जानिए रामनवमी कब और क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा

भगवान राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। यही वजह है कि भगवान राम सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच परम पूजनीय हैं। 13 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि के शुरुआत के साथ ही देश भर में रामनवमी की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं। भगवान राम के भक्तों के बीच इस पावन पर्व को लेकर अभी से ही उत्साह देखा जा सकता है। हर साल चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि रामनवमी के दिन ही भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में भगवान राम के जन्म से जुड़ी कहानी बताएंगे। लेकिन उससे पहले रामनवमी से जुड़ी कुछ बेहद महत्वपूर्ण जानकारी आपको दे देते हैं।

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रामनवमी तिथि और शुभ मुहूर्त

रामनवमी तिथि : 21 अप्रैल 2021

दिन: बुधवार

रामनवमी मुहूर्त : 11:02:08 से 13:38:08 तक

अवधि : 2 घंटे 36 मिनट

रामनवमी मध्याह्न समय : 12:20:09

भगवान राम की जन्म कथा।

कहा जाता है कि महाराज दशरथ को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी। ऐसे में महाराज दशरथ ने अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ से पहले महाराज दशरथ ने श्यामकर्ण घोड़े को चतुरंगिणी सेना के साथ छोड़ देने का आदेश जारी किया। 

महाराज दशरथ ने इस महान यज्ञ के लिए सभी यशस्वी और प्रतापी मुनियों को आमंत्रित किया। जिस दिन यज्ञ का शुभारंभ होना था उस दिन गुरु वशिष्ठ के साथ-साथ महाराज दशरथ के मित्र अंग प्रदेश के अधिपति लोभपाद के दामाद ऋंग ऋषि और अन्य आगंतुक भी यज्ञ मंडप पर पहुंचे। इसके बाद इस महान यज्ञ की शुरुआत हुई। 

यज्ञ के संपन्न होने के बाद महाराज दशरथ ने सभी ऋषि, मुनियों और पंडितों को धन-धान्य का दान कर प्रसन्न मन से विदा किया। फिर यज्ञ से प्राप्त हुआ प्रसाद लेकर महल लौट आए और यह प्रसाद अपनी तीन रानियों के बीच वितरित किया। यज्ञ के फल से तीनों रानियों ने गर्भ धारण किया।

सबसे पहले माता कौशल्या ने एक पुत्र को जन्म दिया। रानी कौशल्या के द्वारा जन्म लेने वाला बालक देखने में बेहद तेजवान था तथा नील वर्ण था। उसके चेहरे से सूर्य के सामान आभा छलक रही थी और व्यक्तित्व में काफी आकर्षण था। जो भी उस बालक को देखता बस मंत्रमुग्ध होकर देखता ही रह जाता। इस बालक का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को हुआ था। इस दौरान पुनर्वसु नक्षत्र के अंतर्गत शनि, रवि, शुक्र और बृहस्पति ग्रह अपने उच्चतम स्थान पर मौजूद थे और साथ ही कर्क लग्न का भी उदय हो रहा था।

माता कौशल्या के बाद क्रमशः अन्य दो रानियां यानी कि माता कैकयी और माता सुमित्रा ने भी शुभ नक्षत्रों में पुत्रों को जन्म दिया। माता सुमित्रा के दो पुत्र हुए। बालकों के जन्म के बाद पूरे राज्य में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी। गंदर्भों के गीत से बालकों का स्वागत हुआ। देवताओं ने अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हुए इन  बालकों को नमन किया और उन पर आकाश से पुष्प वर्षा की।

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बाद में इन बालकों का नाम महर्षि वशिष्ठ ने रामचंद्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखा। इन चारों बालकों के बीच आपस में काफी प्रेम था। सभी भाई अपने बड़े भाई राम से बहुत प्रेम करते और उसके आदेशों का पालन करते। भगवान राम बाल्यकाल से ही अत्यंत प्रतिभाशाली थे। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में ही सारा ज्ञान हासिल कर लिया। वे दिन-रात गुरुओं और माता-पिता की सेवा में जुटे रहते और उनके सभी छोटे भाई भी उनका ही अनुसरण करते।

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