सफला एकादशी व्रत कथा-शुभ मुहूर्त और सही पूजन विधि की संपूर्ण जानकारी

हिंदू धर्म में कई व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं इन्हीं में से एक है सफला एकादशी का व्रत। इस वर्ष सफला एकादशी व्रत 9 जनवरी को मनाया जाएगा। यूं तो सभी एकादशी को हिंदू धर्म में बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। हालांकि उन सब में सफला एकादशी का विशेष महत्व बताया जाता है। इस व्रत के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि, इस दिन का व्रत करने से जातक को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

इसके अलावा सफला एकादशी व्रत के पीछे यह भी मान्यता बताई जाती है कि, इस व्रत को करने से इंसान के सभी कष्ट और दुखों का अंत होता है। अब जानते हैं इस वर्ष सफला एकादशी व्रत का मुहूर्त महत्व और पूजन विधि क्या है। 

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सफला एकादशी मुहूर्त 

9 जनवरी, 2021-शनिवार 

सफला एकादशी पारणा मुहूर्त :07 बज-कर 15 मिनट 18 सेकंड से 09 बज-कर 20 मिनट 38 सेकंड तक 10, जनवरी को

अवधि :2 घंटे 5 मिनट

सफला एकादशी पूजन विधि 

सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा किए जाने का विधान बताया गया है। 

  • व्रत रखने वाले जातकों को इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। 
  • इसके बाद व्रत रखने वाले लोग सुबह और शाम के समय भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करें। 
  • इस दिन के व्रत में केवल सात्विक भोजन ही खाना चाहिए। 
  • सफला एकादशी के व्रत में नमक का सेवन वर्जित माना गया है। 
  • भगवान विष्णु को दीपक, नारियल, पान, सुपारी, लॉन्ग आदि का प्रयोग करते हुए भगवान की विधि विधान से पूजा अर्चना करें। 
  • इस दिन की पूजा में एकादशी की कथा अवश्य पढ़ें और अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती कर उन्हें भोग लगाएं और प्रसाद को सभी लोगों में वितरित करें। 

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सफला एकादशी पर ये कार्य न करें

●  एकादशी के दिन बिस्तर पर नहीं, जमीन पर सोना चाहिए।

●  मांस, नशीली वस्तु, लहसुन और प्याज़ का सेवन का सेवन न करें।

●  सफला एकादशी की सुबह दातुन करना भी वर्जित माना गया है।

●  इस दिन किसी पेड़ या पौधे की की फूल-पत्ती तोड़ना भी अशुभ माना जाता है।

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सफला एकादशी व्रत कथा 

प्राचीन समय में चंपावती नगर में महिष्मान नाम का एक राजा हुआ करता था। उस राजा के 4 पुत्र थे। इनमें से सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक अधर्मी, महा पापी और दुष्ट था। वह हमेशा अपने पिता के पैसों को वेश्याओं के ऊपर खर्च कर देता था। लुम्पक देवता, ब्राह्मण, वैश्य, वैष्णव, और राजा के अन्य पुत्रों की निंदा करता था और इससे उसको बेहद ही प्रसन्नता हासिल होती थी। प्रजा भी लुम्पक के कर्मों से दुखी रहने लगी थी। हालांकि वह यहां के युवराज थे इसकी वजह से कोई उन्हें कुछ भी नहीं कह पाता था और लोग चुपचाप उसके अत्याचारों को सहन करते थे। एक दिन राजा महिष्मान को लुम्पक के कुकर्मों का पता चल गया जिससे राजा बेहद ही क्रोधित हुए और लुम्पक को अपने राज्य से निकाल दिया। 

जब राजा ने अपने बेटे को त्याग दिया तो उसे अन्य सभी लोगों ने भी त्यागने का फैसला कर लिया। अब लुम्पक को विचार आया कि, ऐसे में मैं कहां जाऊँ या क्या करूँ या किस से मदद मांगूं? अंतिम में कोई आसरा नहीं मिलने के बाद उसने रात में अपने ही पिता के राज्य में चोरी करने की ठानी। अब लुम्पक दिन में राज्य से बाहर रहता था और रात में आकर अपने पिता की नगरी में चोरी करता और नगर वासियों को मारता और कष्ट देने लगा। वन में पशु पक्षियों को भी मार कर उनका भक्षण किया करता था। अगर कभी चोरी करते हुए उसे पकड़ भी लिया जाता था तो लोग राजा के डर से उसे छोड़ देते थे। 

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जिस वन में लुम्पक रहता था वह वन भगवान को बेहद ही प्रिय था। इस वन में एक प्राचीन पीपल का वृक्ष हुआ करता था। इस वन को सभी देवताओं का क्रीडा स्थल मानते थे। राज्य से निकाले जाने के बाद लुम्पक वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे रहने लगा था। कुछ दिन बाद पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वस्त्र हीन होने के कारण लुम्पक तेज ठंड से मूर्छित हो गया। ठंड के कारण वो ना सो पा रहा था और ना ही कुछ उसके हाथ पैर खुल रहे थे। जैसे-तैसे रात बेहद ही कठिनता से कटी लेकिन सूर्य उदय होने के बाद भी वह अपनी मूर्छित अवस्था से बाहर नहीं आ पा रहा था। 

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अगला दिन सफला एकादशी सफला एकादशी की दोपहर तक यूं ही वो मूर्छित अवस्था में पड़ा रहा। धीरे-धीरे जब सूर्य उदय हुआ उससे उसे कुछ गर्मी मिली तब उसे थोड़ा होश आया। होश आने पर जब उसे भूख लगी वह भोजन की तलाश में निकल के शिकार करने में असमर्थ था। थोड़ी दूर चलकर उसे ज़मीन पर गिरे फल इत्यादि मिले लेकिन उससे फल नहीं खाया जा रहा था क्योंकि वह रोज जीवों को मार कर खाता था। ऐसे में फल उसके गले से नीचे नहीं उतर पा रहे थे। 

तब फलों को उसने पीपल की जड़ के पास रख दिया और बेहद ही दुखी होकर बोला, “हे प्रभु! यह फल आपको ही समर्पित है। इन फलों से आप खा लीजिये। ऐसा कह कर वो कर रोने लगा और उसे नींद नहीं आई। वह सारी रात रोता रहा। इस तरह से अनजाने में ही एकादशी के दिन भगवान को फल आदि चढ़ाने, रात भर ना जा सोने, इत्यादि से उसका एकादशी का उपवास पूरा हो गया। रात्रि में जागने से भगवान विष्णु उससे बेहद प्रसन्न हुए और उसके सभी पाप को तुरंत नष्ट कर दिया। 

अगले दिन सुबह एक दिव्य रथ उसके सामने आया और आकाशवाणी हुई कि, “हे युवराज! भगवान नारायण के प्रभाव से तेरे सभी पाप नष्ट हो गए हैं। अब तुम वापस अपने पिता के राज्य में जा और सुख सुविधाओं का भोग कर।” राज्य में पहुँचकर लुम्पक ने सारी बात अपने पिता से कह सुनाई। इसके बाद राजा ने सारा राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और खुद वन में चले गए। अब लुम्पक शास्त्र अनुसार कार्य करने लगा और विष्णु भगवान का परम भक्त बन गया। अपने वृद्ध अवस्था में उसने अपने पुत्र को राज्य सौंप दिया और भगवान विष्णु का भजन इत्यादि करने के लिए वन में चला गया। 

ऐसे में कहा जाता है कि, जो कोई भी मनुष्य श्रद्धा और भक्ति से सफला एकादशी का उपवास करते हैं उनके सभी पाप अवश्य नष्ट होते हैं और अंत में उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। सफला एकादशी के महात्म्य को पढ़ने, सुनने, अथवा श्रवण करने से प्राणी को राजसूय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है।

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