चैत्र नवरात्रि का आज यानी 14 अप्रैल बुधवार के दिन दूसरा दिन है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा का विधान बताया गया है। मां ब्रह्मचारिणी को तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा आदि नामों से भी जाना जाता है। कहते हैं जो कोई भी भक्त मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है उनके सभी रुके हुए काम दोबारा होने लगते हैं और जीवन में आने वाली कोई भी रुकावट दूर होती है। साथ ही मां के इस स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति को विजय की प्राप्ति होती है और जीवन से सभी दुख, कष्ट और परेशानियां दूर होते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से मिलता है यह फल
मां ब्रह्मचारिणी को देवी पार्वती का अ-विवाहित स्वरूप माना जाता है। मां का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है ब्रह्मा और चारिणी, अर्थात ब्रह्मा के समान आचरण करने वाली। जो कोई भी व्यक्ति मां ब्रह्मचारिणी की विधिवत पूजा करता है उसे तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।
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मां ब्रह्मचारिणी पूजन विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके मां ब्रह्मचारिणी की पूजा प्रारंभ करें। पूजा में फूल अवश्य लें और इस मंत्र का जप करें। दधानां करपद्याभ्यामक्षमालाकमण्डल। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्माचारिण्यनुत्तमा। इसके बाद मां को फूल और नैवेद्य अर्पित करें। मां ब्रह्मचारिणी को चीनी और मिश्री बेहद पसंद होती है ऐसे में इन दोनों वस्तुओं का भोग लगाएं। इस दिन से संबंधित व्रत कथा सुनें और अंत में माता की आरती उतारे। पूजा के बाद सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा में शामिल करें ये मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
कवच मंत्र
त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥
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नवरात्रि के दूसरे दिन से संबंधित पौराणिक कथा
मां ब्रह्मचारिणी से संबंधित कथा के अनुसार बताया जाता है कि, पूर्व जन्म में मां ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। इस दौरान उन्होंने केवल फल और फूल खाकर ही अपना जीवन यापन किया था। इसी कठोर तपस्या के चलते मां का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। कई दिनों तक माँ ने केवल टूटे हुए बिल्वपत्र खाकर भगवान शिव की तपस्या की, इसके बाद उन्होंने बिल्व पत्र भी खाना छोड़ दिया और फिर हजारों वर्षों तक उन्होंने निर्जला और निराहार व्रत रखना शुरू किया।
पत्तों को भी खाना छोड़ने की वजह से उनका नाम देवी अपर्णा पड़ा। देवी की समस्या को देखकर देवी देवता, ऋषि, मुनि सभी उनसे बेहद प्रसन्न हुए और देवी से कहा कि आप जैसी कठोर तपस्या शायद ही कोई कर सकता है। आपकी तपस्या अवश्य पूरी होगी और आपकी भगवान शिव से शादी भी होगी। ऐसे में अब आप अपनी यह कठोर तपस्या को छोड़ कर अपने घर वापस लौट जाइये। कहा जाता है ऐसे में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को सर्व सिद्धि की प्राप्ति होती है।
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