जैन समुदाय का एक प्रमुख व्रत होता है रोहिणी व्रत। इस महीने में पड़ने वाला रोहिणी व्रत 10 सितंबर, गुरुवार को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुल 27 नक्षत्र होते हैं। इन्हीं में से एक नक्षत्र होता है रोहिणी नक्षत्र। रोहिणी व्रत हर महीने में आता है।
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आगे आने वाले महीनों में रोहिणी व्रत की सम्पूर्ण सूची हम आपको नीचे दे रहे हैं।
10 सितंबर 2020 | रोेहिणी नक्षत्र प्रारंभ – सुबह 11 बजकर 17 मिनट से (9 सितंबर 2020) | रोहिणी नक्षत्र समाप्त – दोपहर 1 बजकर 39 मिनट तक (10 सितंबर 2020) तक होगा |
7 अक्टूबर 2020 | रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ – सुबह 5 बजकर 55 मिनट से (6 अक्टूबर 2020) | रोहिणी नक्षत्र समाप्त – 8 बजकर 36 मिनट तक (7 अक्टूबर 2020) तक होगा |
3 नवंबर 2020 | रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ – रात 11 बजकर 51 मिनट से (2 नवंबर 2020) | रोहिणी नक्षत्र समाप्त – रात 2 बजकर 30 तक (4 नवंबर 2020) तक होगा |
30 नवबंर 2020: | रोहिणी नक्षत्र पूर्ण रात्रि तक होगा | |
28 दिसंबर 2020 | रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ – दोपहर 1 बजकर 20 मिनट से (27 दिसंबर 2020) | रोहिणी नक्षत्र समाप्त – दोपहर 3 बजकर 40 मिनट तक (28 दिसंबर 2020) तक होगा |
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रोहिणी व्रत का महत्व
रोहिणी व्रत पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं। इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इंसान इस व्रत को रखता है माँ रोहिणी उस साधक के घर से कंगाली, गरीबी, और दुःख को दूर भगाकर उनके घर में सुख और समृद्धि की वर्षा करती हैं।
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रोहिणी व्रत की पूजा के दौरान लोग माँ रोहिणी से प्रार्थना करते हैं कि, हमसे हुई गलतियाँ माता रानी आप माफ करें और हमारे जीवन के सभी कष्टों को दूर करें। यह व्रत बिना भोजन खाए रखा जाता है। यानि कि इस व्रत में लोग अन्न नहीं खाते हैं। जैन लोगों के बीच इस व्रत की काफी मान्यता है। कहा जाता है जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र अपनी प्रबल स्थिति में होता है उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है। यह व्रत हर 27 दिन के बाद आता है। यानी कि 1 साल में यह व्रत कुल 12 से 13 बार किया जाता है।
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1 वर्ष में कुल 12 या 13 बार आने वाले इस रोहिणी व्रत में भगवान वासुपूज्य की पूजा किए जाने का विधान है। इस व्रत को रखने वालों को इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि यह व्रत कम से कम तीन, पांच, या सात वर्षों तक लगातार किया जाना चाहिए।
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रोहिणी व्रत कथा
हस्तिनापुर नगर में वस्तुपाल नाम का एक राजा रहता था। राजा का एक मित्र था जिनका नाम धन मित्र था। धन मित्र के घर एक बेटी पैदा हुए लेकिन इस बेटी के अंदर से हमेशा दुर्गंध आती थी। एक बार अमृत सेन मुनिराज राज्य में भ्रमण करने निकले।
तब धन मित्र ने अपनी पुत्री की दुर्गंध की बात मुनिराज से बताई। तब मुनिराज ने उनसे कहा कि राजा भूपाल गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राज्य करते हैं। उनकी एक रानी है इंदुमती। एक दिन रात जब राजा रानी वन में भ्रमण कर रहे थे तब वहां राजा ने मुनिराज को देखा और रानी से मुनिराज के भोजन की व्यवस्था करने के लिए कहा। रानी राजा की आज्ञा तो मान गई है लेकिन क्रोध में आकर उन्होंने मुनिराज को कड़वी तुंबीका भोजन में दे दी। इससे मुनिराज को काफी वेदना का सामना करना पड़ा और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
जब राजा को इस बात की खबर लगी तो उन्होंने गुस्से में आकर रानी को नगर से निकाल दिया। ऐसा पाप करने की वजह से रानी के पूरे शरीर में कोढ़ हो गया। काफी कष्ट और दुख झेलने के बाद रानी की भी मृत्यु हो गई और वह नरक में गई काफी दुख भोगने के बाद वह पशु योनि में जन्मी, और फिर आपके घर में दुर्गंध कन्या के रूप में पैदा हुईं। यह सारी बात सुनने के बाद धन मित्र ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे मेरी बेटी का ये श्राप दूर हो सके।
तब मुनिराज ने उनसे कहा आप रोहिणी व्रत का पालन करें। प्रत्येक माह में मनाई जाने वाली रोहिणी नक्षत्र में व्रत और पूजन करें। उस दिन आहार त्याग कर और पूजा में समय बताएं। दान पुण्य करें। इस तरह से 5 वर्ष और 5 माह तक करते रहें। मुनिराज के कहे अनुसार धन मित्र की पुत्री ने ऐसा ही किया और मृत्यु के बाद स्वर्ग में देवी का रूप मिला।
रोहिणी व्रत का उद्यापन
रोहिणी व्रत एक निश्चित समय के लिए किया जाता है। यह व्रत किस को कितने समय के लिए करना है यह स्वयं साधक निर्धारित करते हैं। मानी गई अवधि तक इस व्रत को किया जाता है उसके बाद उसका उद्यापन कर दिया जाता है। इस व्रत को पूरा करने के लिए सबसे श्रेष्ठ समय 5 वर्ष 5 माह का बताया गया है। उद्यापन के लिए गरीबों को खाना खिलाया जाता है और वासुपूज्य भगवान की पूजा की जाती है।
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