दशहरा विशेष: इन 6 श्रापों के कारण हुआ था रावण का वध !

अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक कहे जाने वाला पर्व “दशहरा” हिंदू धर्म के सभी महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दशहरा एक बेहद पवित्र और विशुद्ध धार्मिक त्योहार होता है, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। वैसे तो दशहरा को लेकर कई सारी लोक कथाएं और दंत कथाएं प्रचलित हैं,  लेकिन माना जाता है कि भगवान राम ने  सीता माता कि रक्षा के लिए इसी दिन रावण का वध किया था, इसीलिए लोग इस दिन को असत्य पर सत्य के जीत के रूप में मनाते हैं।

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हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र त्यौहार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। इस दौरान नौ दिनों तक देवी के नौ विभिन्न रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि के दसवें दिन को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से कई जगहों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है और रावण जलाया जाता है। बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाये जाने वाले इस त्यौहार पर हर साल रामलीला का आयोजन धूमधाम के साथ किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, दशहरा पर रामलीला के आयोजन की शुरुआत कब और कैसे हुई। आज हम आपको रामलीला की परंपरा के शुरुआत के बारे में बताने जा रहे हैं।

यहाँ से हुई थी रामलीला की शुरुआत 

पौराणिक तथ्यों के आधार पर देखें तो सबसे पहले रामलीला का आयोजन 18 वीं सदी में उत्तर प्रदेश के कानपुर में किया गया था। ऐसी मान्यता है कि, रामायण काल में भगवान श्री राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा यही पकड़ा गया था। इसके बाद से ही कानपुर में विभिन्न जगहों पर रामलीला के मंचन का आयोजन किया जाने लगा। यहाँ आयोजित होने वाले परेड की रामलीला को कई दशक पुराना माना जाता है। यहाँ केवल स्थानीय और हिंदी भाषा में ही नहीं बल्कि पंजाबी भाषा में भी रामलीला का मंचन किया जाता है। यहाँ आयोजित होने वाले रामलीला के इतिहास की बात करें तो सबसे पहले इस परंपरा की शुरुआत वहां के राजा हिन्दू सिंह ने 1774 में की थी। उन्होनें कानपुर के जाजमऊ में सबसे पहले धनुष यज्ञ रामलीला की शुरुआत की थी। इसके बाद से ही कानपुर में इस परंपरा की शुरुआत हुई जो आज पूरे देश में फ़ैल चुकी है।

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इस तरह से किया गया था रामलीला का सबसे बड़ा मंचन 

साल 1876 में कानपुर के अनवरगंज में पहली बार बड़े स्तर पर रामलीला का आयोजन किया गया था। उस वक़्त इसका आयोजन वहां के राजा प्रयाग नारायण तिवारी ने करवाया था। इस रामलीला में उस समय के कई सारे स्वतंत्रा सेनानियों ने भी हिस्सा लिया था। इसी वर्ष परेड रामलीला समिति का भी गठन किया गया था। कुछ वर्षों के बाद महाराजा प्रयाग नारायण तिवारी ने तो रामलीला अध्यक्ष पद से अपना अधिकार वापस ले लिया, लेकिन उनके द्वारा प्रदान किया गए विभिन्न प्रकार के प्रॉप्स का इस्तेमाल आज भी रामलीला समिति द्वारा किया जाता है।

ऐसे आगे बढ़ी रामलीला की परंपरा 

आपको बता दें कि, कानपुर के रामलीला को काफी ऐतहासिक माना जाता है। रामलीला की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 1849 में शिवली के रामशाला मंदिर में इसका आयोजन किया गया। इस साल से उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से रामचरित मानस के आधार पर रामलीला का मंचन किया जाने लगा। गौरतलब है की, यहाँ हर साल बीस दिनों के लिए रामलीला का भव्य आयोजन किया जाता है। कानपुर के कैलाश मंदिर प्रांगण में भी भव्य रामलीला का आयोजन साल 1880 से किया जाने लगा। यहाँ आयोजित किये जाने वाले रामलीला की ख़ासियत यह है कि, दशहरा की सुबह यहाँ विशेष रूप से पहले रावण की पूजा होती है और उसके बाद रामलीला का मंचन किया जाता है।

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अक्सर आपने अपने बड़े-बुज़ुर्गों से या फिर कहानी की किताबों में यह पढ़ा होगा कि रावण की मृत्यु माता सीता की वजह से हुई थीं, लेकिन इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों  को होगी कि रावण को ऐसे 6 श्राप मिले थे, जो उसकी मृत्यु का कारण बने। तो चलिए आपको बताते हैं कि वो कौन से 6 श्राप थे, जिनके कारण रावण जैसे महाज्ञानी पंडित की मृत्यु हुई थी।

पहला श्राप 

रावण को पहला श्राप रघुवंश के राजा अनरण्य ने दिया था। अनरण्य एक बहुत ही पराक्रमी और प्रतापी राजा थे, जो श्री राम के वंशज थे। कहते है कि जब रावण विश्व विजय पर निकला था तो उसका अनरण्य से भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें अनरण्य की मृत्यु हो गई थी। लेकिन अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने रावण को यह श्राप दिया था कि मेरा ही वंशज तुम्हारी  मृत्यु का कारण बनेगा। रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने रघु कुल में जन्म लिया था और भगवान राम ने ही रावण का वध किया। 

दूसरा श्राप 

रावण को दूसरा श्राप भगवान शिव के वाहन नंदी ने दिया था। रावण भगवान शिव का परम् भक्त था, एक बार वह शिव जी से मिलने कैलाश पर्वत गया, जो कि शिव का निवास स्थान माना जाता है। वहां जाकर अहंकारी रावण ने भगवान शिव के वाहन नंदी के बैल स्वरुप और वानर मुख का मजाक उड़ाया। रावण द्वारा अपने उपहास से नंदी बेहद आहात हुए और उन्होंने रावण को श्राप दिया कि एक दिन तेरे समस्य कुल का सर्वनाश वानरों के कारण ही होगा और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वानरों की सेना के द्वारा ही लंका पर चढ़ाई की गयी थी और रावण की पूरी सेना का सर्वनाश किया गया था। 

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तीसरा श्राप 

रावण को तीसरा श्राप उसकी पत्नी मंदोदरी की बड़ी बहन “माया” ने दिया था। माया का विवाह वैजयंतपुर के राजा “शंभर” से हुआ था। एक बार जब रावण वैजयंतपुर गया वहां उसने माया को अपने जाल में फंसा लिया। जब राजा शंभर को इस बात का पता लगा तो उन्होंने रावण को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। उसी समय अयोध्या के रघुवंशी राजा दशरथ ने भी शंभर पर आक्रमण कर दिया। राजा दशरथ के साथ हुए इस युद्ध में राजा शंभर की मृत्यु हो गयी। शंभर की मृत्यु के बाद माया उनके वियोग में सती होना चाहती थी।  वासना में डूबे रावण ने माया को अपने साथ लंका चलने के लिए कहा। तब दुःख में डूबी माया ने क्रोधित होकर रावण को यह श्राप दिया कि एक दिन तुम सती स्त्री की वासना के कारण ही मारे जाओगे। 

चौथा श्राप 

चौथा श्राप रावण को एक तपस्विनी से मिला था। रावण एक बार भ्रमण करने के लिए अपने पुष्पक विमान से निकला, रास्ते में उसने एक सुंदर स्त्री को देखा। जो कि एक तपस्विनी थी और भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उस स्त्री के साथ र्दुव्यवहार करते हुए बालों से पकड़कर घसीटना शुरू कर दिया और अपने साथ लंका चलने के लिए कहा। तपस्या भंग किये जाने और अपने अनादर से दुखी तपस्विनी ने अपना शरीर त्यागते हुए रावण को श्राप यह दिया कि एक दिन तेरी मृत्यु का कारण एक स्त्री बनेगी। 

पांचवा श्राप 

लंकापति रावण को पांचवा श्राप उसके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर ने दिया था। कहा जाता है कि तीनों लोकों को जीतने की इच्छा से एक बार जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसकी नजर एक खूबसूरत अप्सरा पर पड़ गई, जिसका नाम “रंभा” था। रंभा ने रावण से कहा कि मैं तुम्हारे भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं लेकिन कामवासना में डूबे रावण ने “रंभा” की एक न सूनी और उसके साथ दुराचार किया। जब इस बात की जानकरी नलकुबेर को हुई तो उसे बहुत पीड़ा हुई और उसने रावण को यह श्राप देते हुए कहा कि आज के बाद अगर तुमने  किसी भी स्त्री को उसकी मर्जी के बिना छूने की कोशिश की तो तुम्हारे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। 

छठां श्राप

रावण को छठां श्राप उस की खुद की बहन शूर्पणखा ने दिया था। रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम “विद्युतजिव्ह” था, जो कालकेय नामक राजा का सेनापति था। जब रावण  विश्व विजय अभिायान पर निकला था, तो उसका सामना विद्युतजिव्ह से हुआ। रावण ने अपने ही जीजा “विद्युतजिव्ह” को युद्ध में हराकर, उसका वध कर दिया। पति की मृत्यु के उपरांत दुखी शूर्पणखा ने रावण को यह श्राप दिया कि एक दिन तुम्हारे और तुम्हारे पूरे कुल के सर्वनाश मेरे कारण ही होगा। 

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