सभी पापों का नाश करती है पापमोचिनी एकादशी, जानें पूजन विधि और महत्व

पापमोचनी एकादशी व्रत इंसान के लिए मोक्ष के मार्ग खोलती है।

पापमोचिनी एकादशी का मतलब होता है पाप का नाश करने वाली एकादशी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाने की मान्यता है। कहा जाता है कि इस एकादशी के दिन किसी से बुरा या झूठ भूल से भी नहीं बोलना चाहिए, ऐसा करने से हमें हमारी पूजा-व्रत का फल नहीं मिलता है। ब्रह्महत्या, स्वर्ण चोरी, मदिरापान, हिंसा और भ्रूणघात समेत अनेक घोर पापों के दोष से मुक्ति के लिए ये व्रत सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से किसी भी तरह के पाप से छुटकारा मिलता है और इंसान के जीवन में सुख समृद्धि आती है।

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कब है पापमोचिनी एकादशी?

इस वर्ष पापमोचनी एकादशी 19 मार्च, 2020 गुरुवार को मनाई जाएगी। इसके अलावा बात करें अगर पापमोचिनी एकादशी के शुभ मुहूर्त की तो पापमोचनी एकादशी पारणा मुहूर्त 13 बजकर 41 मिनट 32 सेकंड से शुरू होकर 16 बजकर 07 मिनट 09 सेकंड तक रहने वाला है। यानी कि इसकी कुल अवधि 2 घंटे 25 मिनट लम्बी रहने वाली है। इसके अलावा बात करें अगर हरि वासर समाप्त होने के समय की तो वो 20 मार्च को 12 बजकर 30 मिनट 14 सेकंड का है। 

20 मार्च को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 01 बजकर 41 मिनट से 04 बजकर 07 मिनट तक रहने वाला है
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जानिए पापमोचिनी एकादशी की पूजन विधि

हर व्रत, हर त्यौहार के पूजन की विधि निर्धारित होती है। ऐसे में पापमोचिनी एकादशी के लिए भी पूजन विधि निर्धारित की गयी है जिसके अनुसार,

  • एकादशी के दिन सुबह में ही स्नान करें और उसके बाद व्रत का संकल्प करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। पूजन के दौरान भगवान को धूप, दीप, चंदन और फल इत्यादि चीज़ें अर्पित करें और आरती से पूजा समाप्त करें।
  • इस दिन किसी भिक्षुक, या किसी जरुरतमंद इंसान या ब्राह्मणों को दान और भोजन अवश्य कराना चाहिए। इससे आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी। 
  • मान्यतानुसार पापमोचनी एकादशी पर रात में निराहार रहकर जागरण करना चाहिए और अगले दिन द्वादशी पर पारण के बाद व्रत खोलना चाहिए। 

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पापमोचिनी एकादशी व्रत का महत्व

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी एकादशी है। कहा जाता है कि व्रतों में सबसे उत्तम व्रत का दर्जा प्राप्त इस व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य के सभी पापों का नाश अवश्य होता है। पापमोचनी एकादशी के महात्म्य के श्रवण और कथा का पाठ करने भर से ही इंसान के सभी तरह के  पाप नाश हो जाते हैं।

पापमोचिनी एकादशी से ज़ुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार पुरातन काल में चैत्ररथ नाम का एक बहुत खूबसूरत वन हुआ करता था। इस जंगल में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या करते थे और इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं और देवताओं के साथ विचरण भी किया करते थे। जहाँ एक तरफ मेधावी ऋषि शिव भक्त थे वहीं अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी हुआ करती थीं।

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एक समय की बात है जब कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नाम की एक बेहद सुन्दर अप्सरा को वन में भेजा। अप्सरा अपने मोहक नृत्य, गान और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग करने में सफल रहीं।

मुनि मेधावी खुद भी अप्सरा मंजूघोषा पर मोहित हो गए। इसके बाद दोनों ने साथ रहने का फैसला कर लिया और कई वर्ष उन्होंने साथ में बिताये। एक दिन जब अप्सरा मंजूघोषा ने ऋषि से वापिस जाने के लिए अनुमति मांगी तो मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का एहसास हुआ। इस आत्मज्ञान से वो इस कदर क्रोधित हुए कि उन्होंने मंजूघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे डाला।

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अप्सरा मंजूघोषा ने जैसे ही श्राप की बात सुनी तो वो ऋषि के पैरों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब मंजूघोषा की विनती सुनकर मेधावी ऋषि का दिल पसीज गया और उन्होंने उसे पापमोचनी एकादशी का व्रत करने का उपाय बताया और कहा इस व्रत को करने से तुम्हारे पापों का नाश हो जाएगा और साथ ही तुम एक बार फिर अपने अप्सरा रूप में वापिस आ जाओगी।

लेकिन अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर जब मेधावी ऋषि अपने पिता के पास पहुंचे और उन्हें श्राप की बात बताई तो इसे सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि,  ‘’पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप कमाया है, इसलिए तुम्हें भी पापमोचनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।‘’

बताया जाता है कि जिस तरह से पापमोचनी एकादशी का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा ने श्राप से और मेधावी ऋषि ने पाप से मुक्ति पाई ठीक वैसे ही कोई भी इंसान जिसे अपने पाप से मुक्ति चाहिए उन्हें ये व्रत अवश्य करना चाहिए।

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