।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

वैसे तो संकष्टी चतुर्थी मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं लेकिन उनमें से जो सबसे प्रचलित कथा है, वह हम आपको बताने जा रहे हैं।

एक बार की बात है जब भगवान शिव और माता पार्वती नदी के किनारे बैठे हुए थे, तभी अचानक से माता पार्वती का चौपड़ खेलने का मन हुआ और उन्होंने अपनी इच्छा ज़ाहिर की। लेकिन उस समय वहां केवल वे दोनों ही थे, उनके अलावा कोई तीसरा व्यक्ति नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका अदा कर सके। फिर भगवान शिव और माता पार्वती ने इस समस्या का समाधान निकालते हुए, मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाली। उसके बाद दोनों ने मिलकर मिट्टी से बने बालक को आदेश दिया कि वह खेल को अच्छी तरह से देखे और फैसला करे कि कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है। फिर दोनों ने खेल की शुरुआत की, जिसमें माता पार्वती बार-बार जीत रही थीं।

एक बार ग़लती से उस बालक ने माता पार्वती के ख़िलाफ़ फ़ैसला दे दिया, जिस पर माता बहुत गुस्सा हुईं और उसे श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया। फिर बालक ने माता पार्वती ने अपनी ग़लती के लिए बहुत क्षमा-याचना की। उसे बार-बार माफ़ी मांगता देख माता पार्वती ने कहा कि देखो अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता, लेकिन इसका एक उपाय ज़रूर है, जिससे तुम मुक्ति पा सकते हो। उपाय में माता ने बताया कि संकष्टी के दिन यहां कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत करने की विधि पूछना और सच्चे मन से व्रत करना।।

बालक ने उनके बताए उपाय के अनुसार व्रत करने की विधि पूछी और बड़ी ही श्रद्धा और सच्ची निष्ठा के साथ संकष्टी का व्रत किया। इस पर भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी, तो उसने बताया कि वह भगवान शिव और माता पार्वती के पास जाना चाहता है। गणपति जी ने उस बालक की इच्छा को पूरा करते हुए उसे शिवलोक पहुंचा दिया। जब वह शिवलोक पहुंचा तो वहां उसने देखा कि केवल भगवान शिव मौजूद हैं। दरअसल उस समय माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर चली गई थीं। उस बालक को वहां देख शिव जी ने उससे पूछा कि तुम यहां कैसे आए तो इस पर जवाब देते हुए बालक ने बताया कि गणेश जी की पूजा करने से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी माता पार्वती को मनाने के लिए संकष्टी का व्रत किया और माता वापस कैलाश लौट आईं।

इसीलिए ऐसा माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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संकष्टी चतुर्थी के दिन बन रहा है साघ्य योग

आपको बता दें कि 18 मई, 2022 की शाम 06 बजकर 43 मिनट से 19 मई, 2022 की दोपहर 02 बजकर 57 मिनट तक बन रहा है साघ्य योग

यदि आप किसी से कोई विद्या सीखना चाहते हैं या कोई विधि सीखने की इच्छा रखते हैं तो इन मामलों में यह योग बहुत ही उत्तम माना जाता है। कहा जाता है कि साघ्य योग के दौरान कोई भी चीज़ सीखने और करने में बहुत मन लगता है और अंततः उसमें सफलता हासिल होती है।

संकष्टी चतुर्थी के दिन धनु राशि में हो रहा है चंद्रमा का गोचर

ज्योतिष के अनुसार, धनु राशि में चंद्र के प्रभाव के कारण जातकों के चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती है। उनका मन थोड़ा चंचल हो जाता है और इसी वजह से वे अक्सर चीज़ों को भूल जाते हैं और कई बार वे ग़ैर-ज़िम्मेदार भी हो जाते हैं। बाहर घूमना-फिरना भी बहुत अच्छा नहीं लगता है। हालांकि वे किसी भी चीज़ को करने का पूरा प्रयास करते हैं, लेकिन चंचलता के कारण वे असफल हो जाते हैं।

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