रक्षाबंधन 2021: जानें राखी बांधने का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

रक्षाबंधन 2021: (Raksha bandhan 2021) भाई-बहन के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन भारत के हर एक हिस्से में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। रक्षाबंधन एक ऐसा पर्व है, जिसका इंतज़ार हर भाई बहन को रहता है। रक्षाबंधन का त्यौहार हिन्दू धर्म में बेहद खास महत्व रखता है। रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं, और अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है। हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन के दिन शुभ मुहूर्त पर ही राखी बांधने का रिवाज है।रक्षाबंधन हर साल सावन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल रक्षाबंधन 2021 में 22 अगस्त को रविवार के दिन मनाया जाएगा। तो आइए सबसे पहले जान लेते है, इस साल 2021 में रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त क्या है।

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रक्षाबंधन 2021 मुहूर्त : Raksha bandhan 2021 muhurat

रक्षाबंधन- 22 अगस्त, 2021, रविवार

राखी बांधने का मुहूर्त- – 06:14:56 से 17:33:39 तक

कुल अवधि-  11 घंटे, 18 मिनट

रक्षा बंधन पूजा विधि: raksha bandhan pooja vidhi 

रक्षाबंधन के दिन हर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है, और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है। लेकिन राखी बांधने से पहले और राखी बांधते वक्त भाई और बहन को कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए। तो आइए जानते हैं, हिन्दू धर्म के अनुसार रक्षाबंधन के दिन होने वाली पूजा विधि। 

  • राखी बांधने से पहले बहन और भाई दोनों उपवास रखें। 
  • भाई को राखी बांधने से पहले बहन थाली सजाएं।
  • थाली में राखी, रोली, दिया, कुमकुम, अक्षत और मिठाई रखें। 
  • राखी बांधते वक्त सबसे पहले भाई को माथे पर तिलक लगाएं।
  • उसके बाद भाई पर अक्षत छीटें।
  • बहनें अपने भाई के दाहिने हाथ पर राखी बांधें। 
  • राखी बांधने के बाद बहन भाई की आरती उतारें।
  • अगर भाई बड़ा है तो उसके पैर छूकर भाई से आशीर्वाद लें। 
  • फिर भाई को मिठाई खिलाएं।
  • बहन के राखी बांधने के बाद भाई अपनी सामर्थ्य अनुसार बहन को उपहार दें।  
  • राखी बांधते वक्त बहनें मंत्र का जाप करें। 

ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

रक्षाबंधन पर तिलक और अक्षत का महत्व

भाई के माथे पर तिलक लगाने का धार्मिक महत्व

हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है, कि रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई को राखी बांधने के बाद उसके माथे पर कुमकुम, केसर या चंदन का तिलक लगाती हैं। कुछ लोग तिलक में अक्षत का भी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, की राखी बांधते वक्त बहनें भाई के माथे पर तिलक क्यों लगाती हैं। दरअसल तिलक लगाने के पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दो कारण माने जाते हैं। 

धार्मिक कारण : हिन्दू धर्म में तिलक को प्यार, सम्मान,पराक्रम और विजय का प्रतीक माना गया है। ऐसा माना गया है, कि जब भी कोई शुभ कार्य के लिए घर से बाहर जाता है, तो उसके काम के पूरा होने की कामना करते हुए, घर की महिलाएं पुरुषों का तिलक करती है। इसलिए भाई को रक्षा सूत्र बांधते वक्त बहनों का भाई को तिलक करना बेहद शुभ माना गया है। 

वैज्ञानिक कारण: तिलक हमेशा माथे के बीच में लगाते हैं, और इस स्थान को छठी इंद्री या अग्नि चक्र का स्थान भी कहा जाता है। यही कारण है, कि वैज्ञानिक लिहाज से तिलक लगाने पर व्यक्ति के याददाश्त और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, निर्णय लेने की क्षमता प्रबल होती है, बौद्धिक और तार्किक क्षमता बढ़ती है, साथ ही साथ बल और बुद्धि में भी वृद्धि होती है।

कुल मिलाकर कहें, तो तिलक करने से होने वाले सभी लाभ एक भाई को उसकी बहन की रक्षा करने के लिए ज़रूरी हैं। और यही कारण है, कि बहन के द्वारा भाई के माथे पर तिलक लगाना बेहद ख़ास है। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उनको अपनी  रक्षा करने के लिए तैयार करती है। 

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तिलक में अक्षत का क्या है महत्व 

आपने देखा होगा तिलक बनाते वक्त अक्सर उसमें अक्षत यानी चावल के दाने भी डाले जाते हैं। दरअसल चावल हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं को चढ़ाये जाने वाला सबसे पवित्र अन्न माना जाता है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है, कि तिलक के साथ अगर कच्चे चावल को मिलाकर माथे पर लगाते हैं, तो व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होते है, और बुरी शक्तियां भी उससे दूर रहती हैं।  

रक्षाबंधन को अलग-अलग नामों से जानते हैं

रक्षाबंधन के पर्व को भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

  •  उत्तरांचल में रक्षाबंधन को श्रावणी के नाम से मनाते है
  • राजस्थान में रक्षाबंधन को रामराखी और चूड़ाराखी के नाम से मनाते है।
  • तमिलनाडु, केरल और उड़ीसा में रक्षाबंधन को अवनि अवितम के नाम से मनाते है। 

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रक्षा बंधन 2021 रोचक कथा : (Raksha bandhan 2021 katha)

रक्षाबंधन का त्यौहार प्राचीन काल से ही मनाया जा रहा है। रामायण से लेकर महाभारत  काल तक में रक्षाबंधन के त्यौहार का उल्लेख देखने को मिलता है। तो आइये जानते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ प्रसिद्ध और पौराणिक कथाएँ। 

रक्षाबंधन से जुड़ी द्रौपदी और श्री कृष्ण की कथा

महाभारत काल में भी रक्षाबंधन के त्यौहार से जुड़ा एक अनूठा प्रसंग है। जिसके अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था। तब उनकी उंगली में चोट लग गई थी। जिसके बाद वहां मौजूद सभी लोग श्री कृष्ण का बहता रक्त रोकने के लिए वस्त्र की तलाश करने लगे। तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण की उंगली पर बांधा था । ऐसा माना जाता है, कि तभी से श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है,कि द्रौपदी के इस त्याग और स्नेह का कर्ज भगवान कृष्ण ने द्रौपदी के चीर हरण के वक्त उनके सम्मान की रक्षा करके निभाया था और तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।

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रक्षाबंधन से जुड़ी संतोषी माता की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है। भगवान गणेश के दोनों पुत्र शुभ और लाभ इस बात से बेहद दुखी थे, की उनकी कोई बहन नहीं है। जिसके बाद दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से बहन मांगी। जिसके बाद गणेश जी ने दोनों बेटों की इच्छा पूरी करने का मन बनाया। और फिर भगवान गणेश की दोनों पत्नियों रिद्धि और सिद्धि की दिव्य ज्योति से माता संतोषी का अवतार हुआ। और तभी से शुभ और लाभ माता संतोषी को बहन के रूप में पाकर उनके साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाने लगें। 

रक्षाबंधन से जुड़ी सिकंदर और पोरस की कथा

रक्षाबंधन के त्यौहार से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, सम्राट सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के शत्रु पुरुवास यानि राजा पोरस को रक्षा सूत्र बांधकर उन्हें अपना मुंह बोला भाई बनाया था। और फिर युद्ध के दौरान सिकंदर को न मारने का वचन ले लिया था। जिसके बाद पोरस ने सिकंदर की पत्नी को दिए वचन को निभाने के लिए युद्ध में सिकंदर को जीवनदान दिया था। ऐसा कहा जाता है, कि युद्ध के दौरान पोरस को सिकंदर पर हमला करने का कई मौकै मिला था, लेकिन राखी का वचन निभाने के लिए पोरस के हाथ रुक गए। जिसके बाद सिकंदर ने पोरस को बंदी बना लिया। हालांकि बाद में सिकंदर ने पोरस के इस उदार स्वभाव के चलते उसका सारा साम्राज्य लौटा दिया था।

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