सोम प्रदोष व्रत कल, जानें इसका महत्व, विधि व लाभ

प्रदोष व्रत को त्रयोदशी व्रत भी कहा जाता है। ये व्रत मुख्य तौर से माता पार्वती और भगवान शंकर को समर्पित होता है। यह व्रत कल यानी सोमवार 12 अगस्त को रखा जाएगा। कल रखा जाने वाला प्रदोष व्रत बेहद ख़ास होने वाला है क्योंकि, इसी तिथि के दिन इस वर्ष के आखिर समोवार का आयोजन किया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार ये व्रत बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घ आयु की प्राप्ति के लिए रखे जाने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार एक माह में प्रदोष व्रत दो बार और एक वर्ष में यह व्रत कई बार आता है।

प्रदोष व्रत का महादेव से संबंध  

हिन्दू धर्म में हर मास के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत का आयोजन किया जाता है। बता दें कि सूर्यास्त के बाद के समय से रात्रि प्रारंभ होने के ठीक पूर्व के समय को ही यूँ तो प्रदोष काल कहा जाता है। 

अगर सनातन परंपराओं की बात करें तो उसमें पौराणिक काल से ही पूजा पाठ, उपवास, आरधना आदि को काफी महत्व दिया गया है। ऐसा कहा जाता है कि सच्चे मन से शुभ तिथि में किया गया हर व्रत मनवांछित फलों की प्राप्ति कराता है। इसलिए प्रदोष व्रत करने का भी अपना एक विशेष महत्व होता है। शास्त्रों अनुसार माना जाता है कि प्रदोष काल का समय ही वो समय होता है जब भगवान शिव जी कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। इसलिए भक्तों में इस तिथि का महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि हर माह दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को भक्त महादेव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए प्रदोष व्रत रखते हैं। 

विभिन्न प्रकार के प्रदोष व्रत और उनके लाभ

अलग-अलग वार अनुसार इस व्रत को अलग-अलग जगहों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है, जिसका महत्व भी एक दूसरे से बिलकुल अलग है। आइये जानते हैं वार अनुसार प्रदोष व्रत का महत्व और उससे मिलने वाले लाभ:- 

  • रविवार प्रदोष व्रत: इस प्रदोष व्रत को रखने से व्रती को दीर्घायु की प्राप्ति होती है एवं उनको अपने स्वास्थ्य से जुड़ी हर समस्या से भी मुक्ति मिलती है।   
  • सोमवार प्रदोष व्रत: सोमवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति की हर मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसे सोम प्रदोषम या चंद्र प्रदोषम के नाम से भी जाना जाता है।  
  • मंगलवार प्रदोष व्रत: मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से हर व्यक्ति को आरोग्य जीवन की प्राप्ति होती है, जिससे उसे अपने जीवन में कोई भी गंभीर बीमारी नहीं होती है। इसे भौम प्रदोषम भी कहा जाता है।  
  • बुधवार प्रदोष व्रत: बुधवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति की हर कामना पूरी होती है। साथ ही जातक के शत्रुओं का नाश भी होता है। 
  • बृहस्पतिवार प्रदोष व्रत: गुरूवार के दिन प्रदोष व्रत करने से आप अपने शत्रुओं और विरोधियों पर विजय प्राप्त कर पाते हैं।  
  • शुक्रवार प्रदोष व्रत: शुक्रवार के दिन इस व्रत को करने से आपको आजीवन सुख और सौभाग्य की वृद्धि होती है। साथ ही आपका दांपत्य जीवन भी सुखमय व्यतीत होता है। 
  • शनिवार प्रदोष व्रत: शनिवार के दिन रखे जाने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहा जाता है। जिससे संतान प्राप्ति की चाह रखने वालों को इससे तेजस्वी संतान की प्राप्ति होती है। 

प्रदोष व्रत का पौराणिक महत्व

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को सभी विशेष व्रतों में से एक बताया गया है। जिसे रखने से शुभ फलदायक लाभों की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन सच्ची श्रद्धा भाव से उपवास रख, भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करता है, उन्हें समस्त बाधाओं और कष्टों से भगवान भोले मुक्ति दिलाते हैं और उन्हें मृत्यु के पश्चात मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इस व्रत से मिलने वाले शुभ फलों के पीछे यूँ तो आपको कई पौराणिक कथाएँ सुनने को मिल जाएंगे जिनके अनुसार प्रदोष व्रत करने से दो गौ के दान जितना पुण्य प्राप्त होता है। ऐसे में इस व्रत को लेकर ये भी माना जाता है कि वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा के तट पर शौनकादि ऋषियों से चर्चा करते हुए इस बात का उल्लेख किया था कि कलियुग अधर्म से भरा रहेगा, जिसके चलते धर्म और न्याय की राह छोड़ प्राणी अन्याय और अधर्म के मार्ग पर चल निकल जाएंगे और उसी समय प्रदोष व्रत ही उनके सभी पापों के प्रायश्चित का एक मात्र माध्यम साबित होगा। 

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प्रदोष व्रत करते वक़्त इन बातों का रखें विशेष ध्यान 

प्रदोष व्रत के दिन विशेष तौर से सुबह और शाम दोनों समय ही भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जानती है। जिसमें से संध्या का समय व्रत पूजन के लिए बेहद शुभ एवं फलदायी माना जाता है। तभी इस तिथि पर सभी शिव मंदिरों में संध्या के समय प्रदोष मंत्र का जाप किया जाता है। ऐसे में प्रदोष व्रत को करने के कुछ विशेष नियम बताए गए हैं, जिन्हे अपनाकर आप इस व्रत से शुभाशुभ परिणाम पा सकते है।   

  • त्रयोदशी तिथि के दिन सर्वप्रथम सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद नग्न आँखों से उगते हुए सूर्य देव के दर्शन करते हुए उन्हें जल अर्पित करें।  
  • इसके पश्चात किसी शिव मंदिर में भगवान शिव का बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से पूरे विधि विधान के साथ पूजन कर व्रत का संकल्प लें।    
  • व्रत करने वाले लोगों को पूरे दिन भर किसी भी प्रकार का भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। 
  • हालांकि अगर ऐसा मुमकिन न हो तो फलाहार किया जा सकता है।   
  • पूरे दिन व्रत करने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले पुनः स्नान कर सफेद वस्त्र पहनें। 
  • इसके बाद स्वच्छ जल अथवा गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध करें।  
  • इसके बाद गाय के गोबर से एक मंडप तैयार करें।  
  • पूजा स्थल पर अलग-अलग रंगों से रंगोली बनाए।
  • जब पूजा की सभी तैयारियाँ पूरी हो जाएं तो उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठ जाएं।  
  • इसके बाद “ओम नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप कर और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। 
  • फिर भगवान शिव की पूजा करते हुए शिव आरती और शिव चालीसा का पाठ करें।  

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प्रदोष व्रत के उद्यापन की पूजा-विधि

इस व्रत को लेकर माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को 11 या फिर 26 त्रियोदशी तक करता है, उसे भगवान शिव और मां पार्वती की असीम कृपा मिलती है। जिसके लिए लगातार 11 या फिर 26 प्रदोष व्रत करने वालों को इसका विधिवत तरीके से उद्यापन करना चाहिए।  

  • प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि को अर्थात् प्रदोषम के दिन हीं किया जाना चाहिए।   
  • उद्यापन से एक दिन पूर्व भगवान श्री गणेश की पूजा करें, क्योंकि उनकी वंदना के बाद ही कोई भी पूजा सफल होती है।   
  • इस दौरान आप उद्यापन से एक रात पूर्व जागरण कर रात भर भगवान भोले का कीर्तन करें।   
  • अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गाय के गोबर से मंडप बनाएँ और उसे रंगीन वस्त्रों और सुंदर-सुंदर रंगोली से सज़ाएँ। 
  • इसके बाद ‘ओम उमा सहित शिवाय नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करते हुए एक हवन करें।
  • उस हवन में आहूति देने हेतु खीर का ही प्रयोग करें। 
  • हवन करने के पश्चात भगवान शंकर की आरती और शांति पाठ करें। 
  • इसके बाद ब्राह्मणों को अपनी श्रद्धा अनुसार भोजन कराए और अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें दान दक्षिणा देकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करें। 

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