दिवाली से पहले रमा एकादशी व्रत करने से होगी हर इच्छा पूरी; जान लें सभी नियम!

रमा एकादशी: कार्तिक माह में पड़ने वाली एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं। रमा एकादशी से दिवाली उत्सव की शुरुआत हो जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस एकादशी का नाम माता लक्ष्मी के रमा स्वरूप पर रखा गया है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करना शुभ माना जाता है। इस एकादशी को कार्तिक कृष्ण एकादशी या रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। रमा एकादशी व्रत को सभी 24 एकादशी व्रत में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि इस विशेष दिन व्रत करने से ब्रह्महत्या सहित अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। यही नहीं रमा एकादशी व्रत कथा सुनने से ही व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं और महालक्ष्मी के आशीर्वाद से जीवन में कभी भी आर्थिक परेशानी नहीं आती है।  तो आइए बिना देरी किए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं रमा एकादशी 2023 की तिथि, पूजा मुहूर्त, महत्व, पौराणिक कथा और आसान ज्योतिषीय उपाय के बारे में।

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रमा एकादशी 2023: तिथि व समय

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 08 नवंबर 2023 की सुबह 08 बजकर 25 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 09 नवंबर 2023 की सुबह 10 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः रमा एकादशी 09 नवंबर 2023 को गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। साधक 09 नवंबर को व्रत रख सकते हैं। जानें रमा एकादशी पारण मुहूर्त।

रमा एकादशी 2023 व्रत मुहूर्त के लिए

रमा एकादशी पारण मुहूर्त : 10 नवंबर 2023 की सुबह 06 बजकर 39 मिनट से 08 बजकर 49 मिनट तक।

अवधि : 2 घंटे 10 मिनट

रमा एकादशी का महत्व

सनातन धर्म में साल में पड़ने वाली सभी एकादशी का विशेष महत्व है लेकिन कार्तिक माह में कृष्ण एकादशी की एकादशी का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। रमा एकादशी अन्य एकादशी की तुलना में हजारों गुना अधिक फलदायी मानी गई है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति ये व्रत करता है उसके जीवन की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। ये व्रत करने वालों के जीवन में समृद्धि और संपन्नता आती है। साथ ही, माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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रमा एकादशी के दिन इस विधि से करें पूजा

  • रमा एकादशी के दिन व्रत जरूर रखना चाहिए। एकादशी का उपवास दशमी से शुरू हो जाता है। दशमी के दिन भक्त सूर्योदय के पहले सात्विक खाना ही खाते है।
  • रमा एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत संकल्प करना चाहिए। 
  • एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए है। भगवान विष्णु का धूप, पंचामृत, तुलसी के पत्तों, दीप, नैवेद्य, फूल, फल आदि से पूजा करने का विधान है।
  • इस दिन विष्णु जी को भोग में तुलसी पत्ती चढ़ाई जाती है, तुलसी का विशेष महत्त्व होता है। इससे व्यक्ति को समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है।
  • रमा एकादशी व्रत वाली रात को भगवान का भजन-कीर्तन या जागरण करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले जातकों को सोना नहीं चाहिए।
  • व्रत अगले यानी द्वादशी के दिन भगवान का पूजन कर ब्राह्मण को भोजन और दान विशेष: कपड़े, जूते, छाता, आदि करना चाहिए। इसके बाद व्रत पारण करना चाहिए।

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रमा एकादशी पर इन कार्यों को करने से बचें

रमा एकादशी के दिन कुछ कार्यों को करने से बचना चाहिए। माना जाता है कि इन कार्यों से व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है। आइए जानते हैं इन कार्यों के बारे में:

  • रमा एकादशी के दिन वृक्ष से पत्ते ना तोड़ें और न ही फूल तोड़ें।
  • इस दिन घर में झाड़ू ना लगाएं क्योंकि घर में झाड़ू लगाने से चीटियों या छोटे-छोटे जीवों के मरने का डर होता है।
  • इस दिन जीव हत्या करने से बचें। 
  • इस एकादशी के दिन बाल न कटवाएं और न ही नाखून काटे। 
  • रमा एकादशी के दिन कम से कम बोलने की कोशिश करें क्योंकि कई बार मुंह से गलत शब्द निकल सकते हैं। इस दिन भजन व आरती करने पर ध्यान दें। 
  • एकादशी के दिन चावल का सेवन भी वर्जित माना जाता है। 
  • इसके अलावा, इस दिन किसी दूसरे के हाथ से दिया हुआ अन्न आदि का भी सेवन न करें।
  • मन में किसी प्रकार का विकार न आने दें और न ही किसी की बुराई करें।
  • घर के बाहर आए किसी भिखारी को खाली हाथ न जाने दें।

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रमा एकादशी की दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

पौराणिक क​था के अनुसार, प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का एक राजा राज करता था। जो बड़ा ही धर्मात्मा और परोपकारी था। राजा की एक बेटी थी जिसका नाम चंद्रभागा था। उसने बेटी का विवाह चंद्रसेन के बेटे शोभन से संपन्न किया था। एक दिन मुचुकुंद का दामाद शोभन अपने ससुराल आया, उस समय रमा एकादशी व्रत आने वाली थी। इस बात को जानकर चंद्रभागा चिंता में पड़ गई क्योंकि उसके राज्य में एकादशी पर हर कोई व्रत रखता है व भोजन नहीं करता था और उसका पति दुर्बल था। रमा एकादशी के एक दिन पहले ही राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कर दी कि रमा एकादशी के दिन कोई भोजन नहीं करेगा। घोषणा सुनकर राजा का दामाद शोभन भी चिंतित हो गया और उसने पत्नी से कहा कि वह बिना भोजन के नहीं रह पाएगा। भोजन के बिना तो उसका प्राण निकल जाएगा। ऐसे में, कोई उपाय बताओ। तब चंद्रभागा ने कहा कि हे स्वामी! एकादशी के दिन इस राज्य में पशु तक जल नहीं ग्रहण करते हैं तो फिर मनुष्य के बारे में क्या कहा जा सकता है। आप तब तक कहीं और चले जाएं। यदि यहां रहेंगे तो आपको भी एकादशी व्रत करना ही होगा। इस पर शोभन ने कहा कि वह यहीं पर रहेगा और व्रत करेगा बाकि जो होगा देखा जाएगा।

रमा एकादशी के दिन शोभन ने भी व्रत रखा। सूर्यास्त के समय तक वह भूख और प्यास से व्याकुल हो गया था। रात में जागरण करना उसके लिए बहुत मुश्किल था। अगली सुबह शोभन के भूख से प्राण निकल गए। तब राजा ने उसका विधिपूर्वक शोभन का अंतिम संस्कार कराया और उसकी बेटी चंद्रभागा मायके में रहने लगी। रमा एकादशी व्रत के शुभ प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर देवपुर नाम का एक सुंदर नगर प्राप्त हुआ। वह सभी प्रकार के सुखों और ऐश्वर्य का आनंद उठा रहा था। एक दिन मुचुकुंद के नगर का एक सोम नामक ब्राह्मण सोम देवपुर में पहुंच गया। उसने शोभन को देखकर पहचान लिया कि वह राजकुमारी चंद्रभागा का पति है। शोभन ने भी उसे पहचान लिया और उससे मिला। सोम ने शोभन को बताया कि उसकी पत्नी और ससुर सभी सुखी हैं लेकिन आप बताएं कि आपको इतना सुंदर राज्य कैसे मिला।

तब शोभन ने कहा कि यह सब रमा एकादशी व्रत करने मिला है। लेकिन यह सब अस्थिर है क्योंकि उस व्रत को मैंने श्रद्धा रहित होकर किया था। शोभन ने ब्राह्मण से कहा कि आप मेरी पत्नी चंद्रभागा को इसके बारे में बताना तो यह स्थिर हो जाएगा। तब सोम चंद्रभागा के पास गए और सभी बातें बताई और नगर को स्थिर करने का उपाय पूछने लगे।

चंद्रभागा के कहने पर सोम उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव ऋषि के पास लेकर गए। वहां ऋषि ने चंद्रभागा का अभिषेक किया, जिससे वह दिव्य शरीर वाली हो गई और दिव्य गति को प्राप्त हुई। उसके बाद वह अपने पति शोभन के पास पहुंची। तब शोभन ने उसे अपनी बाईं ओर बैठा लिया। उसके बाद चंद्रभागा ने अपने एकादशी व्रत के पुण्य को अपने पति शोभन को प्रदान किया, जिससे उसका राज्य प्रलय के अंत तक स्थिर हो गया और उसके बाद चंद्रभागा और शोभन वहां आनंदपूर्वक रहने लगे।

रमा एकादशी के दिन इस आसान उपाय से दूर करें हर संकट

हम आगे आपको रमा एकादशी के दिन किए जा रहे कुछ अचूक व प्रभावी उपाय के बारे में बताने जा रहा है।  माना जाता है इन उपायों को रमा एकादशी के दिन करने से जीवन धन्य हो जाता है।

आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए

यदि आप चाहते हैं कि आपको जीवन में कभी भी आर्थिक समस्याओं से न गुजरा पड़े तो रमा एकादशी के दिन 11 या 21 कौड़ियां लेकर मां लक्ष्मी को अर्पित करें। इसके साथ ही, विधिवत पूजा करें और फिर अगले दिन द्वादशी के दिन इन कौड़ियों को एक पीले रंग के साफ वस्त्र में बांधकर अपनी तिजोरी या किसी साफ जगह पर रख दें। इस उपाय को करने से माता लक्ष्मी का आगमन होगा और आपको कभी भी पैसों से संबंधित समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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बिज़नेस में आ रही समस्या को दूर करने के लिए

अगर आपको अपने बिज़नेस व व्यापार में लगातार घाटा हो रहा है तो रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें और इस दौरान एक रुपए का सिक्का अर्पित करें। इसके बाद रोली, फूल, अक्षत आदि से विधि-विधान से पूजा करें। फिर इस सिक्के को एक लाल रंग के वस्त्र में बांधकर कार्यस्थल में किसी साफ जगह पर रख दें। इस अचूक उपाय को करने से व्यापार में आ रहे उतार-चढ़ाव से छुटकारा पाया जा सकता है।

प्रमोशन व वेतन वृद्धि के लिए

लगातार मेहनत व प्रयास करने के बाद भी यदि नौकरी में प्रमोशन नहीं हो रहा है और न ही आपके वेतन में वृद्धि हो रही है तो इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर जाकर पीले रंग के कपड़े व पीले रंग के फल चढ़ाएं। ऐसा करने से जल्द ही आपको कार्यक्षेत्र में शुभ परिणामों की प्राप्ति होगी और आप खूब तरक्की करेंगे।

जीवन में सुख-समृद्धि के लिए

जीवन में सुख-समृद्धि व वैभव प्राप्त करने के लिए रमा एकादशी जैसे शुभ दिन में तुलसी माता की पूजा अवश्य करें और शाम के समय तुलसी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। इस दौरान ‘ॐ वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जाप करते रहें और करके 11 व 21 बार तुलसी की परिक्रमा करें। मान्यता है कि इस उपाय को करने से जातक को कभी भी किसी समस्या से नहीं गुजरना पड़ता और सभी दुख व कष्ट दूर हो जाते हैं।

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए

यदि सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रमा एकादशी के दिन स्नान आदि करके पीले रंग के वस्त्र धारण करें और तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं। साथ ही, 108 बार ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ के मंत्र का जाप करें। माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति वैवाहिक जीवन में आ रही सभी समस्याओं से छुटकारा पा सकता है। 

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