स्त्रियों के लिए बेहद खास ऋषि पंचमी, जानें क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और कथा

प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी व्रत के अगले दिन और हरतालिका तीज व्रत के ठीक दूसरे दिन यानि कि भाद्र पद की शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाता है। यह व्रत महिलाओं के लिए बेहद ख़ास माना गया है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कहा गया है कि इस दिन व्रत रखने वाली सुहागिन महिलाओं को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।

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इसके अलावा इस व्रत के बारे में यह भी मान्यता है कि यह उत्तम फलदायी व्रत अनजाने में भी की गयी गलतियों से मुक्ति दिलाने के लिए उत्तम माना गया है। भारत में कई जगहों पर ऋषि पंचमी को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में सप्त ऋषियों की पूजा का विधान बताया गया है। इस साल यह व्रत 23 अगस्त 2020, दिन रविवार को मनाया जा रहा है।

क्या है ऋषि पंचमी का शुभ मुहूर्त 

ऋषि पंचमी के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त  

पंचमी तिथि शुरू : 19 बज कर 55 मिनट 22 अगस्त 2020
पंचमी तिथि ख़त्म : 17बज कर 05 मिनट 23 अगस्त 2020

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इस दौरान आप ऋषि पंचमी की विधिवत पूजा कर के और कथा को सुनकर अपनी मनोकामना पूरी कर सकते हैं।

ऋषि पंचमी की पूजा के दौरान करें इन मंत्रों का जाप

 कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:। जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।। 

गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।

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ऋषि पंचमी पूजा विधान 

  • इस दिन भी सुबह स्नानादि करने के बाद पूजा करने का नियम निर्धारित किया गया है।
  • इस दिन घर की साफ़-सफाई के बाद सात ऋषियों के साथ देवी अरुंधती की स्थापना करनी चाहिए। 
  • हो सके तो इस दिन की पूजा में हलके पीले रंग के वस्त्र पहनें।
  • पूजा शुरू करने से पहले पूरे घर में गंगाजल छिड़कर अगरबत्ती या धूप बत्ती जलाएं।
  • सप्त ऋषियों की तस्वीर के सामने जल से भरा हुआ एक कलश रख दें। 
  • सप्‍त ऋषि को धूप-दीपक इत्यादि दिखाकर उन्हें पीले फल-फूल और मिठाई अर्पित करें।

इसके बाद सप्त ऋषियों से अपनी किसी भी गलती की माफ़ी मांग लें और दूसरों की मदद करने का संकल्प लें। इस पूजा में कथा कहना या सुनना अनिवार्य है। इसके बाद आरती करें और सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें। पूजा करने के बाद अपने घर के बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें।

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ऋषि पंचमी व्रत का महत्व

इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह व्रत अगर सच्ची आस्था और निष्ठा के साथ किया जाये तो इंसान के जीवन के सारे दुख अवश्य ही समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा अविवाहित युवतियों के लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना जाता है। इस दिन हल से जोते हुए किसी भी अनाज का सेवन वर्जित माना जाता है। साथ ही इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व भी बताया गया है।

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ऋषि पंचमी व्रत कथा

“प्राचीन समय में विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सर्वगुण संपन्न ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण की पत्नी सुशीला बेहद ही पतिव्रता थी। इस ब्राह्मण दंपति का एक पुत्र और एक पुत्री थी। बेटी का विवाह तो हुआ लेकिन कुछ ही समय में वो विधवा हो गयी। इस बात से दुखी ब्राह्मण दंपत्ति अपनी बेटी के साथ गंगा के तट पर चले गए और वहीं वो एक कुटिया बनाकर रहने लगे।

एक दिन की बात है, जब ब्राह्मण की पुत्री सो रही थी तभी उसका शरीर कीड़ों से भर गया। बेटी की ऐसी हालत देखकर ब्राह्मण की पत्नी हैरान-परेशान होकर अपने पति के पास पहुंची और उनसे पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है? अपनी पुत्री की इस समस्या का हल खोजने के लिए जैसे ही उत्तंक समाधि में बैठे उन्हें पता चला कि पूर्व जन्म में भी वह कन्या उनकी ही पुत्री थी और उसने रजस्वला होते ही बर्तन छू लिए थे।

इसके अलावा उसने इस जन्म में भी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। और इन्ही सब वजहों से सके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं। ऐसे में सभी ने यह निर्णय किया कि पुत्री से ऋषि पंचमी का व्रत कराया जाये जिससे उसे अगले जन्म में अटल सौभाग्यशाली होने का वरदान प्राप्त हो।

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नोट: धर्म-शास्त्रों के अनुसार रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है और वह चौथे दिन स्नान करने के बाद शुद्ध होती है।

अपने पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधि- विधान से ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। कुछ ही समय में इस व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई और अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य का भी वरदान प्राप्त हुआ।

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अगस्त महीने का अगला त्यौहार है , मासिक दुर्गाष्टमी जिसे 26-अगस्त, 2020 बुधवार के दिन मनाया जायेगा। मासिक दुर्गाष्टमी के बारे में अधिक जानने के लिए एस्ट्रोसेज के साथ बने रहे।

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