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रामनवमी के दिन का सीधा संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम से है। इसी दिन उन्होंने राजा दशरथ और माता कौशल्या के घर जन्म लिया था।
राम नवमी, जैसा की नाम से ही पता चलता है कि ये त्यौहार भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम से सम्बंधित है। भगवान विष्णु ने अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना के लिए अलग-अलग युगों में अलग-अलग अवतार लिए थे, इन्ही में से उनका एक अवतार भगवान श्री राम के भी रूप में हुआ था। भगवान श्रीराम ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन माता कौशल्या की कोख से जन्म लिया था और तबसे ही इस दिन को रामनवमी के रूप में मनाये जाने की परंपरा की शुरूआत हुई है। चैत्र नवरात्रि का यह अंतिम दिन होता है।
जानिए रामनवमी का शुभ मुहूर्त
- रामनवमी तिथि : 21 अप्रैल 2021
- दिन: बुधवार
- रामनवमी मुहूर्त : 11:02:08 से 13:38:08 तक
- अवधि : 02 घंटे 36 मिनट
- रामनवमी मध्याह्न समय : 12:20:09
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चैत्र नवरात्रि नौवां दिन
चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन राम नवमी मनाई जाती है। नवरात्रि के नवमें दिन सिद्धीदात्री देवी की पूजा का विधान बताया गया है। इस दिन बहुत से लोग पूजा करने के बाद हवन करते हैं और कंजक पूजा करते हैं। इस दिन लोग छोटी कन्याओं को घर पर आमंत्रित करके उन्हें खाना खिलाते हैं और उन्हें भेंट-उपहार देकर विदा करते हैं।
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हालांकि इस बार देश कोरोना के संकट की वजह से लॉकडाउन पर चल रहा है जिसकी वजह से कन्या पूजन शायद ही किया जा सके। ऐसे में आप चाहें तो एक नए तरीके से कन्या पूजन कर सकते हैं।
- इस दिन सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करने के बाद मां सिद्धिदात्री की पूजा करें।
- कन्या पूजन की जगह इस बार दान दें।
- आप इस दिन नौ कन्याओं को खिलाए जाने वाला खाना किसी जरूरतमंद को दे सकते हैं और कन्याओं को दान में दिया जाने वाला किसी मंदिर में दान में दे सकते हैं।
- इसके अलावा आप चाहें तो इस दिन जानवरों को भी खाना खिला सकते हैं।
- इस दिन कुत्ते, गाय, इत्यादि जानवरों को आप कन्या पूजन वाला प्रसाद खिला सकते हैं।
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सिद्धिदात्री देवी से जुड़ा ज्योतिषीय संदर्भ
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
माँ सिद्धिदात्री पूजन मंत्र: ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
क्यों और कैसे हुआ था प्रभु श्रीराम का जन्म
भगवान विष्णु के सातवें अवतार कहे जाने वाले प्रभु राम ने धरती पर त्रेता युग में अवतार लिया था। पौराणिक कथाओं की मान्यता के अनुसार बताया जाता है कि धरती पर भगवान राम के जन्म का कुछ उद्देश्य जैसे, मानव जाति का कल्याण, इंसानों के लिए एक आदर्श पुरुष की छवि बनाकर उसकी मिसाल पेश करना और अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करना था।
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राजा दशरथ की तीन रानियाँ हुआ करती थीं लेकिन तीनों ही रानी को कोई पुत्र नहीं हुआ था। काफी समय बीत जाने के बाद राजा दशरथ ने इस बारे में ऋषि-मुनियों से सलाह लेने का विचार किया। तब राजा की समस्या का समाधान बताते हुए उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी गयी। ऋषियों के कहेनुसार राजा ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया और इस यज्ञ के बाद जो खीर प्रसाद के रूप में मिली उसे राजा दशरथ ने अपनी प्रिय पत्नी कौशल्या को दे दी, लेकिन रानी कौशल्या ने उसे अकेले खा लेने के बजाय उस खीर का एक हिस्सा रानी केकैयी को दिया और एक रानी सुमित्रा को दिया। इस यज्ञ और प्रसाद के प्रभाव से चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम ने जन्म लिया और केकैयी की कोख से भरत ने जन्म लिया और सुमित्रा की कोख से लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने जन्म लिया।
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कैसे और क्यों मनाते हैं रामनवमी?
भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। इस नाम का अर्थ है पुरुषों में सबसे उत्तम और ये नाम भगवान राम को इसलिए दिया गया है क्योंकि उन्हें पुरुषों में सबसे श्रेष्ठ का दर्जा दिया गया है। अब सवाल उठता है कि आखिर भगवान राम को ये नाम क्यों दिया गया है तो इस बात के आपको अनेकों उदाहरण मिल जायेंगे। मर्यादा पुरुषोत्तम हमारे भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव देश भर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
इस दिन भगवान श्री राम के भक्त दुनिया के बारे में भूलकर भगवान राम की भक्ति में पूरी तरह से डूब जाते हैं और सच्चे मन से भजन कीर्तन कर के प्रभु श्रीराम की पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन कई जगहों पर श्री रामकथा सुने जाने का भी चलन है। लोग इस दिन रामचरित मानस का पाठ करते हैं। कुछ लोग रामनवमी के दिन उपवास भी रखते हैं। लोगों के बीच रामनवमी के उपवास को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से इंसान के घर-परिवार में सुख समृद्धि आती है और उनके जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
जानें राम नवमी की पूजन विधि
राम नवमी की पूजा विधि कुछ इस प्रकार है,
- इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले आपको स्नान करके, मंदिर जाकर सच्चे और साफ़ मन से भगवान राम की पूजा करनी चाहिए।
- इस दिन की जाने वाली पूजा में तुलसी की पत्ती और कमल का फूल अवश्य इस्तेमाल किये जाना चाहिए।
- उसके बाद सोलह पूजन विधि (षोडशोपचार) से प्रभु श्रीराम नवमी की पूजा करें।
- इस दिन खीर का प्रसाद चढ़ाएं।
- पूजा के बाद सभी लोगों को तिलक लगाकर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
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रामनवमी से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राम नवमी की कहानी लंकापति रावण से शुरू होती है। ये बात उस समय की है जब रावण अपने राजकाल में एक बेहद अत्याचारी राजा बन चुका था। रावण के अत्याचार से उसकी पूरी जनता त्रस्त हो चुकी थी। यहाँ तक की रावण के अत्याचार से सिर्फ उसकी जनता ही नहीं बल्कि देवता भी बेहद दुखी हो चुके थे।
जब रावण का अत्याचार हद से ज़्यादा बढ़ गया तब देवतागण भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की कि उन्हें रावण के अत्याचार से कैसे भी बचाया जाए। देवताओं की इस प्रार्थना के फलस्वरूप भगवान विष्णु ने प्रतापी राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम के रूप में जन्म लिया और आगे जाकर उन्होंने ही रावण को परास्त किया।
तब से ही चैत्र की नवमी तिथि को रामनवमी के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हो गयी। ऐसा भी कहा जाता है कि नवमी के दिन ही स्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना शुरू की थी।
इस दिन सूर्य पूजा का होता है महत्व
राम नवमी के दिन सूर्य प्रार्थना का भी बहुत महत्व बताया गया है। इसी के चलते कहते हैं कि रामनवमी के दिन की शुरुआत सूर्य की प्रार्थना करने के साथ की जानी चाहिए। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि सूर्य शक्ति का प्रतीक है और हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य को राम का पूर्वज माना जाता है इसलिए, उस दिन की शुरुआत में सूर्य को प्रार्थना करने का उद्देश्य सर्वोच्च शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करना होता है।
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