संकटों का नाश करने के लिए ज़रूर करें संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानें संपूर्ण व्रत कथा !

किसी भी शुभ काम को शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में गणपति प्रथम पूज्य माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि, यदि कोई व्यक्ति संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणपति की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करे, तो उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। इस बार 16 नवंबर, शनिवार को संकष्टी चतुर्थी है। तो चलिए आज इस लेख में आपको बताते हैं, कि आखिर क्यों संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। संकष्टी चतुर्थी मनाने के पीछे अनेकों पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन उनमें जो सबसे ज्यादा प्रचलित है, आज हम आपको वह कथा बताने जा रहे हैं।

क्या है संकष्टी चतुर्थी?

संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है, संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी एक संस्कृत भाषा से लिया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’। इस दिन व्यक्ति अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान गणेश की अराधना करता है। पुराणों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय के समय से लेकर चंद्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखकर गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है। 

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा 

एक बार कि बात है माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे। तभी माता पार्वती को अचानक चौपड़ खेलने का मन हुआ। लेकिन समस्या यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो उस खेल में निर्णायक की भूमिका निभा सके। समस्या का हल निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी। मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह कहा कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखो और यह फैसला लेना कि आखिर में कौन जीता और कौन हारा। खेल शुरू हुआ, माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे रही थीं।

यह खेल चलते रहा, लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को पराजित घोषित कर दिया। बालक की इस भूल से माता पार्वती को बहुत गुस्सा आ गया और उन्होंने बालक को श्राप दे दिया। श्राप के कारण बालक लंगड़ा हो गया। उसने अपनी भूल के लिए माता पार्वती से बहुत क्षमा मांगे। बालक के अनुरोध को देखते हुए माता पार्वती ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता है,  लेकिन मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बताउंगी, जिससे तुम श्राप से मुक्ति पा सकोगे। माता ने बालक को संकष्टी वाले दिन सच्चे मन से व्रत करने को कहा।

बालक ने पूरे विधि-विधान से उस व्रत को किया। उसकी सच्ची आराधना से गणपति प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी। बालक ने गणेश से कहा कि उसे माता पार्वती और भगवान शिव के पास भेज दिया जाए। गणेश ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया, लेकिन जब बालक शिवलोक पंहुचा, तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले। शिव ने बताया कि माता पार्वती उनसे नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर चली गई हैं। बालक ने भगवान शिव को संकष्टी व्रत करने की सलाह दी।  भगवान शिव ने सच्चे मन से संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया, जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश लौट आईं। इस कथा के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है।

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