नवरात्रि में क्यों करते है संधि पूजा, जानें इसका महत्व और विधि !

दुर्गा पूजा या नवरात्रि हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। नवरात्रि साल में 4 बार आती है, जिनमें से 2 प्रकट नवरात्रि होती है और 2 गुप्त नवरात्रि। सभी नवरात्रि में शारदीय नवरात्रि का अपना अलग महत्व होता है। इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 29 सितंबर, 2019 से हो चुकी है। इस त्यौहार की रौनक पूरे देश में देखने को मिलती है। नवरात्रि के 9 दिनों में लोग अलग-अलग तरीके से माँ दुर्गा को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। इस त्यौहार में पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। फिर अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं और कुंवारी कन्याओं को भोजन कराने के बाद व्रत रखने वाले लोग अपना उपवास खोलते हैं।

नवरात्रि में संधि पूजा का भी अपना अलग महत्व है। माना जाता है कि मां दुर्गा संधि पूजा के समय साक्षात प्रकट होती हैं, और भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करती हैं। इस साल यानि 2019 में संधि पूजा 6 अक्टूबर, रविवार को प्रातः 10:30 से शुरू हो कर प्रातः 11:18 तक की जाएगी। यानि 48 मिनट की इस अवधि में भगतगण संधि पूजन कर सकते हैं। यदि आपको संधि पूजा के विषय में ज़्यादा जानकरी नहीं है तो चलिए आपको इस लेख में बताते हैं कि संधि पूजा आखिर है क्या और इसकी शुरुआत कब हुई थी। 

क्या है संधि पूजा? 

दुर्गा पूजा में संधि पूजा का सबसे ज़्यादा महत्व होता है। संधि पूजा महाष्टमी के दिन की जाती है। संधि पूजा का मतलब है दो चीजों का मिलन। अष्टमी के दिन के आखिरी 24 मिनट और नवमी के दिन की शुरुआत के 24 मिनट यानि 48 मिनट के इस कुल योग को संधि क्षण कहते हैं। इस अवधि में संधि पूजा का महत्व बताया गया है। ऐसा माना गया है कि यह वही समय होता है, जब मां दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था। इसीलिए हर साल संधि पूजा अष्टमी और नवमी के संधि काल में की जाती है। पंचांग के अनुसार संधि पूजा का समय हर साल बदलता रहता है, यानि इसका कोई निश्चित समय नहीं होता। कभी यह सुबह आठ बजे पड़ता है, तो कभी दोपहर के तीन बजे। कहने का अर्थ है कि चैबिस घंटे में संधि काल कभी भी पड़ सकता है, लेकिन यह पूजा हमेशा अष्टमी और नवमी के मिलन पर ही की जाती है 

ऐसे करते हैं संधि पूजन 

संधि पूजा में मुख्य रूप से मां दुर्गा के चामुंडा रूप की पूजा की जाती है। संधि पूजा के अवसर पर पूजा पंडालों में भव्य आयोजन होता है, और विशेष रूप से माँ दुर्गा के लिए 108 दिये जलाये जाते हैं, जिसे ऊं के स्वरूप में रखा जाता है। इसमें 108 कमल के फूलों से मां की पूजा करते हैं। इसके अलावा पूजा में एक लाल साबुत फल, लाल गुड़हल का फूल, साड़ी, कच्चे चावल के दाने और बेल के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। संधि पूजा के दौरान मां दुर्गा को दो मालाएं पहनाते हैं, एक 108 बेल के पत्तों की और दूसरी 108 लाल गुड़हल के फूलों की। संधि पूजा के दौरान एक और चीज अनिवार्य होती है और वो है ढ़ाक। वैसे तो दुर्गा पूजा के दौरान मां की प्रतिमा चामुंडा रूप में नहीं होती, लेकिन माँ के दुर्गा रूप की प्रतिमा से ही चामुंडा जैसा तेज निकलता है। मां का यह रूप देखने लायक होता है। 

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