जानें आषाढ़ महीने का पहला प्रदोष व्रत कब और क्या है इसका महत्व व पूजन विधि

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को विशेष माना गया है। इस दिन खास तौर से भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में प्रदोष काल के दौरान आनंद तांडव करते हैं और उनके इस स्वरूप की सभी देवी-देवता स्तुति करते हैं।

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हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं। इस तरह एक साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की आराधना करने वाले जातकों के भगवान शिव सारे कष्ट दूर कर देते हैं। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में आषाढ़ महीने में पड़ने वाले पहले प्रदोष व्रत और इसकी पूजा विधि की जानकारी देने वाले हैं लेकिन इससे पहले आषाढ़ महीने का सनातन धर्म में क्या महत्व है ये आपको बता देते हैं।

सनातन धर्म में आषाढ़ महीना

हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ महिना साल का चौथा महीना माना जाता है। इस महीने को वर्षा ऋतु की शुरुआत के तौर पर देखा जाता है। सनातन धर्म में आषाढ़ का महीना काफी विशेष माना गया है। इसी महीने में पूरी स्थित विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा निकलती है। इसी महीने में देवशयनी एकादशी भी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए सो जाते हैं और फिर देवउठनी एकादशी के दिन वे दुबारा जागते हैं। यही वजह है कि इस दिन से चतुर्मासी लग जाता है। सनातन धर्म में इन चार महीनों के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य करना निषेध माना गया है। हालांकि इस दौरान पूजा-पाठ और दान-पुण्य से विशेष लाभ प्राप्त होता है। यही वजह है कि आषाढ़ महीने को मनोकामना पूर्ति का महिना भी कहा जाता है।

आइये अब जानते हैं कि आषाढ़ महीने दौरान पहला प्रदोष व्रत कब पद रहा है।

आषाढ़ महीने में प्रदोष व्रत

साल 2021 में आषाढ़ महीने में पहला प्रदोष व्रत 07 जुलाई को बुधवार के दिन पड़ रहा है। बुधवार के दिन पड़ने की वजह से इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाएगा। 07 जुलाई को आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत रात्रि के 01 बजकर 02 मिनट पर होगी और अगले दिन 08 जुलाई की सुबह 03 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा।

बुधवार के दिन इस प्रदोष व्रत के पड़ने की वजह से इसे बुध प्रदोष भी कहा जाएगा। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की आराधना करने वाले जातकों की संतान शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ होती है।

आइये अब जानते हैं कि प्रदोष व्रत की पूजा विधि क्या है।

प्रदोष व्रत पूजा विधि

प्रदोष व्रत करने वाले जातक इस दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठ जाएं। स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान शिव को बेलपत्र, धूप, दीप, गंगाजल, अक्षत आदि अर्पित कर उनकी पूजा करें। प्रदोष व्रत करने वाले जातकों को पूरे दिन भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।

पूरे दिन उपवास करने के बाद सूर्यास्त से पूर्व एक बार फिर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद गंगाजल से पूरे घर और पूजा स्थल को पवित्र कर लें। गाय के गोबर से पूजा स्थल पर एक मंडप तैयार करें और अलग-अलग रंगों का उपयोग करते हुए मंडप पर रंगोली बना लें। इसके बाद कुशा का आसन बिछाकर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। भगवान शिव का ध्यान करते हुए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें। भगवान शिव का जल से अभिषेक करें।

ये भी पढ़ें : प्रदोष व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और व्रत कथा

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