कुंडली में पितृदोष? इन संकेतों से जानें जवाब और नोट कर लें अबतक के सबसे प्रभावी उपायों की जानकारी!

हम सभी ने कभी ना कभी अपने जीवन में पितृ दोष शब्द का और इससे जुड़ी अलग-अलग धारणाओं और विश्वासों का जिक्र अवश्य सुना होगा। अधिकांश समय में ऐसा होता है कि जिन लोगों को पितृ दोष के बारे में सही जानकारी नहीं होती है वह बेहद ही जल्दी इस शब्द को सुनते ही डर जाते हैं या फिर इस डर के चक्कर में लालची तथा कथित पुजारियों के झांसे में आ जाते हैं जो उनके भोलेपन का फायदा उठाने और उनके डर को पैसे कमाने के जरिए में तब्दील कर लेते हैं। 

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हालांकि हमारे कहने का ऐसा मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि सभी पंडित या पुजारी ऐसा करते हैं। हम केवल उन तथाकथित पंडितों के बारे में जिक्र कर रहे हैं जिनसे कभी ना कभी शायद आपका भी सामना हुआ होगा। आमतौर पर यह पूजा और अनुष्ठान जैसे नारायण बलि पूजा, प्रेत उदार, त्रिपिंडी श्राद्ध या गया श्राद्ध इत्यादि पूजाएं काफी महंगी होती हैं और इन अनुष्ठानों को करने के लिए पेशेवरों की ही आवश्यकता होती है। किसी सामान्य व्यक्ति के लिए इन्हें कर पाना बहुत मुश्किल होता है। 

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आगे बढ़ने और पितृ दोष के बारे में और भी अधिक दिलचस्प पर महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करने से पहले चलिए सबसे पहले जान लेते हैं कि वास्तव में पितृ दोष क्या होता है? पितृ दोष से मुक्ति पाने के क्या तरीके होते हैं? इनका क्या महत्व होता है और पितृ दोष के प्रभाव के परिणाम स्वरुप हमें अपने जीवन में क्या कुछ दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।

हमारी जानी-मानी और विद्वान ज्योतिषी आचार्या पारुल वर्मा ने इस ब्लॉग के माध्यम से अपने रीडर्स को इस बात की जानकारी देने की कोशिश की है कि हम अपने पूर्वजों को किस तरह से प्रसन्न करके इस भयावाह पितृ दोष के नकारात्मक प्रभावों से छुटकारा पा सकते हैं। साथ ही आपको यहां इस बात की भी जानकारी मिलेगी कि पितृ दोष क्या है? इसके कारण क्या होते हैं और किन उपायों को करके आप इस जटिल दोष का प्रभाव अपने जीवन से कम या दूर कर सकते हैं।

क्या होता है पितृ दोष?

पितृ दोष शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है पितृ और दोष पितृ का अर्थ होता है पूर्वज या हमारी पिछली पीढ़ी के संदर्भ में इसका उपयोग किया जाता है और दोष का अर्थ होता है श्राप। ऐसे में पितृ दोष का अर्थ हुआ हमारे पितरों से संबंधित श्राप। ज्योतिष की दुनिया में सबसे व्यापक ग्रन्थों में से एक माने जाने वाला ‘बृहत पाराशर होरा शास्त्र’ भी इस बारे में दावा करता है कि पितृ दोष का संबंध हमारे पिछले जन्मों से भी होता है।  

पितृ दोष कुल आठ तरह के होते हैं जो किसी कुंडली में ग्रहों के अलग-अलग संयोजन के चलते बनते हैं। लेकिन उन सभी में से पितृ दोष के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

सर्प श्राप, पितृ श्राप, मातृ श्राप, भ्रातृ श्राप, मातुल श्राप, ब्रह्मा श्राप, पत्नी श्राप और प्रेत श्राप ये 8 प्रकार के श्राप हैं।

इन श्रापों का प्रभाव विभिन्न तौर पर हमारे जीवन पर नकारात्मकता के रूप में पड़ता है। हालांकि मुख्य रूप से यह युवाओं को प्रभावित करते हैं। हालांकि आगे बढ़ने से पहले हम यह बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि, यह योग जटिल ग्रह विन्यासों के चलते निर्मित होते हैं जिन्हें एक आम व्यक्ति या किसी नवसिखिया के लिए समझ पाना बेहद मुश्किल होता है। ऐसे में इन विषयों के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए आपको खुद गहन शोध करने या फिर किसी प्रसिद्ध और अनुभवी ज्योतिषियों से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है। हम अनुरोध करते हैं कि इन योगों के बारे में जानने के बाद चिंतित या घबराने से बचें और बल्कि अपने लाभ और इन दोषों का अपने जीवन से दुष्प्रभाव हटाने के लिए उपाय के बारे में विचार करने की सलाह दी जा रही है।

कुंडली में पितृ दोष का कारण बनने वाले कारक

कुंडली में पितृ दोष का निर्माण होना एक बेहद ही जटिल योग है जिसे यहां पूरी तरह से समझ पाना मुश्किल है। फिर कुछ चीजों के माध्यम से आपको यह समझाने का प्रयत्न कर सकते हैं कि कुंडली में आखिर पितृदोष का निर्माण क्यों होता है। हालांकि हम आगे बढ़ने से पहले एक बार फिर आपसे अनुरोध कर रहे हैं कि व्यर्थ की चिंता ना करें और किसी जानकार पंडित से परामर्श करके इस दोष के प्रभाव को दूर करने के उपाय के बारे में ज्ञान प्राप्त करें: 

हमारी कुंडली में कुछ लक्षण होते हैं जो पितृ दोष का संकेत देते हैं लेकिन उन तक पहुंचने से पहले या उनके बारे में बात करने से पहले हम आपके यहां यह बताना चाहेंगे कि बृहत पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार इन दोषों का प्रभाव आप पर या किसी व्यक्ति पर तब तक ही पड़ता है जब आपका लग्नेश या प्रथम भाव का स्वामी, सप्तमेश या पंचमेश किसी व्यक्ति की कुंडली में कमजोर स्थिति में हो। अगर वह मजबूत होंगे तो उनका आप पर प्रभाव नहीं पड़ पाएगा। 

  • राहु, केतु या शनि जैसे शुभ ग्रहों के साथ सूर्य की कमजोर स्थिति कुंडली में पितृ दोष की वजह बनती है। क्योंकि सूर्य हमारे पूर्वजों का प्रतिनिधित्व करता है इसीलिए आत्मकारक और अच्छी प्रतिरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के रूप में भी इसे जाना जाता है और सूर्य देव की पूजा करके हम अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं इसीलिए किसी व्यक्ति की कुंडली में कमजोर सूर्य पितृ दोष का संकेत देता है। 
  • राहु, केतु या शनि के साथ युति होने पर चंद्रमा के कमजोर स्थिति क्योंकि चंद्रमा हमारी माँ और पूर्वजों का भी कारक है। चंद्रमा की यह स्थिति माता की ओर से पितृ दोष की वजह बनती है। 
  • अगर कुंडली में पंचम भाव का स्वामी कमजोर स्थिति में हो या छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो। 
  • पंचम भाव में राहु, केतु, शनि या मंगल जैसे अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो। 
  • कुंडली में नवमेश की कमजोर स्थिति भी पितृ दोष दर्शाती है।

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पितृदोष का प्रभाव

जब व्यक्ति के जीवन पर पितृ दोष का प्रभाव होता है तो उनके जीवन और उनके परिवार में कुछ विशेष तरह के संकेत नजर आने लगते हैं। ऐसा कई बार होता है कि लोगों को अपने सही जन्म विवरण के बारे में जानकारी नहीं होती है या कभी-कभी उन्हें उचित ज्योतिषय सलाह नहीं मिल पाती है जिसके चलते वह यह निश्चित ही नहीं कर पाते हैं कि उन्हें उनकी कुंडली में पितृ दोष जैसी जटिल समस्या बनी हुई है। 

  • संतान प्राप्ति में परेशानी। 
  • संतान के स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित परेशानियां। 
  • परिवार में योग्य जातकों का विवाह ना हो पाने की समस्या या रुकावटें। 
  • घर में नव विवाहितों के वैवाहिक जीवन में परेशानियां। 
  • परिवार के सदस्यों को बार-बार स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों से जूझना पड़ सकता है। 
  • परिवार के सदस्यों के बीच कलह लड़ाई झगड़ा और घर में अशांति का माहौल। 
  • आर्थिक परेशानियां, अनिश्चितताएं और नुकसान। 
  • व्यावसायिक जीवन में लाभ न मिल पाना। 
  • सपने में अपने पूर्वजों को परेशान या दुखी देखना। 
  • या परिवार में अपमान और सम्मान की हानि होना। 
  • कुछ मामलों में अगर पितृ दोष ज्यादा प्रबल होता है तो यह परिवार में अचानक मृत्यु का कारण भी बन सकता है।

अपने जीवन से पितृ दोष दूर करने के अनुष्ठान और उपाय

पितृदोष के लक्षण और उनसे संबंधित परेशानियां जानकर यकीनन आप भी परेशान हो सकते हैं कि पितृ दोष के बुरे प्रभावों को दूर करने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है। जैसे कि हमने पहले ही बताया था कि त्रिपिंडी श्राद्ध, गया श्राद्ध, नारायण बलि पूजा और प्रेत उदार जैसे विभिन्न पूजा और विस्तृत अनुष्ठान हैं, जिनको कराने के लिए पंडित सलाह देते हैं लेकिन वे आम तौर पर ज्यादा महंगे होते हैं और अधिकांश लोग इन्हें करवा पाने में असमर्थ हो सकते हैं। 

पितृ दोष के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए पितृ दोष निवारण पूजा है सबसे सटीक उपाय!

ऐसे में आप इस ब्लॉग का लाभ उठा सकते हैं और हमारे शास्त्रों के अनुसार कुछ विशिष्ट अनुष्ठान और पूजा कर सकते हैं। इसके अलावा साल में कुछ ऐसे विशिष्ट दिन भी बताए गए हैं जिनके हम नीचे उल्लेख करने जा रहे हैं जब आप इन अनुष्ठानों और पूजा को करके अपने पूर्वजों को संतुष्ट करने उनका आशीर्वाद प्राप्त करने और अपने जीवन से पितृ दोष के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने में सहायता ले सकते हैं।

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  • घर के दक्षिण दीवार पर अपने पूर्वजों की तस्वीर लगाएँ और उनकी तस्वीर के सामने दिया धूप या अगरबत्ती जलाएं। विशेष रूप से ऐसा अगर आप श्राद्ध पक्ष के दौरान करते हैं तो आपको विशेष रूप से लाभ मिलेगा। 
  • हमेशा अपने बड़ों का सम्मान करें और उनके द्वारा आपको दिए गए जीवन के लिए उनका आभार व्यक्त करें। 
  • तांबे के लोटे में थोड़ा सा जल लेकर इसमें काले तिल डालें और फिर इससे सूर्य देव को अर्घ्य दें। ऐसा करते समय अपने पूर्वजों को याद करें और उनसे प्रार्थना करें। विशेष तौर पर यह उपाय आप श्राद्ध पक्ष के दौरान रोजाना नियमित रूप से कर सकते हैं। 
  • भगवान शिव की पूजा करें। आटे का दिया बनाकर रात के समय उनके सामने प्रज्वलित करें और अपने पितरों की तृप्ति के लिए उनसे प्रार्थना करें। श्राद्ध पक्ष के दौरान यह उपाय भी आप रोजाना कर सकते हैं। 
  • पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और उसकी पूजा करें। श्राद्ध पक्ष के दौरान आप यह उपाय नियमित रूप से करें। 
  • रोजाना सुबह सवेरे पहली रोटी गाय को खिलाएं, उसके बाद कौवों को और फिर गली के कुत्तों को खिलाएं। यह उपाय भी आप श्राद्ध पक्ष के दौरान नियमित रूप से करें। 
  • परिवार के बुजुर्ग व्यक्ति, पितरों की संतुष्टि के लिए भागवत गीता का पाठ कर सकते हैं। 
  • ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष के दौरान मृत्यु तिथि पर अपने पूर्वजों के नाम से श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण, दान करने से आपके पूर्वजों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है। पुजारी को अपने घर पर आमंत्रित करें, उन्हें कपड़े, भोजन, मिठाई, फल, और अन्य आवश्यक वस्तुएं प्रदान करें। 
  • अमावस्या तिथि पितृ देवताओं के लिए निर्धारित की गई है। ऐसे में इस दिन अपने पितरों के नाम से दान अवश्य करें। श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि बेहद ही महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस दिन कोई भी व्यक्ति अपने मातृ पक्ष या पितृ पक्ष के पूर्वज यहां तक की अज्ञात और असंतुष्ट पितरों के लिए भी श्राद्ध कर सकता है इसलिए अपने सभी पितरों और पर दादाओ की संतुष्टि के लिए श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि पर उन्हें वस्त्र, भोजन, मिठाइयां, फल, और अन्य आवश्यक वस्तुएं पुरोहित को भेंट करें। 
  • श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि पर यथाशक्ति अनुसार गरीबों और ज़रूरतमंद लोगों को भोजन कराएं। 

सिर्फ श्रद्धा पक्ष ही नहीं इसके अलावा भी कुछ ऐसे दिन होते हैं जब आप अपने पूर्वजों के लिए अनुष्ठान कर सकते हैं। जैसे देव दिवाली, दिवाली, आदि। हालांकि हम इन अनुष्ठानों के बारे में काफी हद तक भूल चुके हैं जिसकी वजह से पितृ दोष की समस्या हमारे जीवन में बढ़ने लगी है क्योंकि कहा जाता है कि जब हमारे पूर्वज परेशान हो जाते हैं कि हम उनके द्वारा स्थापित पारिवारिक परंपराओं और अनुष्ठानों का पालन नहीं करते हैं तब हमें पितृ दोष के प्रकोप का सामना करना पड़ सकता है इसीलिए आपको सलाह दी जाती है कि यह अनुष्ठान अपने परिवार के रीति-रिवाज के अनुसार अवश्य करें।

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दिवाली पर किए जाने वाले विशेष अनुष्ठान 

दिवाली को साल का सबसे बड़ा हिंदू त्योहार माना जाता है और इस दिन को पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ यह त्यौहार मनाया जाता है। दिवाली को रोशनी, खुशियों का त्योहार कहा जाता है। इस दिन लोग वृद्धि और समृद्धि के लिए धन की देवी अर्थात मां लक्ष्मी और कुबेर देवता (धन के देवता) की पूजा करते हैं। लेकिन दिवाली का एक पहलू और भी होता है कि यह अमावस्या तिथि पर पड़ती है और पितृ देवताओं के लिए अमावस्या की तिथि विशेष महत्व रखती है। 

श्राद्ध पक्ष के दौरान लोगों से मिलने के बाद अमावस्या का दिन होता है जब पितृ अपने लोक पहुंचते हैं और उन्हें सुगम यात्रा की दिशा दिखाने के लिए हमें दिवाली पर प्रसिद्ध दीपदान अवश्य करना चाहिए। 

  • इसके अलावा आप अपने पूर्वजों की तस्वीर को साफ करें, उन्हें पीला या सफेद चंदन चढ़ाएँ। फिर फूल या सफेद फूलों की माला चढ़ाएं और फिर उनके सामने दिया और धूप प्रज्वलित करें। उनसे प्रार्थना करें। 
  • अपने बड़ों का हमेशा सम्मान करें और जो जीवन उन्होंने आपको दिया है उसके लिए उनका आभार व्यक्त करें। 
  • इस दिन आप पुजारी को कपड़े, भोजन, मिष्ठान, फल और अन्य आवश्यक वस्तुएं अर्पित कर सकते हैं। 
  • रात्रि के समय अपने पितरों के लिए दक्षिण पश्चिम दिशा में घी के 14 दीपक जलाएं।
  • बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं कि आकाश दीप दान हमारी संस्कृत में हमारे पूर्वजों को रास्ता दिखाने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि आजकल के मॉडर्न और भाग दौड़ भरे जमाने में कहीं ना कहीं हम यह करना भूल चुके हैं लेकिन यह एक ऐसी महत्वपूर्ण विधि है जो हमें निश्चित रूप से करनी चाहिए। ऐसा करने के लिए अलग-अलग तरीके बताए गए हैं। उदाहरण के लिए आप एक घी का दिया ले सकते हैं उसमें एकबाती रख सकते हैं जो ऊपर की ओर हो फिर उस दिये को ढकने से पहले खुले आसमान के नीचे थोड़ा सा रहने दें। मोमबत्ती जलाएं और अपने पूर्वजों से इस प्रकार आशीर्वाद मांगे,  ‘प्रिय पितृ देवता, मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं/करती हूं और कामना करता हूं/करती हूं कि यह मोमबत्ती/दिया आपके रास्ते को रोशनी से भर दे और आपको अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचने में आपकी मदद करें। मैं आपसे भी प्रार्थना करता हूं कि आप हमारे जीवन पर अपना आशीर्वाद हमेशा बनाए रखें।’ 
  • इसके अलावा आप मोमबत्ती के गर्म हवा वाले गुब्बारे का उपयोग करके भी इस दिन आकाश में दीपदान कर सकते हैं।

देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा पर किए जाने वाले अनुष्ठान 

कार्तिक पूर्णिमा अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए भी एक महत्वपूर्ण दिन माना गया है। इस दिन गंगा घाट या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत पर इस दिन दिया जलाने का विशेष महत्व बताया गया है। 

  • सूर्योदय से पहले उठकर गंगा नदी में स्नान करें। हालांकि अगर ऐसा आपके लिए मुमकिन नहीं है तो आप अपने नहाने के जाल में थोड़ा सा गंगाजल डाल सकते हैं। इससे भी आपके पिछले जन्म के सभी पाप धुल जाएंगे। 
  • इसके बाद पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गंगा घाट या किसी अन्य पवित्र जलाशय पर दिए जलाएँ। अगर ऐसा आपकी मुमकिन नहीं है तो आप अपने घर पर ही इस अनुष्ठान को कर सकते हैं। इसमें आप एक बड़ा सा कोई प्लेट या फिर ट्रे ले लें और उसे पर गंगाजल डालें और फिर दिया जलाएं। 
  • रात के समय चंद्रमा को चांदी के बर्तन में जल अर्पित करें। ऐसा करने से कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है। 
  • अपने पूर्वजों के नाम से पुजारी को कपड़े, भोजन, पूजा के सामग्री, दिये आदि वस्तुओं का दान करें। 
  • इस दिन जितना हो सके क्रोध और क्रूरता से दूर रहें। 
  • शराब या किसी भी तामसिक भोजन का सेवन न करें। 
  • अपने घर का माहौल शांतिपूर्ण बनाए रखें। 
  • इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।

इसी के साथ हम अब इस ब्लॉग के अंत तक पहुंच चुके हैं और हम पूरी उम्मीद करते हैं कि यह हमारे रीडर्स के लिए यह बेहद ही जानकारी पूर्ण और ज्ञानवर्धक साबित होगा। हालांकि अंत में भी हम इसमें कुछ महत्वपूर्ण बातें जोड़ना चाहेंगे। सबसे पहली यह कि, हमारे पितृ या पूर्वज वो होते हैं जिन्होंने हमें यह जीवन दिया है। पूर्वजों की ही कृपा से हमारे पास आज जो कुछ भी है वह होता है। इसमें हमारा शरीर हमारा दिमाग और सब कुछ शामिल है। 

हमें उन्हें केवल किसी विशिष्ट दिनों में ही नहीं याद करना चाहिए बल्कि आपको अपनी सफलताओं और जीवन में कुछ भी महत्वपूर्ण घटित हो तो उसके लिए अपने पूर्वजों का आशीर्वाद, आभार व्यक्त करना चाहिए, और उनसे हमेशा आशीर्वाद मांगना चाहिए। इसके अलावा अपनी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी खुशियां भी उनसे साझा करना ना भूलें। सिर्फ इतना ही नहीं अगर आप किसी कठिन समय से गुजर रहे हैं तो मार्गदर्शन के लिए अपने पूर्वजों से प्रार्थना करें। पितृ दयालु होते हैं और वह आपका मार्गदर्शन अवश्य करेंगे।

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