पितृपक्ष के दौरान मातृ ऋण से मुक्ति के लिए करें ये उपाय !

जैसा कि आप सभी जानते हैं, की मातृ ऋण एक ऐसा ऋण है जिसके बोझ तले इस संसार का हर इंसान दबा है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितरों के आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण की क्रिया करके व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो सकता है लेकिन मातृ ऋण से मुक्ति पाना इतना आसान नहीं होता। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखें तो जिन व्यक्तियों की कुंडली के चौथे भाव में राहु चंद्रमा और शुक्र के साथ बैठा हो तो, ऐसे व्यक्ति मातृ ऋण से पीड़ित माने जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार मातृ ऋण से पीड़ित व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। आज हम आपको मातृ ऋण से निजात पाने के कुछ उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं।

मातृ ऋण से पीड़ित व्यक्ति को किन समस्यों से जूझना पड़ सकता है 

मातृ ऋण से बचाव से पहले ये जान लेना आवश्यक है की, यदि आप इस ऋण से पीड़ित हैं तो आपके जीवन में कौन-कौन सी समस्यायें आ सकती हैं। बता दें कि, यदि आपकी कुंडली में मातृ ऋण है तो आप अक्सर किसी प्रकार के भय या तनाव से पीड़ित हो सकते हैं। ऐसे व्यक्ति अमूमन डिप्रेशन और अवसाद से पीड़ित रहते हैं। युवावस्था से ही उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के उतार चढ़ाव देखने पड़ सकते हैं। मातृ ऋण से ग्रसित पुरुषों को अक्सर महिलाओं से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। 

इस पितृपक्ष मातृ ऋण से मुक्ति के लिए निम्न उपाय करें

बता दें कि, पितृपक्ष के दौरान जहाँ एक तरफ पितरों की पूजा अर्चना कर आप पितृ ऋण से मुक्ति पा सकते हैं वहीं दूसरी तरफ इस दौरान कुछ ख़ास उपायों को अपनाकर आप मातृ ऋण से मुक्ति पा सकते हैं। मातृ ऋण से मुक्ति के लिए, श्राद्धपक्ष के दौरान मातृ नवमी के दिन सबसे पहले श्रृंगार की सभी वस्तुएँ लें। इन सभी वस्तुओं में विशेष रूप से बिंदी, सिंदूर, चूड़ियां और लाल रंग की साड़ी। इसके साथ ही साथ सभी प्रकार के सात्विक भोजन बना लें जिसमें मुख्य रूप से उड़द के दाल से बनी चीज़ों का प्रयोग जरूर करें। इसके बाद इस भोजन को मुख्य रूप से घर की किसी सुहागिन स्त्री को आमंत्रित कर खिलाएं। भोजन करवाने के बाद उन्हें श्रृंगार की सभी वस्तुएं उपहार स्वरुप भेंट करें। मातृ से मुक्ति के लिए इस उपायों को मातृ नवमी के दिन करना महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके साथ ही साथ आपको ये भी बता दें कि, मातृ नवमी के दिन विशेष रूप से मृत सुहागिन पितरों का श्राद्ध घर की महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। 

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