वैदिक ज्योतिष में पाप कर्तरी योग और उससे बचाव के उपाय – Paap Kartari Yoga

पाप कर्तरी योग (Paap Kartari Yoga) वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत एक ऐसा दुर्योग है, जो आपने अक्सर लोगों के मुंह से सुना होगा। जब भी कोई ज्योतिषी वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत जन्म कुंडली का अध्ययन करते हैं तो उसमें अनेक प्रकार के दोष और योगों को पाया जाता है और उन्हीं के आधार पर व्यक्ति के जीवन में आने वाली अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की घटनाओं के बारे में पता चलता है। पाप कर्तरी दोष (Paap Kartari Dosha) एक अशुभ योग है जो किसी भी ग्रह अथवा भाव की फल देने की क्षमता को प्रभावित करता है और एक तरीके से बंधन का कार्य करता है। आज हम इस आलेख में पाप कर्तरी योग के बारे में विस्तार से जानेंगे लेकिन पाप कर्तरी योग के बारे में और अधिक जानने से पहले अगर आपको अपनी कुंडली में मौजूद राजयोग के बारे में जानना है तो एस्ट्रोसेज की राजयोग रिपोर्ट इसमें आपकी सहायता कर सकती है।

वैदिक ज्योतिष किसी भी कुंडली में बनने वाले ग्रह जनित योग और दोष के आधार पर किसी भी व्यक्ति के जीवन में होने वाली शुभाशुभ घटनाओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है। ऐसा ही एक अशुभ योग है जिसे हम पाप कर्तरी के नाम से जानते हैं। अक्सर आपने सुना होगा कि इस व्यक्ति का लग्न पापकर्तरी योग में है या इस व्यक्ति का यह भाव अथवा यह ग्रह पाप कर्तरी योग में है और इसी वजह से अपने अच्छे फल देने में सक्षम नहीं है तो आज हम यह जानेंगे कि वास्तव में पाप कर्तरी योग क्या है, यह किस प्रकार से फल देता है और इस दुर्योग के प्रभाव को दूर करने के लिए क्या कोई उपाय किया जा सकता है। यह जानने के लिए इस आलेख को अंत तक पढ़ें।

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क्या होता है कुंडली में बनने वाला पाप कर्तरी योग

कर्तरी को एक प्रकार से कैंची माना जा सकता है जो किसी भी चीज को काटने के काम आती है। उसी प्रकार पाप कर्तरी योग किसी भी ग्रह या भाव के फलों को काट देता है अर्थात उनके फलों में कमी कर देता है। 

कर्तरी योग दो प्रकार का होता है: शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी। 

शुभ कर्तरी योग वह होता है, जब किसी भाव या फिर ग्रह के दोनों ओर अर्थात द्वितीय भाव और द्वादश भाव में केवल शुभ ग्रह विराजमान हों। 

पाप कर्तरी योग तब बनता है जब कुंडली के किसी भाव या ग्रह से द्वितीय और द्वादश दोनों ही भावों में अशुभ ग्रह विराजमान हों। 

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उदाहरण के लिए समझें कि यदि लग्न भाव के लिए हम देख रहे हैं और द्वितीय भाव में बृहस्पति ग्रह और द्वादश भाव में शुक्र ग्रह मौजूद हैं तो चूंकि यह दोनों ही ग्रह नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह हैं इसलिए यह शुभ कर्तरी योग होगा और लग्न के प्रभाव को बढ़ाने वाला होगा।

यदि इसके विपरीत कुंडली के द्वितीय भाव में शनि ग्रह और द्वादश भाव में राहु ग्रह विराजमान हों तो यह पाप कर्तरी योग कहलायेगा और ऐसी स्थिति में लग्न के नैसर्गिक फलों में कमी आएगी।

यदि कुंडली के द्वितीय भाव और द्वादश भाव में कोई ग्रह मौजूद ना हो अथवा एक ग्रह शुभ हो और दूसरा ग्रह अशुभ हो तो कोई भी कर्तरी योग नहीं बनता है।

वैदिक ज्योतिष में पाप कर्तरी योग का फल (Paap Kartari Dosha Ka Fal)

वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत यदि किसी भाव विशेष या ग्रह विशेष पर पाप कर्तरी योग का प्रभाव है तो उसका शुभ फल समाप्त हो जाता है या उसके फलों में अत्यंत कमी आ जाती है और वह अपने फल दे पाने में सक्षम नहीं हो पाता है। उदाहरण के लिए समझें कि जब चंद्रमा की राशि से द्वादश भाव में शनि का गोचर होता है तो वह साढ़ेसाती का उदय कॉल होता है चंद्र राशि के ऊपर शनि आने पर साढ़ेसाती का मध्यम चरण तथा चंद्र राशि के दूसरे भाव में शनि आने के कारण साढ़ेसाती का अंतिम चरण होता है। इस प्रकार चंद्रमा ग्रह से द्वादश भाव से द्वितीय भाव तक शनि का गोचर अशुभ प्रभाव देने वाला हो जाता है। इसके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि किसी भी भाव या ग्रह से दूसरा और बारहवाँ भाव बहुत महत्वपूर्ण होता है। यही वजह है कि दूसरे और द्वादश भाव को काफी बल दिया जाता है क्योंकि जब किसी ग्रह या भाव से दूसरे और द्वादश भाव में कोई ग्रह होते हैं तो वह उसकी फल देने की क्षमता को प्रभावित करते हैं।  

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इसको आप इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि आप जिस मकान में रहते हैं तो आपके अड़ोस पड़ोस में रहने वाले लोगों का प्रभाव भी आप पर पड़ता है। यदि में अच्छे लोग होंगे तो आपको भी असुविधा नहीं होगी और यदि वह परेशानी जनक व्यक्ति होंगे तो आपको भी जीवन में कष्ट उठाने पड़ सकते हैं। ठीक इसी प्रकार पाप कर्तरी योग के कारण जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं आती हैं। जिस भाव में या जिस ग्रह पर पाप कर्तरी दोष का प्रभाव पड़ रहा है, वह अपने फल देने की क्षमता में कमी कर देता है लेकिन जहां समस्या है, वहां समाधान भी है, इसलिए पाप कर्तरी दोष को दूर करने के कुछ उपाय भी हैं, जिन्हें करने से आपको पाप कर्तरी दोष के दुष्प्रभावों से राहत मिल सकती है।

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पाप कर्तरी योग के उपाय (Paap Kartari Yog Ke Upay)

यदि आपकी कुंडली में कोई पाप कर्तरी दोष विद्यमान है और उसकी वजह से आपको उस भाव से संबंधित फलों में कमी महसूस हो रही है तो आप का पाप कर्तरी दोष के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ विशेष उपाय कर सकते हैं। आइए जानते हैं कौन से हैं वे उपाय:

  • गायत्री मंत्र के जाप के द्वारा बहुत हद तक पाप कर्तरी योग के प्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • मां दुर्गा को समस्त अरिष्टों का नाश करने वाला माना जाता है, इसलिए यदि आपकी कुंडली में पाप कर्तरी दोष बन रहा है तो आप मां दुर्गा की उपासना भी कर सकते हैं।
  • यदि आपकी कुंडली में पाप कर्तरी दोष है तो आप भगवान शंकर के एकादश रुद्र अवतार अर्थात भगवान हनुमान जी की पूजा उपासना करें जिससे आपको लाभ मिल सकता है।
  • यदि कोई भाव पाप कर्तरी दोष में है तो उस भाव के स्वामी ग्रह और उस भाव में बैठे ग्रह (यदि वह ग्रह उस कुंडली के लिए अनुकूल है तो) का नियमित मंत्र जाप करें जिससे कि उसे बल मिले और वह पाप कर्तरी दोष के प्रभाव से कुछ हद तक बाहर निकल पाए।
  • ऐसे ग्रह, जो पाप कर्तरी दोष का निर्माण कर रहे हैं, यदि वे कुंडली के लिए अनुकूल ग्रह हैं तो उनका भी मंत्र जाप करें अथवा कुंडली में उनके अशुभ स्थिति के ग्रह होने के कारण उनसे सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।
  • भगवान श्री शंकर जी को समर्पित करके रुद्राभिषेक करना सर्वाधिक लाभदायक होता है। 

पाप कर्तरी दोष की उदाहरण उदाहरण कुंडली:

उपरोक्त उदाहरण कुंडली को देखिए। इसमें तुला लग्न उदय हो रहा है लेकिन लग्न से दूसरे भाव में राहु और द्वादश भाव में शनि देव विराजमान हैं। इस प्रकार यह एक प्रबल पाप कर्तरी दोष बन रहा है जो कि लग्न पर प्रभाव डालेगा और इसके कारण लग्न से संबंधित फलों में कमी आएगी। ऐसा कहा जा सकता है कि इस जातक का स्वास्थ्य कमजोर हो सकता है।  उसके व्यक्तित्व में कुछ समस्याएं आ सकती हैं। तुला लग्न में जन्म लेने के कारण व्यक्ति में जो खासियत होनी चाहिए, उसमें कमी आ सकती है। ऐसा भी हो सकता है यह व्यक्ति निर्णय लेने में असुविधा महसूस करे या उसमें आकर्षण की कमी हो। ऐसा भी हो सकता है कि वह  अपने जीवन में संतुलन रख पाने में असमर्थ हो। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि पाप कर्तरी योग कैसे बनता है। 

इस प्रकार हम कुंडली में बनने वाले पाप कर्तरी दोष को समझ सकते हैं। इसके साथ ही उसके प्रभाव को समझ सकते हैं और उसके प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए विशेष उपायों के बारे में जान सकते हैं। 

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