पर्युषण पर्व (Paryushan Parva): जाने क्यों है जैन समाज के लिए बेहद खास पर्व

पर्युषण पर्व (Paryushan Parva) क्या होता है? जैन धर्म के लोगों के बीच इस पर्व को लेकर इतनी मान्यता क्यों हैं? पर्युषण पर्व को मनाया कैसे जाता है? आइये इस आर्टिकल के माध्यम से इन सभी सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं। भारत विविधताओं का देश है और जो बात भारत को अन्य सभी देशों से खूबसूरत बनाती है वह है यहां पर रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग, विविध संस्कृतियां और अलग-अलग मान्यताएं मानने वाले लोग। ऐसे में अनेक अलग-अलग धर्म में से एक है जैन धर्म। आज इस आर्टिकल के माध्यम से बात करते हैं जैन धर्म के लोगों का एक बेहद ही खास पर्व पर्युषण पर्व (Paryushan Parva) के बारे में और जानने की कोशिश करते हैं इस पर्व का महत्व और इसे कैसे मनाया जाता है। 

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क्या है पर्युषण पर्व

जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर समाज के लोग भाद्रपद मास में पर्युषण पर्व मनाते हैं। यह जैन धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व लगातार 10 दिनों तक चलता है। इस त्योहार को मनाने के लिए जैन धर्म के लोग 10 दिनों तक भगवान के नाम पर व्रत, उपवास करते हैं और सच्चे मन से उनकी पूजा अर्चना करते हैं। हालांकि कुछ लोग 8 दिनों तक भी यह त्यौहार मनाते हैं। जहां एक तरफ श्वेतांबर समाज 8 दिनों तक पर्युषण पर्व (Paryushan Parva) का यह त्यौहार मनाता है वहीं दिगंबर समाज के अनुयाई 10 दिनों तक पर्युषण पर्व मनाते हैं। 

इस वर्ष पर्युषण पर्व 2021 (Paryushan Parva 2021) 4 सितंबर 2021 से शुरू होकर 11 सितम्बर 2021 तक मनाया जायेगा।

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पर्युषण पर्व महत्व 

पर्युषण पर्व की सबसे खास बात यह है कि, यह जैन धर्म के पांच मूल सिद्धांतों पर आधारित है। जैन धर्म के 5 मूल सिद्धांत है, अहिंसा (यानी किसी प्रकार की कोई हिंसा नहीं और ना ही किसी को कष्ट पहुंचाना), हमेशा सत्य की राह पर चलना, कभी चोरी ना करना, ब्रह्माचार्य और अपरिग्रह (यानी कि जरूरत से ज्यादा धन एकत्रित ना करना)। 

जैन धर्म के जानकार बताते हैं कि, पर्युषण पर्व का मतलब होता है अपने मन के सभी बुरे विचारों को खत्म करना। ऐसे में पर्युषण पर्व के दौरान लोग अपने मन में उठे किसी भी तरह के बुरे विचार को इस दौरान खत्म करने का संकल्प लेते हैं और इन विकारों पर जीत हासिल करके अपने जीवन में शांति और पवित्रता लाने का उपाय ढूंढते हैं। यह त्यौहार भाद्रपद मास की पंचमी तिथि से शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है। 

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कई मायने में यह त्यौहार हिंदू धर्म के नवरात्रि के त्यौहार की तरह मनाया जाता है। इस दौरान जैन धर्म के लोग अपने धर्म के मूल सिद्धांतों पर चलने का प्रण लेते हैं और संसार के लिए मंगल कामना करते हैं। साथ ही अनजाने में की गई ग़लतियों के लिए माफी मांगते हुए अपने पापों से दूर होते हैं। इसके अलावा यह पर्व मॉनसून के समय मनाया जाता है जिसके साथ ही यह समाज को प्रकृति से जुड़ने की अनोखी सीख भी देता है। 

कैसे मनाया जाता है पर्युषण पर्व (Paryushan Parva)

  • इस दौरान सभी श्रद्धालु अपने धार्मिक ग्रंथ का पाठ करते हैं। 
  • इसके साथ ही श्रद्धालु धार्मिक ग्रंथों से संबंधित प्रवचन भी सुनते हैं। 
  • इस पर्व के दौरान बहुत से लोग व्रत, उपवास भी करते हैं। 
  • पर्युषण पर्व में दान देना बेहद ही पुण्यदाई माना जाता है। 
  • इसके अलावा पर्युषण पर्व के दौरान कई जगहों पर रथ यात्रा और शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। 
  • इसके साथ ही कई जगहों पर सामुदायिक भोज का आयोजन किया जाता है।

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जैन पर्युषण पर्व नियम 

  • पर्युषण शब्द का अर्थ होता है परि अर्थात चारों तरफ और उषण अर्थात धर्म की आराधना। 
  • जैन धर्म के अनुयाई यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांतों के आधार पर मनाते हैं। महावीर स्वामी द्वारा दिए गए मूल सिद्धांत हैं, अहिंसा परमो धर्म, जियो और जीने दो, इत्यादि। 
  • जैन पर्युषण पर्व (Jain Paryushan Parva) के 2 भाग होते हैं। पहला हिस्सा तीर्थ कारों की पूजा सेवा और स्मरण और व्रत इत्यादि के माध्यम से व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक रूप से समर्पित करने पर आधारित होता है। 
  • जहां श्वेतांबर समाज 8 दिनों तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जिसे अष्टान्हिका कहते हैं जबकि, दिगंबर समाज 10 दिनों तक यह पर्व मनाते हैं जिसे दसलक्षण कहते हैं। 
  • पर्युषण पर्व के समापन पर विश्व मैत्री दिवस मनाया जाता है। अंतिम दिन लोग अपनी ग़लतियों की क्षमा मांगते हैं

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