इन दो श्राप की वजह से डूब गयी कृष्ण नगरी द्वारका, हो गया यदुवंश का अंत !

आने वाले 12 अगस्त को देश भर में कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाएगा। इससे पहले आज हम आपको श्री कृष्ण नगरी द्वारका के बारे में कुछ अहम बातें बताने जा रहे हैं। माना जाता है कि आज से कई हज़ार साल पहले कृष्ण जी की ये नगरी पानी में डूब गयी थी और उनका वंश ख़त्म हो गया था। माना जाता है कि द्वारका के डूबने के पीछे प्रमुख कारण दो श्राप थे जिस वजह से कृष्ण की नगरी डूब गयी थी। आइये जानते हैं कि आखिर कौन से हैं वो दो श्राप जिस वजह से द्वारका नगरी डूब गयी और कृष्ण जी के पूरे वंश का अंत हो गया। 

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भगवान् श्री कृष्ण ने 35 साल तक द्वारका पर राज किया 

पौराणिक हिन्दू कथा के अनुसार आज से कई वर्ष पहले मथुरा में कंस का अंत करने के बाद कृष्ण जी वहां से अपने भाई बलराम और पत्नी रुक्मणि के साथ द्वारका आ गये थे। वहां उन्होनें एक बेहद खूबसूरत नगरी बसाया जिसे कृष्ण नगरी द्वारका के नाम से जाना गया। माना जाता है कि यहाँ कृष्ण जी ने यादव वंश की स्थापना की और करीबन 35 साल यहाँ राज किया। जब तक कृष्ण जी के अधीन द्वारका रही वहां खुशहाली छायी रही, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद द्वारका नगरी का अंत होना शुरू हो गया और एक समय के बाद वो पूरी तरह से पानी में डूब गयी। इसके साथ ही यादव वंश का भी अंत हो गया था। 

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इन दो श्रापों की वजह से डूबी थी द्वारका 

ऐसा माना जाता है कि कृष्ण नगरी द्वारका के डूबने के पीछे मुख्य कारण दो श्राप थे जिस वजह से वो डूब गयी थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद कौरवों की माँ गांधारी ने कृष्ण जी को उनके बेटों के खात्मे का जिम्मेवार माना और उन्हें श्राप दिया की जिस प्रकार से कौरवों का नाश हुआ है उसी प्रकार से एक दिन उनके वंश का भी अंत हो जाएगा। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक बार यदुवंश के कुछ युवकों ने ऋषि दुर्वाशा का अपमान कर दिया, जिसके परिणाम स्वरुप उन्होनें यदुवंश के अंत का श्राप दिया था। प्राचीन तथ्यों के अनुसार कृष्ण जी के स्वधाम (मृत्यु) लेने के बाद ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गयी और साथ ही कृष्ण जी द्वारा बसाया गया यादव वंश भी समाप्त हो गया। 

ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम ने देह त्यागा था और उनके बाद कृष्ण जी ने स्वधाम प्राप्त किया। कृष्ण के मृत्यु से जुड़ी एक कहानी ये भी है की, एक दिन वो पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान की मुद्रा में बैठे थे तभी अचानक वहां एक शिकारी आया और उसने कृष्ण जी का सिर्फ तलवा देख किसी जानवर के बैठे होने का संदेह किया। मूर्ख शिकारी ने बिना देखे समझे कृष्ण जी पर बाण चला दिए और ऐसे उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

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