आने वाली 31 तारीख यानी कि 31 मार्च को संकष्टी चतुर्थी है। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। यह पर्व हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार महीने में दो बार पड़ता है। हिन्दू महीने के दोनों पक्ष (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) के चौथे दिन संकष्टी चतुर्थी मनाया जाता है। माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
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चूँकि बात भगवान गणेश की हुई है तो आज हम आपको भगवान गणेश से जुड़ी एक बेहद ही रोचक जानकारी देने वाले हैं। हम सब जानते हैं कि भगवान गणेश के धड़ पर गज यानी कि हाथी का मस्तक लगा है लेकिन वो हमेशा से ऐसे नहीं दिखते थे। जाहिर है कि ऐसे में आपके मन में यह सवाल तो जरूर आता होगा कि भगवान गणेश का असली मस्तक कहां गया। बस उसी का जवाब देने के लिए हमने यह लेख लिखा है।
कहाँ है भगवान गणेश का असली मस्तक?
भगवान गणेश के धड़ पर गज का मस्तक कैसे जुड़ा इस के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं और उन्हीं कथाओं में इस सवाल का जवाब भी है। पहली कथा भगवान शनि देव से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि जब भगवान गणेश का जन्म हुआ था तब उन्हें आशीर्वाद देने सभी देवता आये। इन देवताओं में शनिदेव भी उपस्थित थे लेकिन वे नवजात भगवान गणेश की तरफ देख नहीं रहे थे। वजह? वजह यही कि भगवान शनि की दृष्टि जहाँ भी जाती है वहां कुछ न कुछ अनिष्ट होता ही होता है और भगवान शनिदेव गणेश जी का कोई अनिष्ट नहीं करना चाहते थे। लेकिन, माता पार्वती के आग्रह करने पर उन्हें भगवान गणेश को देखना पड़ा जिसकी वजह से भगवान गणेश का मस्तक उनके धड़ से अलग होकर ‘चंद्रमंडल’ में चला गया। जिसके बाद भगवान शंकर ने गणेश जी के धड़ पर गज का मस्तक स्थापित किया।
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हालांकि इस घटना से जुड़ी एक और कथा है और वह कथा ज्यादा प्रचलित भी है। इस कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान गणेश को अपने शरीर से उतारे गए हल्दी के उबटन से बनाया था। फिर माता ने उनसे द्वार की रक्षा करने के लिए कहा और आदेश दिए कि जब तक माता पार्वती स्नान कर रही हैं तब तक किसी को भी वे महल के अंदर प्रवेश न करने दें। लेकिन जब भगवान गणेश ने भगवान शंकर को भी महल के अंदर प्रवेश करने से रोक दिया तो गणेश जी और शंकर जी के बीच युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में ही भगवान शंकर ने गणेश जी का मस्तक उनके धड़ से अलग कर दिया। हालांकि बाद में माता पार्वती के आग्रह पर उन्होंने भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का मस्तक लगा दिया। कहते हैं कि इस घटना के बाद से भगवान गणेश का असल मुख ‘चंद्रमंडल’ में स्थित है।
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