कब है फुलेरा दूज और क्यों मनाया जाता है यह दिन?

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष में पर मार्च के दिन मनाया जाएगा। फुलेरा दूज का यह दिन अबूझ मुहूर्त में से माना जाता है। यानी कि, इस दिन किसी भी तरह का कोई भी शुभ कार्य संपन्न किया जा सकता है। इसके अलावा शादी-विवाह जैसे शुभ मांगलिक कार्यों के लिए यह दिन बेहद ही शुभ बताया गया है। फुलेरा दूज का यह त्योहार मुख्य रूप से मथुरा, वृंदावन और उत्तर भारत के लगभग सभी इलाकों में मनाया जाता है। 

फुलेरा शब्द का मतलब होता है फूल। फुलेरा दूज का यह त्यौहार भगवान कृष्ण को समर्पित माना गया है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि, इस दिन भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं और फुलेरा दूज की शुभ पूर्व संध्या पर होली के त्यौहार में भाग लेते हैं। फुलेरा दूज के बारे में ऐसी मान्यता है कि, यह पर्व लोगों के जीवन में खुशियाँ और उल्लास लेकर आता है।

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कब है फुलेरा दूज?

इस वर्ष फुलेरा दूज का यह पर्व 15 मार्च 2021-सोमवार के दिन मनाया जायेगा।

कैसे मनाते हैं फुलेरा दूज? 

  • फुलेरा दूज के इस विशेष दिन भगवान श्री कृष्ण के भक्त उनकी पूजा करते हैं। 
  • उत्तरी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इस दिन भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। 
  • लोग अपने घरों और मंदिरों में भगवानों की मूर्तियों या प्रतिमाओं को सुशोभित करते हैं उन्हें सजाते हैं उससे उनकी पूजा करते हैं। 
  • इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है भगवान कृष्ण के साथ रंग बिरंगे फूलों से होली खेलने का। 
  • मुख्य रूप से ब्रज में इस दिन देवताओं के सम्मान में भव्य उत्सव का आयोजन होता है। 
  • मंदिरों को फूलों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक सजाए गए मंडप में स्थापित किया जाता है। 
  • इसके बाद भगवान कृष्ण की मूर्ति की कमर पर रंगीन कपड़े का एक छोटा टुकड़ा लगाया जाता है। यह बात इस बात का प्रतीक होती है कि, भगवान कृष्ण अब होली खेलने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। 
  • इसके बाद ‘शयन भोग की रस्म पूरी की जाती है। जिसके बाद भगवान कृष्ण की कमर से उस रंगीन कपड़े को हटा दिया जाता है। 
  • इस दिन पवित्र भोज का आयोजन किया जाता है। जैसा कि, नाम से ही साफ है कि इसमें भोजन से संबंधित कार्य किए जाते हैं। इस रस्म में पोहा और विभिन्न अन्य तरह के सेव शामिल किए जाते हैं। यह भोजन पहले देवताओं को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है। 
  • इसके अलावा इस दिन 2 प्राथमिक अनुष्ठान किए जाते हैं जिसमें से एक का नाम है रसिया और दूसरा है संध्या आरती। 
  • इस दिन मंदिरों में जो विभिन्न धार्मिक आयोजन और नाटक प्रस्तुत किए जाते हैं, इनमें भगवान कृष्ण की लीला और भगवान कृष्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित किया जाता है। 
  • इसके बाद भक्त-जन देवताओं के सम्मान में भजन कीर्तन इत्यादि करते हैं। 
  • होली के आगामी उत्सव के प्रतीक देवता की मूर्तियों पर थोड़ा गुलाल डाला जाता है। 
  • इसके बाद समापन के लिए पुजारी मंदिरों में इकट्ठा होने वाले सभी लोगों पर गुलाल डालते हैं।

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फुलेरा दूज का महत्व 

इस त्यौहार को आकाशीय और ग्रह संबंधी भविष्यवाणियों के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण और शुभ दिनों में से एक माना गया है। क्योंकि फुलेरा दूज का यह दिन बेहद ही भाग्यशाली होता है और इस दिन किसी भी तरह के हानिकारक प्रभावों और दोषों का प्रभाव नहीं होता है इसलिए, इस दिन को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। अबूझ मुहूर्त का अर्थ होता है कि, इस दिन विवाह, संपत्ति की खरीद या कोई भी शुभ काम को करने के लिए ऐसे दिन को बेहद ही पवित्र माना जाता है। इस दिन किसी भी विशेष या शुभ काम को करने के लिए आपको शुभ मुहूर्त के लिए पंडित जी से परामर्श लेने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। 

उत्तर भारत के राज्यों में ज्यादातर शादी समारोह फुलेरा दूज की पूर्व संध्या पर आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा लोग इस दिन अपने व्यवसाय को शुरू करने के लिए सबसे शुभ मानते हैं क्योंकि, इस दिन शुरू किए गए व्यापार में समृद्धि हासिल होती है। 

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घर में ऐसे मनाते हैं फुलेरा दूज 

इस दिन लोग घर में भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और अपने इष्ट देव को गुलाल लगाते हैं। इसके अलावा लोग इस दिन मिष्ठान, पकवान इत्यादि बनाते हैं और उन्हें भगवान को भोग लगाते हैं। किसी भी नए काम को शुरू करने के लिए दिन बेहद शुभ माना गया है। ऐसे में आप को अगर कोई भी नए काम की शुरुआत करनी है तो आप किस दिन से कर सकते हैं। इसके अलावा फुलेरा दूज के दिन राधा कृष्ण को अबीर-गुलाल अर्पित किया जाता है। इसी दिन से लोग होली के रंगों की शुरुआत भी करते हैं। यह दिन समस्त दोषों से मुक्त माना जाता है। भक्त घरों और मंदिर दोनों जगह देवताओं की मूर्तियां या प्रतिमाओं को सुशोभित करते हैं उन्हें सजाते हैं और उनकी पूजा अर्चना करते हैं।

इस दिन के प्रसाद में शामिल होता है पोहा 

फुलेरा दूज की एक रस्म पवित्र भोज या विशेष भोग के नाम से जानी जाती है। इसमें पोहा और विभिन्न अन्य तरह के सेव शामिल किए जाते हैं। इन सभी भोजन को पहले देवताओं को समर्पित किया जाता है और फिर इसे ही प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित कर दिया जाता है। 

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फुलेरा दूज का असली रंग देखना हो तो अवश्य जाएं मथुरा वृंदावन 

कहा जाता है कि, फुलेरा दूज का जिस किसी को भी असली रंग देखना हो उन्हें इस दिन वृंदावन और मथुरा अवश्य जाना चाहिए। वृंदावन और मथुरा के कुछ मंदिरों में इस दिन कुछ भक्तों को भगवान कृष्ण के विशेष दर्शन का भी मौका प्राप्त हो सकता है जहां वे हर साल फुलेरा दूज के उचित समय पर होली उत्सव में भाग लेने वाले होते हैं। इस दिन विभिन्न अनुष्ठानों और समारोह का आयोजन किया जाता है और साथ ही भगवान कृष्ण की मूर्तियों को होली के उत्सव के दर्शाने के लिए रंगों से सराबोर किया जाता है और यह नजारा वाकई में देखने लायक होता है। 

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फुलेरा दूज मनाने के समय रखें इन बातों का ध्यान

  • इस दिन पूजन करने के लिए शाम का समय सबसे उत्तम माना जाता है।
  • पूजा के समय रंगीन और साफ कपड़े पहनें।
  • अगर आप प्रेम संबंधी परेशानी के लिए पूजा कर रहे हैं तो गुलाबी कपड़े पहनें और अगर वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियों को खत्म करने के लिए पूजा कर रहे है तो पीले रंग के कपड़े पहनें।
  • फुलेरा दूज का यह शुभ त्योहार मुख्य रूप से बसंत ऋतु से जुड़ा होता है।
  • यह दिन बेहद ही शुभ दिनों में से एक माना जाता है। ऐसे में वैवाहिक जीवन या प्रेम संबंधों में यदि किसी तरह की परेशानी है और उसे दूर करना चाहते हैं तो उसके लिए इस दिन से शुभ और अच्छा और कोई दिन नहीं हो सकता है।
  • इस दिन मुख्य रूप से राधा और कृष्ण की पूजा की जाती है। इसके अलावा जिन जातकों की कुंडली में प्रेम का अभाव हो उन्हें इस दिन की राधा कृष्ण की पूजा करने की सलाह दी जाती है।

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