राहु की माया राहु ही जाने!

वैदिक ज्योतिष में राहु को विशेष दर्जा दिया गया है। यदि आपके मन में राहु को लेकर कोई प्रश्न है या आप जानना चाहते हैं कि आपकी कुंडली में उपस्थित राहु आपके व्यवसाय, स्वास्थ्य, शिक्षा या पारिवारिक जीवन पर क्या प्रभाव डाल रहा है, तो आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं और हमारे ज्योतिषियों से जुड़कर सारी जानकारी प्राप्त सकते हैं! वर्तमान समय में राहु को लेकर अनेक प्रकार की बातें कही जाती हैं, जिससे लोगों के मन में यह भय व्याप्त हो गया है कि राहु एक अत्यंत ही भयभीत करने वाला और बुरा ग्रह है जबकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है।

कुंडली में राहु सूर्य या चन्द्रमा के साथ हो तो ग्रहण दोष बनता है और उसका प्रभाव आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे व्यवसाय, विवाह, परिवार पर भी व्यापक रूप से पड़ता है। क्या आपके साथ भी ऐसा तो नहीं? बृहत् कुंडली से आपको अपने सभी प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे और आपके जीवन पर राहु अथवा अन्य ग्रहों के प्रभाव को समझने में भी मदद मिलेगी सटीक कुण्डली, ग्रह जनित योगों एवं दोषों के विश्लेषण और उपायों के माध्यम से विस्तृत जानकारी मिलती है। 

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राहु किसी भी व्यक्ति की कुंडली में विशेष स्थिति होने पर जातक को राजा से रंक और रंक से राजा बनाने का सामर्थ्य रखता है। इसके प्रभाव से जहां किसी व्यक्ति को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और करियर में भी चुनौतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं तो वहीं कुछ लोगों को राहु की विशेष स्थिति से प्रबल लाभ भी प्राप्त हुआ है। यदि आपको अपने करियर को लेकर कोई समस्या है तो उसका हल अपनी व्यक्तिगत एस्ट्रोसेज कॉग्निस्ट्रो रिपोर्ट से बहुत आसानी से पा सकते हैं।

राहु का धार्मिक महत्व एवं जीवन पर प्रभाव

अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम। 

सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम।।   

जो आधे शरीर वाले हैं, महान पराक्रम से पूर्ण संपन्न हैं, चंद्र तथा सूर्य को ग्रसित करने वाले हैं तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं, उन राहु को मैं प्रणाम करता हूं। 

हिंदू धर्म के अनुसार सिंहिका का पुत्र स्वरभानु काफी बलशाली और बुद्धिमान था। जब देवताओं और राक्षसों के मध्य समुद्र मंथन किया गया तो अमृत निकलने के बाद देवता और राक्षस दोनों ही उसको प्राप्त करने के लिए दौड़ पड़े और संग्राम की स्थिति उत्पन्न हो गई। तब भगवान विष्णु जी ने मोहिनी अवतार धारण कर सुलह कराने की कोशिश की और सर्वप्रथम देवताओं को अमृत बांटने लगे। 

यह बात स्वर भानु की समझ में आ गई और वह चुपचाप देवताओं का वेश धारण कर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा। जैसे ही उसने अमृत को चखा, सूर्य और चंद्रमा ने उसको पहचान लिया तथा मोहिनी रूप अवतारी भगवान विष्णु जी को उसकी सच्चाई बता दी। तत्क्षण भगवान विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया लेकिन तब तक अमृत उसके कंठ में पहुंच चुका था। इसके कारण उसका शरीर अमर हो गया। 

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उसी स्वरभानु के कटे हुए सिर को राहु और धड़ को केतु कहा गया। यही वजह है कि राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रसित करते हैं। राहु और केतु सदैव वक्री अवस्था में माने जाते हैं। इन्हें प्रत्यक्ष ग्रह तो नहीं लेकिन छाया ग्रह के रूप में मान्यता मिली है। राहु को किसी विशेष राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है फिर भी कन्या राशि को इसका घर माना गया है और  मिथुन तथा धनु राशि में यह क्रमशः उच्च एवं नीच अवस्था में माना गया है। मतान्तर से वृषभ राशि में भी उच्च और वृश्चिक नीच अवस्था में माना जाता है।

यदि राहु कुंडली के केंद्र भाव में त्रिकोण के स्वामी के साथ स्थित हो अथवा कुंडली के त्रिकोण भाव में केंद्र भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो प्रबल राजयोग कारक हो जाता है और ऐसी स्थिति में बहुत ही जल्दी व्यक्ति को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचा देता है। राजनीति और कूटनीति में माहिर बनना हो तो उसके लिए राहु का आशीर्वाद आवश्यक है।

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राहु से मिलने वाले विभिन्न फल

अच्छा और शुभ राहु आपको तीव्र बुद्धि देता है, जिसके बल पर आप बड़ी से बड़ी समस्या को भी समय से पहले ही निपटा सकते हैं। राहु एक परिवर्तनकारी ग्रह है, जो मान मर्यादाओं की बेड़ियों में नहीं बँधता बल्कि इनसे बाहर निकाल कर आगे बढ़ाता है। राहु का नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति के सोचने और समझने की शक्ति पर सर्वाधिक प्रभाव डालता है। व्यक्ति के अच्छे मित्र नहीं होते और उसे सलाह भी गलत लोगों से मिलती है। उसकी संगति बिगड़ जाती है और वह हिचकी, आँतों की समस्या, अल्सर, गैस्ट्रिक और पागलपन जैसी समस्याओं से पीड़ित हो सकता है।

यही राहु हमारे मस्तिष्क में अच्छे और बुरे विचारों को जन्म देता है। इसका रंग नीला है, इसलिए नीले रंग से संबंधित वस्तुओं में विशेषकर राहु का प्रभाव पाया जाता है। इसके अलावा, शत्रु, बिजली, नीचता, कपट, हाथी, बिल्ली, आदि सभी राहु के प्रतीक माने जाते हैं। इसके अलावा, जेल, ससुराल, खुफ़िया पुलिस, चालबाजी, कच्चा कोयला, लोहे में लगने वाली जंग, गंदी नालियाँ, काले रंग का कुत्ता, बुखार, आदि का संबंध भी लाल किताब में राहु से ही बताया गया है। 

विभिन्न ग्रहों के प्रभाव से निपटने के लाल किताब उपाय: लाल किताब रिपोर्ट

विभिन्न शास्त्रों में राहु ग्रह की प्रसन्नता और अनुकूलता प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार से किए जाने वाले उपायों का वर्णन किया गया है, जिनमें रत्न और यंत्र धारण, व्रत और जप तथा औषधि स्नान का भी विधान कहा गया है। यंत्र चिंतामणि, वृहद्दैवज्ञ रंजन, गरुड़ पुराण, नारद संहिता और शुक्र नीति, आदि में भी इसी राहु का काफी विचार किया गया है। 

राहु को कैसे करें प्रसन्न

इनके अनुसार राहु को प्रसन्न करने के लिए गोमेद रत्न धारण करना चाहिए, जिससे इनका अनिष्ट दूर होता है। गोमेद की अनुपस्थिति में तुरसा या फिर साफी उपरत्न भी धारण किया जा सकता है। यदि जन साधारण के लिए राहु का रत्न को धारण करना संभव ना हो तो राहु यंत्र धारण किया जा सकता है। राहु का यंत्र शनिवार के दिन लोहे के ताबीज में रखकर धारण करना चाहिए।

विश्वाष्टतिथ्यामनुसूर्यदिश्या खगामहीन्द्रैकदशांशकोष्ठे।

विलिख्य यन्त्रं सततं विधार्यं राहोः कृतारिष्टनिवारणाय।।

इस प्रकार राहु का यंत्र धारण करने से भी राहु से संबंधित सभी अरिष्टों का निवारण हो सकता है।

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राहु के लिए व्रत

राहु का व्रत शनिवार को किया जा सकता है। इसके अलावा, राहु कुंडली के जिस भाव में स्थित हो, उस भाव के स्वामी का जो वार हो, उस दिन भी राहु का व्रत भी किया जा सकता है। राहु का व्रत अट्ठारह शनिवारों तक करना चाहिए। व्रत के दिन व्यक्ति को काले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिएं और ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः मंत्र का जाप करना चाहिये। इस मंत्र की 18, 11 या 5 माला जाप करें। जिस समय आप जप कर रहे हों, एक पात्र में दूर्वा, जल और कुशा अपने पास रख लें।

जप करने के बाद इन सभी को पीपल वृक्ष की जड़ में चढ़ा दें। व्रत के दिन भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समय के अनुसार रेवड़ी और काले तिल से बने पदार्थ खाएं। रात में घी का दीपक पीपल वृक्ष की जड़ में रखकर जला दें। इस व्रत को करने से शत्रु का भय दूर होता है और राजपक्ष और मुकद्दमें में विजय मिलती है। व्यक्ति का सम्मान बढ़ता है तथा राहु जनित कष्टों से मुक्ति मिलती है।

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राहु के लिए औषधि स्नान

ज्योतिष शास्त्र में औषधि स्नान को काफी महत्वपूर्ण बताया गया है, जिससे राहु ग्रह जनित पीड़ा शांत हो सकती है। इसके अनुसार, यदि राहु के अनिष्ट प्रभावों को शांत करना हो तो निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए मोथा, लाल चंदन, सुगंध बाला, बिल्वपत्र, कस्तूरी, दूर्वा, लोध और गजमद से स्नान करना बताया गया है:

सलोध्रगर्भेणमदेभदानै रर्णोऽम्बुदश्रीफलपर्णवर्णैः।

हरेदभद्रं विषमागुजातं शरीरिणामाप्लवनं सदूर्वै।।

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राहु का दान 

राहोर्दानं कृष्णमेषो गोमेदो लौहकम्बलौ।

सौवर्णं नागरूपं च सतिलं ताम्रभाजनम्।।

राहु ग्रह के दोष के निवारण करने के लिए काली भेड़, गोमेद रत्न, लोहा, कंबल, सोने का बना नाग, तिल से भरे हुए तांबे के बर्तन का दान करना अत्यंत शुभ होता है। राहु की कृपा प्राप्ति के लिए गोमेद रत्न पहनना चाहिए। 

जब भी आप राहु के निमित्त कोई उपाय करने जा रहे हैं तो निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए आप वह कार्य कर सकते हैं:

नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी करालवक्त्रः करवालशूली।

चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहुः सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु मह्यम्।।

इसका अर्थ यह है कि नीले अंबर अर्थात् नीले वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुट धारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल, तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर स्थित राहु मेरे लिए वरदायी रहें। 

ज्योतिष में राहु को शनि वत कहा गया है अर्थात् कुछ स्थानों पर राहु शनि के सामान फल प्रदान करता है। आपके जन्म विवरण के आधार पर तैयार की गयी शनि रिपोर्ट आपके शनि से जुड़े सभी सवालों के सटीक जवाब देती है, और यह भी बताती है कि कोरोना के इस दौर में कैसे यह ग्रह आपके जीवन को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।

राहु के कारण होने वाले रोग

कुछ विशेष परिस्थितियों में राहु अति अशुभ हो जाता है और ऐसे में शारीरिक समस्याएं भी दे सकता है। यदि राहु शनि के साथ युति संबंध में हो और धनु राशि में यह युति हो रही हो अथवा अष्टम भाव में उपस्थित राहु पर मंगल की दृष्टि हो या फिर राहु नवम भाव में नीच राशि में हो और मंगल या शनि से दृष्ट हो अथवा राहु मेष, कर्क, सिंह या वृश्चिक राशि में स्थित होकर कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, षष्ठ अथवा दशम भाव में स्थित हो तो ऐसी स्थिति वाला राहु काफी परेशानी जनक साबित हो सकता है।

यदि आपकी कुंडली में राहु पीड़ित है तो इस प्रकार स्थित राहु से कब्ज, चेचक, मस्तिष्क रोग, स्मरण शक्ति कमजोर होना, गठिया, कुष्ठ रोग, अतिसार, भूत प्रेत का डर, रीढ़ की हड्डी में दर्द या उसका टूटना, भूख प्यास से संबंधित बीमारी, वायु विकार, त्वचा रोग, हृदय रोग अथवा पेट में कीड़े जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

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राहु के मंत्र एवं विशेष उपाय

राहु का बीज मंत्र और अन्य मंत्र आपको राहु की कृपा बड़ी ही सहजता से प्रदान कर सकते हैं। ये मंत्र इस प्रकार हैं:  

ॐ ऐं ह्रीं राहवे नमः

ॐ रां राहवे नमः

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः

ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता।। (यजुर्वेद  ३६/४)

ब्रह्मांड पुराण में भी राहु के श्लोक द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गई है:

अनेकरूपवर्णैश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक।

उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तमः।।

इसका अर्थ है कि विभिन्न रूपों तथा वर्ण वाले, सैकड़ों और हजारों नेत्रों वाले, जगत के लिए उत्पात स्वरूप, तमोमय राहु मेरी पीड़ा का हरण करें।

उपरोक्त मंत्रों के अतिरिक्त निम्नलिखित विशेष उपाय भी बहुत कारगर होते हैं:

  • राहु ग्रह की शांति के लिए भगवान शिव जी के मंदिर जाकर शिवलिंग पर चाँदी का बना नाग और नागिन का जोड़ा चढ़ाना शुभ रहता है।
  • शनिवार के दिन नीले रंग के कपड़े में काले रंग के तिल भर कर दान करना भी अति शुभकारी साबित होता है।
  • राहु को प्रसन्न करने के लिए नागकेसर का पौधा लगाना भी अति शुभ माना जाता है।
  • आप राहु के आधिपत्य वाले आर्द्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्र के दौरान, अथवा राहु काल या शनि होरा में उपरोक्त उपायों को करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 
  • राहु की शांति के लिए माँ दुर्गा जी की आराधना करना सर्वोत्तम माना गया है।
  • आप रुद्राभिषेक संपन्न करवाकर भी राहु के दोषों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
  • इसके अलावा यदि राहु की दशा चल रही हो और आपको राहु के अशुभ मिल रहे हों तो आप बजरंग बाण का पाठ भी कर सकते हैं।

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आशा है कि आपको राहु और उसके प्रभाव के बारे में इस लेख में दी गई जानकारी पसंद आई होगी। एस्ट्रोसेज का हिस्सा बनने के लिए आप सभी का धन्यवाद। 

Dharma

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