रक्षाबंधन पर बन रहे हैं 3 शुभ योग, जानें महत्व और लाभ।

रक्षाबंधन हिंदुओं का लोकप्रिय एवं प्रमुख त्यौहार है, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम एवं पवित्र बंधन का प्रतीक है। हर साल रक्षाबंधन श्रावण माह शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस त्योहार का इंतज़ार सभी भाई-बहनों को बेसब्री से रहता है, इसलिए रक्षाबंधन की तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं। साल 2022 में रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाई जाएगी। तो आइए जानते हैं इस त्योहार का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कुछ अन्य प्रमुख बातें।  

रक्षाबंधन 2022: तिथि एवं प्रदोष मुहूर्त

दिनांक: 11 अगस्त 2022

दिन: गुरुवार

हिंदू माह: श्रावण

प्रदोष मुहूर्त: 20:52:15 से 21:13:18

नोट: ऊपर दिया गया समय नई दिल्ली में रहने वालों के लिए मान्य है। अपने शहर के अनुसार समय जानने के लिए, यहां क्लिक करें

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रक्षाबंधन 2022 कब, 11 अगस्त या 12 अगस्त?

आपके मन में भी यह सवाल ज़रूर उठ रहा होगा कि रक्षाबंधन 2022 की सही तारीख़ क्या है, 11 अगस्त या 12 अगस्त? ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त, 2022 की सुबह 10 बजकर 40 मिनट पर शुरू होगी और 12 अगस्त, 2022 की सुबह 07 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में सूर्योदय के अनुसार तिथि की गणना की जाती है। सूर्योदय के मुताबिक रक्षाबंधन 11 अगस्त, 2022 को मनाई जाएगी क्योंकि राखी बांधने का शुभ समय दोपहर का ही माना जाता है, जो कि 11 अगस्त, 2022 में आएगा। पूर्णिमा तिथि 12 अगस्त, 2022 की सुबह 07 बजकर 06 मिनट तक ही रहेगी, इसलिए हम 12 तारीख़ को रक्षाबंधन नहीं मनाएंगे।

भद्रा काल के बारे में भी जान लीजिए, जिसमें शुभ काम नहीं किए जाते हैं। 

रक्षा बंधन भद्रा मुख: सुबह 06 बजकर 18 मिनट से 08:00 बजे तक

रक्षा बंधन भद्रा काल समाप्त: शाम 08 बजकर 51 मिनट पर

रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथाएं

एक पौराणिक कथा के अनुसार, सिकंदर की पत्नी ने अपने शत्रु राजा की कलाई पर राखी बांधकर अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी। यह उस समय की बात है जब पंजाब के महान राजा पुरुषोत्तम ने सिकंदर को युद्ध में परास्त कर दिया था। अपने पति के प्राणों की रक्षा करने के लिए, सिकंदर की पत्नी ने महाराजा पुरुषोत्तम की कलाई पर राखी बांधकर, एक बहन के रूप में अपने पति का जीवनदान मांगा था। 

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर हमला करने की साज़िश रची, लेकिन महारानी कर्णावती के पास इतनी सैन्य ताकत नहीं थी कि वे युद्ध में बहादुरशाह का सामना कर सकें। उस समय रानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता मांगी थी। एक मुस्लिम शासक होने के बावजूद भी उस राखी का सम्मान करते हुए, हुमायूँ ने अपनी बहन और उसके राज्य की शत्रुओं से रक्षा की थी।

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रक्षाबंधन पर श्री कृष्ण और द्रौपदी की कहानी 

यह कथा रक्षाबंधन से जुड़ी अब तक की सबसे प्रचलित कथाओं में से एक है, जिसका वर्णन महाभारत में मिलता है। एक बार जब शिशुपाल का वध करने के लिए श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया तो उससे उनकी उंगली कट गई और उससे काफी खून बहने लगा था। जैसे ही द्रौपदी की नज़र श्रीकृष्ण की उंगली से बहते खून पर पड़ी, उसी समय द्रौपदी ने बिना सोचे-समझे अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांध दिया था। उस दिन श्री कृष्ण ने बहन द्रौपदी को वचन दिया कि वे उसकी हमेशा रक्षा करेंगे। फिर बाद में जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया, तो कृष्ण जी ने उसे ऐसी साड़ी दी थी, जिसका अंत नहीं था। इस प्रकार श्री कृष्ण ने दौपड़ी का अभिमान बचाया था।

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रक्षाबंधन और इंद्रदेव की कथा

रक्षाबंधन की यह कथा इंद्र देव से संबंधित एक ऐसी कथा है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इस कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था, जिसका कोई अंत नहीं दिखाई दे रहा था। इस युद्ध में दानवराज बलि ने देव इंद्र का अपमान किया, जिससे देव इंद्र के सम्मान को बहुत ठेस पहुंची। यह सारी घटनाएं देखकर देवराज इंद्र की पत्नी सची भगवान विष्णु की शरण में गई।

उस समय श्रीहरि विष्णु ने सची को एक रक्षासूत्र देते हुए कहा कि यह सूत्र अत्यंत पवित्र है। मान्यता है कि सची ने उस रक्षासूत्र को सावन मास की पूर्णिमा के दिन इंद्र देव की कलाई पर बांधा था। इस रक्षासूत्र के प्रभाव से इंद्र देव असुरों को पराजित करने और अपना सम्मान वापिस पाने में सफल रहे थे। इस कथा से हमें यह ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में महिलाएं युद्ध में जाने वाले पुरुषों की रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधती थीं, इसलिए राखी का त्योहार सिर्फ भाई-बहनों तक ही सीमित नहीं है। 

देश के विभिन्न राज्यों में रक्षाबंधन उत्सव

परंपराओं के अनुसार, एक तरफ जहां रेशम का धागा भाई-बहन के रिश्तों को मजबूत करता है, वहीं इस दिन भाभी की कलाई पर बांधी जाने वाली चूड़ा राखी ननद और भाभी के रिश्ते को स्नेह के बंधन में बांधती है। इसके अलावा, रक्षाबंधन के त्यौहार पर देवी-देवताओं की पूजा, पितृ पूजन, हवन आदि धार्मिक अनुष्ठान भी किये जाते हैं।

हमारे देश में रक्षाबंधन की रौनक अलग-अलग रूपों में देखने को मिलती है, ठीक वैसे ही सभी राज्यों में इस त्यौहार को मनाने के तरीकों में भिन्नता पाई जाती है, जैसे अरुणाचल प्रदेश में रक्षाबंधन को श्रावणी के रूप में मनाते हैं और इस दिन विशेष यज्ञों का आयोजन किया जाता है, साथ ही पंडित द्वारा जातक को राखी या रक्षा सूत्र बांधा जाता है।

महाराष्ट्र में रक्षाबंधन को नराली पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग समुद्र या नदी के पास जाकर भगवान वरुण के दर्शन करते हैं और उन्हें नारियल अर्पित करते हैं। भारत के कुछ राज्यों जैसे कि उड़ीसा, केरल और तमिलनाडु में रक्षाबंधन को अवनि अविट्टम के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र की नराली पूर्णिमा की तरह, इस दिन लोग नदी या समुद्र किनारे जाकर स्नान आदि करने के बाद पूजा-अर्चना करते हैं और मंगल गीत गाते हैं।

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रक्षाबंधन की पूजा विधि

  • रक्षाबंधन के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद अपने कुलदेवी या देवता का आशीर्वाद लें।
  • इसके बाद राखी, अक्षत, सिंदूर और रोली आदि पूजा सामग्री को तांबे, चांदी या पीतल की थाली में रख लें।
  • अब घर के मंदिर या पूजा स्थल में अपने कुलदेवता के सामने पूजा की थाली रखें।
  • अपने भाई को राखी बांधते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपके भाई का मुंह पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए।
  • अब सबसे पहले बहन अपने भाई के माथे पर तिलक करें और इसके बाद, भाई के दाहिने हाथ पर राखी बांधें।
  • राखी बांधने के बाद, भाई-बहन मिठाई खिलाकर एक-दूसरे का मुँह मीठा कराएं। 
  • इसके बाद भाई को अपनी बहन को उपहार देना चाहिए और हर परिस्थिति में उसकी रक्षा का वचन देना चाहिए।

रक्षाबंधन 2022 पर बन रहे 3 शुभ योग

साल 2022 का रक्षाबंधन बहुत ख़ास होने वाला है क्योंकि इस दिन तीन शुभ योगों आयुष्मान योग, सौभाग्य योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। आयुष्मान योग 11 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 32 मिनट तक रहेगा, इसके बाद सौभाग्य योग का आरंभ हो जाएगा। ज्योतिषशास्त्र में इन तीनों योगों को बहुत शुभ एवं फलदायी माना जाता है। कहा जाता है कि इन योगों में किए गए कार्यों में सफलता जल्दी मिलती है।

रक्षाबंधन 2022 को शुभ बनाने के लिए, राशि अनुसार बाँधें इस रंग की राखी

  • मेष: अगर आपके भाई की राशि मेष है, तो आपको अपने भाई के लिए लाल राखी खरीदनी चाहिए। लाल रंग की राखी उसके जीवन में ऊर्जा और उत्साह लाने में मददगार होगी और भाई के माथे पर तिलक करने के लिए केसर का प्रयोग करें।
  • वृषभ: अगर आपका भाई वृषभ राशि का है, तो आपके लिए अपने भाई की कलाई पर चांदी या सफेद रंग की राखी बांधना शुभ होगा। साथ ही अपने भाई के माथे पर चावल और रोली से तिलक करें।
  • मिथुन: मिथुन राशि के भाइयों की कलाई पर हरे रंग और चंदन की राखी बांधें और माथे पर हल्दी का तिलक करें।
  • कर्क: रक्षाबंधन पर कर्क राशि के भाइयों को सफेद रेशम के धागे और मोती से बनी राखी बांधना शुभ रहेगा। शुभता में वृद्धि के लिए भाई के माथे पर चंदन से तिलक करें।
  • सिंह: सिंह राशि के भाई की कलाई पर गुलाबी या पीली रंग की राखी बांधें और पूजा करते समय भाई के माथे पर हल्दी और रोली से तिलक करें।
  • कन्या: यदि आपके भाई की राशि कन्या है, तो इस दिन शुभता में बढ़ोतरी के लिए अपने भाई को सफेद रेशम या हरे रंग की राखी बांधें। साथ ही भाई को हल्दी और चंदन का तिलक करें।
  • तुला: यदि आपके भाई की राशि तुला है, तो आप अपने भाई की कलाई पर बांधने के लिए सफेद, क्रीम या नीले रंग की राखी खरीदें और रक्षाबंधन पर अपने भाई का तिलक करने के लिए केसर का प्रयोग करें।
  • वृश्चिक: वृश्चिक राशि वाले भाइयों को गुलाबी या लाल रंग की राखी बांधें और तिलक के लिए रोली का इस्तेमाल करें।
  • धनु: धनु राशि के भाइयों को पीली रेशम की राखी बांधना फलदायी सिद्ध होगा और इसके प्रभाव में वृद्धि के लिए, रक्षाबंधन पर भाई को कुमकुम और हल्दी से तिलक करें।
  • मकर: मकर राशि के भाइयों को हल्के या गहरे नीले रंग की राखी बांधें और केसर से तिलक करें। 
  • कुंभ: कुंभ राशि के भाइयों को रुद्राक्ष से बनी या फिर पीले रंग की राखी बांधना लाभदायक साबित होगा, साथ ही इस दिन भाई को हल्दी का तिलक करें।
  • मीन: यदि आपके भाई की राशि मीन है तो हल्दी से तिलक करते हुए हल्के लाल रंग की राखी बांधें। 

घर में सुख-समृद्धि लाने के लिए रक्षाबंधन पर जरूर करें ये उपाय

सबसे पहले मौली को गंगाजल से पवित्र करें। फिर गायत्री मंत्र का जाप करते हुए इसे अपने घर के मुख्य द्वार पर तीन गांठों से बांध दें। इस उपाय का ज़िक्र वास्तु शास्त्र में किया गया है, जिसके अनुसार मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सकारात्मकता ऊर्जा का प्रवाह होता है तथा दरिद्रता और बुराई का अंत होता है। साथ ही अप्रिय घटनाएं जैसे कि चोरी-डकैती आदि होने का ख़तरा कम होता है।

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